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स्थानीय निकायों के चुनाव पर सस्पेंस, सुप्रीम कोर्ट ने कहा- रिपोर्ट का आकलन कर सुनाएगा फैसला

locationभोपालPublished: May 17, 2022 04:04:16 pm

Submitted by:

deepak deewan

2022 के परिसीमन के आधार पर चुनाव कराने की मांगी थी मंजूरी

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2022 के परिसीमन के आधार पर चुनाव कराने की मांगी थी मंजूरी

भोपाल. मध्यप्रदेश में स्थानीय निकायों पर सस्पेंस बरकरार है. निकायों के चुनाव के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने प्रदेश सरकार से व्यापक जानकारी तलब की है। मंगलवार को इस मामले की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने यह बात कही। कोर्ट ने कहा कि प्रदेश सरकार द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट का आंकलन किया जाएगा, इस मामले में अब बुधवार या गुरुवार को सुनवाई होगी।
सुप्रीम कोर्ट ने मध्यप्रदेश में त्रिस्तरीय पंचायत और नगरीय निकाय चुनाव ओबीसी आरक्षण के बिना कराने के लिए आदेश दिए थे। राज्य निर्वाचन आयोग को 10 मई को दिए गए इस आदेश में मोडिफिकेशन के लिए राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में 12 मई को एप्लीकेशन दी। इस पर आज सुनवाई हुई।
इसके लिए राज्य सरकार ने चार पाइंट की प्रेयर (प्रार्थना) की
— सुप्रीम कोर्ट में राज्य सरकार द्वारा की गई पहली प्रेयर में कहा गया कि 10 मई को डिलिमिटेशन की जो रिपोर्ट सबमिट हुई उसके साथ ही इलेक्शन कराए जाएं।
— 2022 में किए गए परिसीमन के आधार पर राज्य में चुनाव कराने की अनुमति दी जाए।
— राज्य निर्वाचन चुनाव आयोग को 2 की बजाय 4 सप्ताह में चुनाव की अधिसूचना जारी करने का आदेश दिया जाए।
— अन्य पिछड़ा वर्ग कल्याण आयोग की दूसरी रिपोर्ट के आधार पर ओबीसी आरक्षण को नोटिफाइड करने के लिए 4 सप्ताह का समय दिया जाए। एससी-एसटी आरक्षण देने के लिए भी समान समय मांगा गया है.
सुप्रीम कोर्ट में राज्य सरकार ने अन्य पिछड़ा वर्ग कल्याण आयोग की दूसरी रिपोर्ट सौंपी है। बताया गया कि रिपोर्ट स्थानीय निकायवार आरक्षण प्रतिशत के संबंध में है। कोर्ट से अनुरोध किया गया है कि इस रिपोर्ट पर भरोसा कर इसी के आधार पर ओबीसी आरक्षण अधिसूचित करने की अनुमति दे। साथ ही इसके लिए 4 सप्ताह का भी समय मांगा है। यह भी कहा गया है कि इतना ही समय समानतापूर्वक एससी,एसटी आरक्षण के लिए भी लगेगा। कोर्ट से आग्रह किया गया ओबीसी आरक्षण की अधिसूचना की मंजूरी देने वाले आदेश से किसी पार्टी को पूर्वाग्रह नहीं होगा।
राज्य सरकार ने ओबीसी आरक्षण देने के लिए कोर्ट में 2011 जनसंख्या के आंकड़े प्रस्तुत किए हैं। इसके अनुसार ओबीसी की कुल संख्या में प्रदेश में 51 प्रतिशत बताई गई है। सरकार का मानना है कि ओबीसी को न्याय देने के लिए इस आधार पर ही आरक्षण मिलना चाहिए।

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