आडवाणी बनने को तैयार हुए बाबूलाल गौर: 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा की तरफ से बगावत का झंडा पार्टी के दो वरिष्ठ नेताओं ने उठा रखा था। लेकिन गोविंदपुरा विधानसभा सीट से कृष्णा गौर को टिकट मिलने के बाद बाबूलाल गौर से बगावत का झंड़ा छोड़कर खुद का लालकृष्ण आडवाणी बनना स्वीकार कर लिया। उमा भारती के बाद मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री बने बाबूलाल गौर ने 2018 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने राजनीतिक संन्यास ले लिया। बाबूलाल गौर ने अपनी राजनीतिक विरासत बहू को सौंप कर सक्रिय राजनीति से संन्यास ले लिया। लेकिन उनके साथी सरताज सिंह ने बगावत नहीं छोड़ अगर कुछ छोड़ा तो पार्टी का साथ उस पार्टी का साथ जिससे वो करीब 60 सालों तक जुड़े रहे।
ऐसा नहीं है कि उन्हें मनाने की कोशिश नहीं की गई लेकिन सरताज नहीं माने आर बगावत का झंडा बुलंद रखा और मुख्यमंत्री से लेकर सभी की मान—मनुहार को दरकिनार कर दिया। संगठन के कहने पर मंत्रिमंडल से इस्तीफा देने वाले सरताज आखिर क्यों नहीं माने माने? ये वही सरताज सिंह है जिन्होंने 1998 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के दिग्गज नेता अर्जुन सिंह को हराया था। आज वही सरताज भाजपा को चुनौती दे रहे हैं। मंत्रिमंडल से इस्तीफा देने के बाद सरताज ने कई बार भाजपा के 75 साल के फार्मूले पर सवाल उठाए पर उनकी आवाज भाजपा संगठन तक नहीं पहुंची। यहीं से वो भूमिका तैयारी हो गई थी जिसे कहा जा सकता है कि भाजपा ने इने इस सीनियर नेता से किनारा करना शुरू कर दिया था।
क्यों नहीं मिला टिकट
भाजपा के 75 साल के फार्मूले पर कई बार सवाल उठाने के बाद सरताज सिंह पारटी और संगठन के खिलाफ हमले करने लगे थे। भाजपा की पहली लिस्ट में सरताज सिंह का नाम नहीं होने के बाद तो उन्होंने भाजपा के मिशन 200 का महज एक नारा कहा था। उन्होंने कई बार शिवराज सिंह की सरकार पर हमले किए। टिकट नहीं मिलने का दूसरा कारण सरताज की उम्र भी थी पर सियासत में उम्र कोई सीमा नहीं होती है। सरताज सिंह के निशाने पर सीधे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान रहे।