प्राइम लोकेशन पर स्थित इस प्रोजेक्ट का काम एमबीएली कंपनी ने किया है। बताया जा रहा है कि कंपनी ने बेहद घटिया काम किया। भुगतान नहीं होने से बीच में काम बंद भी हुआ। शिकायतों पर कंपनी से काम लिया भी गया। बाद में री-टेंडर करके इसी कंपनी को काम दिया गया। छह माह पहले गिरे छज्जे के मामले में कार्यपालन यंत्री बीएल डेहरिया को हटाया गया था। इसमें रोचक ये था कि इनसे उच्च पदस्थ व निचले स्तर के इंजीनियरों पर कोई कार्रवाई नहीं की। गौरतलब है कि इस 222 फ्लेट के परिसर में कई फ्लैट वीवीआईपी के हैं। 2010 में लांच हुई इस स्कीम का काम पूरे नौ साल बाद यानि 2019 में कुछ पूरा हुआ और लोगों को पजेशन देना शुरू किया।
अब तक इसके सी व डी ब्लॉक में काम पूरा नहंी हो पाया। पजेशन पूरे नहीं दे पाए। देरी का हर्जाना भी इसके आवंटियों से लिया गया। आवंटियों को 15 से 35 फीसदी तक अतिरिक्त राशि देना पड़ी। प्रोजेक्ट में 2 बीएचके और 3 बीएचके के लिए 40 से 55 लाख रुपए कीमत निर्धारित की गई थी। वर्ष 2010 में शुरू हुए प्रोजेक्ट को 2013 में पूरा किया जाना था। अधिकांश खरीदारों में साल 2016 में पूरा रकम भी जमा कर दी। बाद में बोर्ड ने 30 से 53 प्रतिशत वृद्धि का फ रमान जारी कर अतिरिक्त राशि की मांग की। मामला कानूनी पेंचिदगियों में भी उलझा। इसका निर्माण करने वाली एमबीएल कंपनी का ठेका निरस्त कर दिया था। बाद जब री- टेंडर कर इसी कंपनी को फिर से काम दे दिया गया। प्रोजेक्ट से जुडे हाउसिंग बोर्ड के डिप्टी कमिश्रर एके साहू पूरे मामले पर बात करने से बच रहे हैं। वे इसे दिखवाने का कहकर पल्ला झाड़ रहे हैं।