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स्वाइन फ्लू का कहर: देश में मरने वाले छह फीसदी मरीज MP के

locationभोपालPublished: Oct 22, 2017 09:45:45 am

IDIDSP की रिपोर्ट, गुजरात और महाराष्ट्र में मरीजों की संख्या सबसे ज्यादा, लेकिन मौत का आंकड़ा सिर्फ 6.5 और 11 फीसदी, mp में 18 फीसदी मरीजों की मौत।

swine flu in mp
भोपाल। स्वाइन फ्लू से पीडि़त कोई ना कोई मरीज लगभग हर दिन प्रदेश में दम तोड़ रहा है। पिछले पांच महीने में प्रदेश में 133 स्वाइन फ्लू के मरीजों की मौत हो चुकी है। भोपाल में 27 मरीज दम तोड़ चुके हैं। देश स्तर पर बात की जाए तो स्वाइन फ्लू से मरने वाले छह फीसदी मरीज मप्र के हैं। प्रदेश में स्वाइन फ्लू से हर पांचवें मरीज की मौत हो रही है। विशेषज्ञों के अनुसार प्रदेश में स्वास्थ्य सुविधाआें की भारी कमी प्रमुख कारण है। स्वास्थ्य सुविधाआें के मामले में मप्र आसाम, उत्तर प्रदेश, उड़ीसा से भी कहीं पीछे है।
यह खुलासा इंटीग्रेटेड डिसीज सर्विलेंस प्रोग्राम क्षरा जारी रिपोर्ट में हुआ है। रिपोर्ट के मुताबिक 15 सितंबर तक मप्र में 758 मरीज पॉजिटिव पाए गए। इनमें 133 मरीजों की मौत हो चुकी है। इस लिहाज से हमारे यहां मृत्युदर का आंकड़ा करीब 18 फीसदी है। इस अवधि में सबसे ज्यादा पॉजिटिव मरीज गुजरात व महाराष्ट्र में सामने आए हैं, लेकिन वहां मौतों का आंकड़ा 6.5 और 11 फीसदी है।
राहत देने वाली बात यह है कि बीते एक सप्ताह से मरीजों का मिलना कम हो गया है। शहर में अब तक 142 लोगों में फ्लू के वायरस सामने आया। इनमें से २७ मरीजों की जिंदगी इस वायरस ने छीन ली।
राज्य – पॉजिटिव – मौत – मृत्युदर
गुजरात- 7658 – 431- 5.6 प्रतिशत
महाराष्ट्र- 5881 – 669 – 11.37 %
कर्नाटक – 3229 – 15 – 0.4 %
राजस्थान- 3002 – 229 – 7.6%
दिल्ली – 2820 – 20 – 0.7 %
मप्र – 758 – 133 – 17.5%
यह है बढ़ती मौतों की वजह :
प्रचार प्रसार ना होने के कारण लोगों जागरुकता की कमी का होना
लोग इसे सामान्य बुखार समझ कर खुद उपचार करते हैं
अस्पतालों में पर्याप्त व्यवस्थाओं और दवाओं की कमी बनी हुई है
निजी अस्पतालों में व्यवस्था और प्रोटोकॉल की निगरानी सतत नहीं होती है।
उम्र – मरीज संख्या
20 से 30 — 02
30 से 40 — 06
40 से 50 — 06
50 से 60 — 10
60 से अधिक — 03

यह हैं स्वाइन लू के लक्षण:
– लगातार अत्यधिक तेज बुखार
– नाक का लगातार बहना, छींक आना
– लगातार खांसी के साथ गला चोक होना
– मांसपेशियां में दर्द या अकडऩ होना
– सिर में भयानक दर्द होना
– दवा खाने पर भी बुखार का लगातार बढऩा
राजधानी में स्वाइन फ्लू का अब तक का रिकॉर्ड :
वर्ष – संदिग्ध- पॉजीटिव -मौत
2009 -78- 08 -00
2010 -619- 139 -39
2011 -79 -03 -01
2012 -408 -66 -12
2013 -344 -35 -09
2014 -60 -07 -04
2015 -2200 -752 -78
2016 -591 -82 -12
2017 -298 -158 -27 (अब तक)
मप्र में स्वाइन फ्लू का अब तक का रिकॉर्ड :
वर्ष -पॉजिटिव -मौत
2010 -395 -110
2011 -09 -04
2012 -151 -26
2013 -113 -32
2014 -17 -09
2015 -2445 -367
2016 -38 -12

