सुषमा स्वराज आपातकाल के विरोध में सक्रिय राजनीति से जुड़ गयीं थी। देश में आपातकाल की समाप्ति के बाद सुषणा स्वराज जनता पार्टी की सदस्य बन गईं। 1977 में उन्होंने हरियाण के अम्बाला छावनी विधानसभा क्षेत्र से विधायक का चुनाव जीता और चौधरी देवी लाल की सरकार में मंत्री रहीं। 25 साल की उम्र में कैबिनेट मंत्री बनने का रिकार्ड भी बनाया था। भारतीय जनता पार्टी के गठन में भी शामिल रहीं। 1990 में उन्हें राज्यसभा के सदस्य के रूप में निर्वाचित किया गया।
सुषमा स्वराज 1996 में दक्षिण दिल्ली संसदीय सीट से सांसद निर्वाचित हुईं। 13 दिन की वाजपेयी सरकार में वह सूचना प्रसारण मंत्री रहीं। अक्टूबर 1998 में उन्होंने केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया और दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं। 1999 में सुषमा स्वराज एक बार फिर से केन्द्रीय राजनीति में लौंटी।
सुषमा स्वराज ने 1999 में एक बार फिर से केन्द्र की सियासत में वापसी की। सुषमा स्वराज ने कर्नाटक के बेल्लारी लोकसभा सीट से कांग्रेस पार्टी की तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी के खिलाफ चुनाव लड़ा। हालांकि इस दौरान वह अपना चुनाव हार गईं।
साल 2000 में वह उत्तर प्रदेश से राज्यसभा सदस्य निर्वाचित हुईं। लेकिन 9 नवंबर 2000 को उत्तर प्रदेश के विभाजन पर उन्हें उत्तराखण्ड में स्थानांतरित कर दिया गया। इस दौरान सुषमा स्वराज केन्द्र में सूचना और प्रसारण मंत्री के साथ कई विभागों की जिम्मेदारी संभाली।
सुषमा स्वराज 2006 में मध्य प्रदेश से राज्यसभा में तीसरे कार्यकाल के लिए निर्वाचित हुईं। प्रत्यक्ष रूप से उन्होंने 2009 में उन्होंने मध्य प्रदेश के विदिशा संसदीय क्षेत्र से लोकसभा के लिए निर्वाचित हुईं और लोकसभा में विपक्ष की नेता बनी। 2014 में भाजपा ने फिर से उन्हें विदिशा लोकसभा सीट से मैदान में उतारा और उन्होंने फिर से यहां से जीत दर्ज की। उसके बाद वह मोदी सरकार में विदेश मंत्री बनीं।
सुषमा स्वराज ने मध्यप्रदेश के इंदौर में ही सक्रिय राजनीति को अलविदा कहने की घोषणा की थी। सुषमा स्वराज ने स्वास्थ्य कारणों का हवाला देते हुए लोकसभा चुनाव लड़ने से इंकार किया था। मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव के प्रचार के लिए इंदौर आईं सुषमा स्वराज ने एलान किया था कि अब वो लोकसभा का चुनाव नहीं लडेंगी।