प्रदेश में खुशी की लहर
राजधानी भोपाल में रहने वाले सामलेंगिकों के मुखिया (नायक) सुरय्या ने कोर्ट के इस फैसले को सराहनीय बताया और कहा कि, अब जाकर हमें देश में समान रूप से जीने का अधिकार मिला है। उन्होंने कहा कि, अब हमें भी इस बात पर यकीन हो गया है। कि, हम भी भारतीय नागरिक है, क्योंकि न्यायपालिका ने हमारे हित में बड़ा फैसला लिया है। नायक ने सुप्रीम न्यायधीशों का फैसले पर निष्पक्ष फैसला लेने पर आभार व्यक्त करते हुए खुशी ज़ाहिर की है।
सहमति से सामलेंगिक संबंध अपराध नहीं
आपको बता दें कि, मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अगुवाई में सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने गुरुवार को मामले पर फैसला सुनाते हुए कहा कि, दो वयस्कों के बीच सहमति से बनाए गए समलैंगिक संबंध या शादी जैसे बंधन को अब से अपराध नही माना जाएगा। इस मामले पर कार्रवाई करने वाली धारा 377 से भी इसे बाहर कर दिया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश जारी करते हुए कहा कि, धारा 377 लोगों की आज़ादी के लिए मनमानी धारा है। कोर्ट ने आदेश में यह भी कहा कि, भारत एक आज़ाद देश है। यहां हर व्यक्ति विषेश को अपना व्यक्तिगत चुनाव करने का अधिकार है, सर्वोच्च न्यायपालिका इसका सम्मान करती है।
सामलैंगिकों के प्रति सोच बदलने की ज़रूरतः SC
कोर्ट ने कहा कि, समाज को पुरानी सोच से बाहर आना होगा। उन्होंने कहा कि, हमे पूर्वाग्रहों से मुक्त होना चाहिए। हर बादल में इंद्रधनुष खोजना चाहिए। बता दें कि, इंद्रधनुषी झंडा एलजीबीटी समुदाय का प्रतीक है। सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा कि, भारत में हर वर्ग विषेश को स्वतंत्र रूप से रहने का अधिकार है। हमें सामलेंगिकों के लिए भी अपनी सोच में बदलाव लाना होगा। एक भारतीय होने के नाते हमें इन्हें भी सम्मान देना होगा, क्योंकि यह भी भारतीय ही हैं।
धारा 377 के तहत था अपराध
-धारा 377 के तहत ‘अप्राकृतिक यौन संबंधों को अपराध की श्रेणी में लिया जाता था। इसके मुताबिक जो भी प्रकृति की व्यवस्था के विपरीत किसी पुरुष, महिला या पशु के साथ यौनाचार करता है, उसे उम्रकैद या दस साल की कैद और जुर्माने की सजा हो सकती थी।’
-व्यवस्था का विरोध करते हुए सुप्रीम कोर्ट में देशभर से अलग-अलग याचिकाएं दायर की गई थीं। इन याचिकाओं में परस्पर सहमति से दो वयस्कों के बीच समलैंगिक यौन रिश्तों को अपराध की श्रेणी में रखने वाली धारा 377 को गैरकानूनी और असंवैधानिक घोषित करने की मांग की गई थी।
-इस मुद्दे को सबसे पहले 2001 में गैर सरकारी संस्था नाज फाउंडेशन ने दिल्ली हाईकोर्ट में उठाया था। हाईकोर्ट ने सहमति से दो वयस्कों के बीच समलैंगिक रिश्ते को अपराध की श्रेणी से बाहर करते हुए इससे संबंधित प्रावधान को 2009 में गैर कानूनी घोषित कर दिया था।