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कांग्रेस आज भी बुजुर्गों के भरोसे, तो भाजपा ने देखते ही देखते बदल दिया अपना चेहरा…

locationभोपालPublished: Apr 14, 2019 12:36:55 pm

रणनीति से लेकर इनका भरोसा तक काफी हद तक एक दूसरे के ठीक विपरीत…

2019 loksabha election 2019

कांग्रेस आज भी बुजूर्गों के भरोसे, तो भाजपा ने देखते ही देखते बदल दिया अपना चेहरा…

भोपाल@अरुण तिवारी की रिपोर्ट…
लोकसभा चुनावों को लेकर जहां एक ओर भाजपा व कांग्रेस एक दूसरे की विरोधी हैं, वहीं इनकी रणनीति से लेकर इनका भरोसा तक काफी हद तक एक दूसरे के ठीक विपरीत ही है। ऐसा हम केवल राजनीतिक द्वेश के चलते नहीं कह रहे हैं, बल्कि इनके द्वारा चुनाव के लिए चुने गए प्रत्याशियों को लेकर भी कह रहे हैं।

 

दरअसल यदि आप आप भी इन बातों को देखेंगे तो यहीं कहेंगे कि कांग्रेस व भाजपा राजनीति के दो ध्रुव है, जिनकी अधिकतर चीजें एक दूसरे से पूरी तरह से अलग है।

 

एक ओर जहां कांग्रेस आज भी अपने बुजुर्ग नेताओं के बल पर ही चुनाव मैदान में लड़ने का साहस जुटा पा रही है, वहीं भाजपा इससे ठीक विपरीत बुजुर्ग नेताओं को घर में आराम का रास्ता दिखाते हुए, खुद प्रौढ़ या नौजवानों के भरोसे पार्टी को आगे बढ़ाने की कोशिश में जुटी हुई दिख रही है।

देखते ही देखते बदल गई भाजपा…
जानकारों की मानें तो अभी चंद वर्षों पहले तक भाजपा में भी बुजुर्ग नेताओं का ही बोलबाला था, फिर चाहे वे आडवाणी हो जोशी हो या कोई और, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में ही भाजपा ने एकाएक आपनी चाल में परिवर्तन करते हुए इस बार तकरीबन सभी बुजुर्ग नेताओं को चुनाव से बाहर का रास्ता दिखा दिया है।

 

दरअसल एक ओर जहां भाजपा 70 साल पार के फॉर्मूले पर काम कर रही है। वहीं कांग्रेस में ऐसा कोई फार्मूला ही नहीं है, ऐसे में 70 साल पार दिग्विजय सिंह जहां भोपाल जैसे भाजपा के गढ़ में भाजपा को ही चुनौती देते हुए चुनाव लड़ रहे हैं। तो वहीं कमलनाथ प्रदेश के मुख्यमंत्री बने हैं।

इनके अलावा संगठन में भी कुछ वरिष्ठ नेता महत्वपूर्ण पदों पर हैं। जिनमें पूर्व मंत्री और वरिष्ठ नेता हजारीलाल रघुवंशी कांग्रेस की अनुशासन समिति के प्रमुख हैं।

जबकि चंद्रप्रभाष शेखर पार्टी प्रदेश के उपाध्यक्ष और संगठन प्रभारी हैं। इनके अलावा वरिष्ठ नेता रामेश्वर नीखरा और महेश जोशी चुनाव में समन्वय की अहम भूमिका निभा रहे हैं और प्रकाश जैन भी संगठन का काम देख रहे हैं।


इसके ठीक विपरीत भाजपा…
वहीं भाजपा 70 के फार्मूले के तहत न तो बुजुर्गों को चुनाव का टिकट देती दिख रही है। और जो बुजुर्ग पार्टी में बने भी हुए हैं, उन्हें तक घर भेजती दिख रही है। इन्हीं सब के बीच लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन के चुनाव न लडऩे के फैसले ने प्रदेश में एक नई बहस छेड़ दी है।

 

 

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भाजपा से बाहर गए बुजुर्ग नेता कहते हैं कि दिल्ली की तरह प्रदेश में भी वरिष्ठ नेता धीरे-धीरे राजनीति से किनारे कर दिए गए हैं। ताई के साथ ही सांसद ज्ञान सिंह और बोधसिंह भगत की भी विदाई की टिकट कट गई।


