छात्र राजनीति का गढ़ माने जाने वाले राजधानी के अधिकतर महाविद्यालयों में यही हालात हैं। इनके मुताबिक सरकारें खुद नहीं चाहतीं कि कॉलेज और विवि में छात्र नेता तैयार हों। विश्वविद्यालय और महाविद्यालयों में पहले छात्र संघ चुनाव बंद किए गए और जब इन्हें दोबारा शुरू किया गया तो उसकी धार इतनी कुंद कर दी कि छात्र नेताओं में न तो छात्र राजनीति के लिए जोश बचा और न ही कोई लक्ष्य।
बहरहाल, अभी जिन छात्र-छात्राओं में राजनीति को लेकर थोड़ी सी भी ललक है वे छात्र राजनीति का झंडा बुलंद किए हुए हैं। ज्यादातर छात्रों में इसका उत्साह अब न के बराबर ही बचा है। कुछ छात्रों को कहना है कि अब सभी करियर फोकस्ड हो गए हैं। इसलिए उनका राजनीति की तरफ रुझान कम ही है।
एमवीएम में भगत क्रांति दल से छात्र संघ की अध्यक्ष हर्षिता गर्ग मानती हैं कि वर्तमान में छात्र राजनीति से आत्मविश्वास तो बढ़ता है, लेकिन इसमें भविष्य की बात है तो उसके लिए बैक सपोर्ट की जरूरत है, जबकि पहले ऐसा नही था।
सिर्फ डिग्री पर फोकस
स्टूडेंट काउंसिल के अध्यक्ष आदित्य मानते हैं कि छात्र राजनीति के लिहाज से मैनिट परफेक्ट नहीं है। अधिकतर छात्र बैचलर की डिग्री करने आते हैं। राजनीति के लिए जो परिपक्वता चाहिए वो नहीं है। यहां पक्ष-विपक्ष जैसा माहौल नही है।