इस फार्मेट में सभी अंकसूची की जानकारी होती है। इसलिए बाहरी सेंटर वाला इसे तैयार करने में अलग से 50 से 100 रुपए लेता है। यानी बीयू से पढ़े छात्र को एक ट्रांसक्रिप्ट लेने के लिए 600 से 700 रुपए खर्च करना पड़ता है। जबकि यह जिम्मेदारी विश्वविद्यालय प्रशासन की है।
ट्रांसक्रिप्ट दस्तावेज एक तरह का स्टेटमेंट ऑफ मार्क कहलाता है। जिसे लिप्यंतरण भी कहा जाता है। छात्र को ट्रांसक्रिप्ट की ऑरीजनल कॉपी उसकी मांग के अनुसार उपलब्ध कराने की सुविधा है। इस दस्तावेज के सत्यापन की जरूतर नहीं पड़ती। इसमें छात्र की सभी परीक्षाओं की अंकसूची में दिए विषयवार अंकों की जानकारी होती है। छात्र मुख्य रूप से इसका उपयोग विदेश में नौकरी प्राप्त करने में करते हैं। रजिस्ट्रार डॉ. यूएन शुक्ल ने कहा कि मुझे भी इस संबंध में जानकारी मिली है। छात्रों के अलावा कर्मचारियों ने भी बताया है कि ट्रांसक्रिप्ट बाहर से ही प्रिंट कराकर लाना पड़ रहा है। ट्रांसक्रिप्ट के लिए विश्वविद्यालय में आज भी सालों पुरानी व्यवस्था चल रही है। जिसे प्रशासन भी बदलने में रुचि नहीं लेता। जबकि अन्य अधिकतर दस्तावेजों के लिए ऑनलाइन व्यवस्था कर दी गई है। छात्र ऑनलाइन आवेदन कर दस्तावेज प्राप्त कर लेते हैं। लेकिन जिसे ट्रांसक्रिप्ट लेनी होती है उसे विश्वविद्यालय आकर ही आवेदन करना पड़ रहा है। बीयू ने शासन के निर्देश पर भी छात्रों के लिए स्वेप मशीन नहीं लगवाई। एेसे छात्र को बैंक की लंबी कतार में खड़े होकर ड्राफ्ट बनवाना होता है।
अधिकारियों का कहना है कि विश्वविद्यालय में स्किल्ड वर्कर की कमी है। वहीं अन्य दस्तावेजों की अपेक्षा ट्रांसक्रिप्ट तैयार करना कठिन कार्य होता है। हर कोर्स की ट्रांसक्रिप्ट के लिए अगल प्रक्रिया है। इसलिए दिक्कत होती है। वहीं इसी कारण इसे ऑनलाइन भी नहीं किया जा रहा है। फिर भी कोशिश की जाएगी कि इसके लिए भी ऑनलाइन व्यवस्था की जाए।