कभी भाजपा में प्रमुख नेता रहे रामकृष्ण कुसमरिया कहते हैं कि बेआबरु होकर मजबूरी में पार्टी छोडऩी पड़ी। भाजपा ने सुमित्रा महाजन के साथ भी ठीक नहीं किया कि उन्हें मजबूरी में चिट्ठी लिखनी पड़ी। वहीं पूर्व भाजपाई सरताज सिंह ने कहा कि वरिष्ठ नेताओं की सम्मानजनक विदाई हो सकती थी।


इधर, पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने कहा कि ताई के साथ मेरी सहानुभूति है, उनका राजनीतिक जीवन समाप्त हो गया, ये दुख की बात है, उनकी विदाई इस तरह नहीं की जानी चाहिए थी।

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1- सुमित्रा महाजन : इंदौर से आठ बार की सांसद सुमित्रा महाजन ने सार्वजनिक तौर पर पत्र लिखकर टिकट लडऩे से मना कर दिया। उनके पत्र से वजह भी साफ जाहिर हो गई। उन्होंने लिखा कि टिकट के फैसले में देरी हो रही थी इसलिए मैने चुनाव न लडऩे का निर्णय कर पार्टी को चिंतामुक्त कर दिया। नेता नाराज ताई को मनाने पहुंचे लेकिन उन्होंने साफ कर दिया कि वे चुनाव नहीं लड़ेंगी।

 

 


2- ज्ञान सिंह : शहडोल से सांसद ज्ञान सिंह का टिकट काट कर कांग्रेस से आईं हिमाद्री सिंह को दे दिया गया। ज्ञान सिंह दुखी हो गए। ज्ञान सिंह कहते हैं कि वे गरीब थे इसलिए उनका टिकट काट दिया गया। हैरानी की बात ये भी है कि जिस हिमाद्री को उन्होंने हराया था उसी की वजह से वे टिकट की लड़ाई हार गए।

 


3- बोधसिंह भगत : टिकट कटने से नाराज बोधसिंह भगत ने निर्दलीय नामांकन भर दिया। उन्होंने कहा कि गौरीशंकर बिसेन की वजह से उनका टिकट काटा गया है, नकली खाद,बीज का विरोध करना क्या गुनाह है। उन्होंने जितने काम किए हैं उतने बिसेन ने भी नहीं किए।

 

 

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4- बाबूलाल गौर : पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर के रिश्ते भी पार्टी से मधुर नहीं रहे। 75 पार के फॉर्मूले का हवाला देकर अचानक मंत्री पद से हटा दिया। पार्टी सुप्रीमो अमित शाह ने कहा कि ऐसा कोई फॉर्मूला नहीं है फिर भी विधानसभा चुनाव में टिकट नहीं दिया गया, गौर के मुखर विरोध के बाद बमुश्किल उनकी बहू कृष्णा गौर को टिकट मिल पाया। गौर ने लोकसभा चुनाव के लिए भी टिकट की मांग की।

5 – सरताज सिंह : 75 पार के फॉर्मूले की जद में सरताज सिंह भी आए। टिकट काटा तो उन्होंने भाजपा छोड़कर कांग्रेस का दामन थाम लिया। सरताज सिंह कहते हैं कि वे मजबूरी में भाजपा छोड़कर गए। 75 पार का फॉर्मूला नहीं था तो फिर टिकट क्यों काटा गया, नियम सबके लिए एक समान होना चाहिए। उनके साथ छल-कपट किया गया। सम्माजनक रास्ता भी हो सकता था।

6 – रामकृष्ण कुसमरिया : पांच बार के सांसद और चार बार के विधायक रामकृष्ण कुसमरिया कहते हैं कि भाजपा ने उनकी कद्र नहीं की। नहीं तो इस तरह बेआबरु होकर जाना नहीं पड़ता।

पार्टी टिकट देने का कहती रही और आखिर न देने की जिद पकड़ ली जिससे महाभारत हो गई। पार्टी को जब जरुरत थी तो सिर माथे पर बैठाया बाद में साजिश कर अन्याय कर दिया।

 

 

7 – कुसुम सिंह मेहदेले : वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री कुसुम सिंह मेहदेले के साथ भी यही हुआ। विधानसभा का टिकट काट दिया। नाराज हुईं मेहदेले ने कहा कि खजुराहो से टिकट दो या फिर राज्यपाल बनाओ। मेहदेले ने ट्वीट के जरिए भी कई बार अपनी नाराजगी जताई।

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