लाोग सर्दी-जुकाम और बुखार को हलके में लेते हैं। शहर मे रैफरल केस ज्यादा आते हैं, इसलिए यहां मरीजों की संख्या ज्यादा बढ़ जाती है। सभी मरीजों को बेहतर उपचार मिल रहा है।
– डॉ. सुधीर जेसानी, सीएमएचओ
इधर,इंजेक्टेबल पोलियो वैक्सीन खत्म, निजी में दोगुने रेट :-
राजधानी भोपाल सहित प्रदेश भर के अस्पतालों में इंजेक्टेबल इनेक्टिवेटेड पोलियो वैक्सीन (आईपीवी) खत्म हो गई है। इससे सरकारी अस्पतालों में यह वैक्सीन लगना बंद हो गई है। केन्द्र से इसकी आपूर्ति नहीं होने से यह स्थिति बन रही है। अब कुछ जिला अस्पतालों में ही इसका स्टॉक बचा है। पीएचसी व सीएचसी में पिछले ६ माह से यह वैक्सीन नहीं लगाई जा रही है। इससे वैक्सीन लगवाने दूरदराज क्षेत्रों से बच्चों को जिला अस्पताल तक लेकर आना पड़ रहा है। आईपीवी की कमी से इसकी कालाबाजारी भी शुरू हो गई है। बाजार में वैक्सीन के रेट बढ़ा दिए हैं। प्राइवेट डॉक्टर्स भी आईपीवी लगभग डेढ़ हजार में लगा रहे हैं।
पोलियो से सौ फीसदी बचाव के लिए ओरल पोलियो वैक्सीन के साथ इंजेक्टेबल पोलियो वैक्सीन भी दी जाती है। इसे 1 दिसंबर 2015 से नियमित टीकाकरण कार्यक्रम में शामिल किया गया है। फिलहाल प्रदेश में इंजेक्टेबल पोलियो वैक्सीन खत्म हो गई है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रोटोकोल के अनुसार पोलियो से पूरी तरह बचाव के लिए बच्चों को इंजेक्टेबल पोलियो वैक्सीन भी लगाना जरूरी है।
इससे सही दवा पूरी मात्रा में बच्चे के शरीर के अंदर पहुंच जाती है। पोलियो उन्मूलन के लिए भी यह जरूरी है।

जिला अस्पताल के लगाने पड़ेंगे चक्कर :
केन्द्र से आईपीवी की सप्लाई नहीं मिलने से दूरस्थ पीएचसी, सीएचसी में वैक्सीन भेजना बंद कर दिया गया है। जिला अस्पतालों में ज्यादा जरूरत होने पर छोटे सेंटरों से भी बची हुई वैक्सीन मंगा ली गई। इसलिए अब सिर्फ कुछेक जिला अस्पतालों में ही यह वैक्सीन उपलब्ध है। इसलिए दूरस्थ स्थानों के लोगों को बच्चों को लेकर जिला अस्पताल आना पड़ेगा। वहां भी यह वैक्सीन मिल जाए यह कोई गारंटी नहीं है।
800 का वैक्सीन लग रहा डेढ़ हजार में :
पहले निजी अस्पतालों में आईपीवी वैक्सीन 800 रुपए में लगता था। इसकी शॉर्टेज के चलते अब यह डेढ़ हजार में लगाया जा रहा है। वैक्सीन का मार्केट में भी रेट बढ़ गया है।
प्रतिमाह 1.20 लाख वैक्सीन
राज्य टीकाकरण कार्यालय के अनुसार इंजेक्टेबल पोलियो वैक्सीन की प्रदेश में प्रतिमाह 1 लाख 20 हजार वैक्सीन की जरूरत होती है। इसकी डिमांड केन्द्र को लगातार भेजी जा रही है। केन्द्र से वैक्सीन की सप्लाई हर माह होती है, कुछ माह से सप्लाई नहीं मिलने से शॉर्टेज है। आईपीवी को विश्व में केवल सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया और सनोफी कंपनी द्वारा बनाया जाता है। लेकिन इनके पास रॉ मटेरियल पर्याप्त नहीं होने के कारण मांग के अनुसार आपूर्ति नहीं दे पा रही हैं।
इंजेक्टेबल पोलियो वैक्सीन की सप्लाई शॉर्ट होने से इसकी कमी है। जल्द ही सप्लाई बहाल होने पर अस्पतालों में इसकी कमी पूरी हो जाएगी। ओरल पोलियो वैक्सीन हमारे पास पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है।
– डॉ संतोष शुक्ला, राज्य टीकाकरण अधिकारी
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