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पिछले साल के छात्रसंघ चुनाव परिणाम से एबीवीपी परेशान…क्या होगा इस बार

locationभोपालPublished: Oct 12, 2017 05:12:44 pm

Submitted by:

sanjana kumar

एबीवीपी का कहना है कि इस बार राजधानी के सभी कॉलेजों में जीत होगी। चाहे चुनाव किसी भी माध्यम से हों…

For students elections the ABVP has done the road

For students elections the ABVP has done the road


भोपाल। प्रदेश में अप्रत्यक्ष रूप से छात्र संघ चुनाव आखिरी बार वर्ष 2011 में हुए थे। इस चुनाव में नेशनल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ इंडिया (एनएसयूआई) ने राजधानी के बड़े कॉलेजों में अध्यक्ष के पदों पर बाजी मारी थी।

हमीदिया और एमवीएम में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद को हार का सामना करना पड़ा था। हालांकि, बीयू का अध्यक्ष का पद एबीवीपी के खाते में था। एनएसयूआई इस बार भी खुद को एबीवीपी से आगे बताने की कोशिश लगी है। उधर, एबीवीपी का कहना है कि इस बार राजधानी के सभी कॉलेजों में जीत होगी। चाहे चुनाव किसी भी माध्यम से हों।

राजधानी के पिछले साल के परिणाम परेशान करने वाले बताए जा रहे हैं। क्योंकि, निर्दलीय छात्रों ने जीत के बाद एनएसयूआई को समर्थन दिया था। वहीं, जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी, दिल्ली विश्वविद्यालय समेत अन्य राज्यों में हाल ही में छात्रसंघ चुनाव में एबीवीपी को हार का सामना करना पड़ा है। यह बात मध्य प्रदेश में भी चिंता का कारण बनी हुई है। एनएसयूआई के पदाधिकारियों का कहना है कि राजधानी के कॉलेजों में छात्र और शिक्षक सभी परेशान हैं। नियम सार्वजनिक नहीं किए जा रहे हैं, ताकि दूसरे छात्र संगठन व निर्दलीय रूप से खड़े होने वाले छात्र अपनी तैयारी नहीं कर सकें।

115 नए कॉलेज चुनौती

दोनों संगठनों का फोकस जिलास्तर के कॉलेजों पर है और यहां तैयारियां भी तेज कर दी हैं। कस्बाई इलाकों के कॉलेजों की संख्या अधिक हो गई है, लेकिन यह छात्र संगठनों की पहुंच से दूर हैं। आखिरी चुनाव हुए चुनाव के समय सरकारी कॉलेजों की संख्या 332 थी और अब यह बढ़कर 447 हो गई हैं। इस दौरान खुले करीब 115 नए कॉलेज एबीवीपी समेत एनएसयूआई की पकड़ कमजोर है। यहां इक्का-दुक्का कार्यकर्ता ही हैं।

सीआर के दावेदार की होने लगी खोज
एबीवीपी और एनएसयूआई ने छात्र संघ चुनाव को लेकर अपने-अपने स्तर पर तैयारी शुरू कर दी है। इसके चलते कक्षा प्रतिनिधियों के दावेदार तय करने में जोर लगाना शुरू कर दिया है। एबीवीपी जल्द ही इनके नाम की घोषणा कर सकती है, लेकिन एनएसयूआई का कहना है कि जब तक सरकार नियम घोषित नहीं करती वह जल्दबाजी नहीं करेगी। चुनाव मेरिट के आधार पर होते हैं तो बहिष्कार किया जाएगा।

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