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मानसिक स्वास्थ्य को सिलेबस में शामिल करने से रूक सकते हैं सुसाइड अटैक

locationभोपालPublished: Sep 12, 2018 07:48:54 am

Submitted by:

hitesh sharma

विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस, लाइफ स्किल्स में लाना होगा चेंज

World Suicide Prevention Day

मानसिक स्वास्थ्य को सिलेबस में शामिल करने से रूक सकते हैं सुसाइड अटैक

केस-1 62 वर्षीय रिटायर्ड बैंक मैनेजर अचानक अपनी जिंदगी में परिवर्तन महसूस करने लगे, उन्हें अपने रोजमर्रा के कामों में अरुचि होने लगी। खुद को हर समस्या के लिए कोसने लगे और जीवन के प्रति नैराश्य का भाव घर करने लगा। घर वालों से ऐसी बातें की तो घर वाले इलाज के लिए मनोचिकित्सक के पास आए। 6 महीने के ट्रीटमेंट के बाद अब स्वस्थ हैं।
केस-2 बॉयफ्रेंड से अनबन के बाद से अर्पिता के मन में आत्महत्या का ख्याल आने लगा। खुद को नाखूनों से खुरचना शुरू कर दिया था। खुद को कमरे में बंद कर लिया।एक दिन उन्होंने खुद को नुकसान पहुंचाने की कोशिश की तो उनकी रूम पार्टनर ने अस्पताल पहुँचाया। वहां पता चला कि वो डिप्रेशन से ग्रसित थी। इलाज लिया और आज अपना जीवन बढिय़ा से जी रही हैं।
भोपाल। राजधानी में हर साल करीब छह सौ लोग आत्महत्या कर लेते हैं। इनमें करीब चार सौ युवा ऐसे होते हैं जो स्टडी, अफेयर और जॉब स्ट्रेस के कारण ये आत्मघाती कदम उठाते हैं। इस घटनाओं को देखते हुए विश्व आत्महत्या रोकथाम दिवस 10 सितंबर को मनाया जाता है। सुप्रीम कोर्ट भी इसे मानसिक विकार मान चुका है। इसे देखते हुए अब डॉक्टर्स और एक्टिविस्ट स्कूली पाठ्यक्रम में मानसिक स्वास्थ्य संबंधी चैप्टर्स को सिलेबस में शामिल करने की मांग कर रहे हैं। एक्सपर्टस का कहना है कि लाइफ स्किल्स, साइकोलॉजिकल फस्र्ट एड को शामिल कर बच्चों को बचपन से ही मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूक किया जा सकेगा। इससे वे जीवन में आने वाली कठिनाईयों का सामना बखूबी कर सकेंगे।
कैसे करें पहचान
डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी के अनुसार व्यक्ति अलग-थलग सा रहने लगता है। ज्यादातर समय उदास सा दिखता है। बात-बात पर चिढचिढ़ाहट, झुंझलाहट दिखती है। वह खुद का ख्याल रखना छोड़ देता है। ज्यादातर समय निराशावादी बातें करने लगता है। अपने काम से अरुचि हो दिखाई देती है। अपना कीमती सामान किसी और को देने लगता है और उसे सहेज कर रखने की बातें करन भी शामिल होता है। वह सोचने लगता है कि अब मैं इस दुनिया के लिए उपयोगी नहीं रहा।
आत्महत्या की रोकथाम के लिए सुझाव

डॉ. त्रिवेदी के अनुसार हाई रिस्क ग्रुप(स्कूल, कॉलेज, प्रतियोगी परीक्षार्थी) का समय-समय पर मानसिक स्वास्थ्य परीक्षण किया जाना चाहिए ताकि मानसिक रोगों जैसे डिप्रेशन की पकड़ पहले से ही की जा सके और उचित इलाज से आत्महत्या के खतरे को समय रहते समाप्त किया जा सके। फैमिली सपोर्ट बहुत जरूरी होता है। मानसिक रोगों के प्रति जागरूकता लाने के लिए व्यापक प्रयासों की आवश्यकता है। इसके लिए मानसिक स्वास्थ्य को प्राथमिकता में लाने की सोच से आगे की दिशा निर्धारित हो पाएगी।
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