भोपाल

अरेबिक गोंद और सागौन की लकड़ी से तैयार की जाती है तंजाबूर पेंटिंग

मानव संग्रहालय में सप्ताह का प्रादर्श ‘तंजावुर कल ओवियम’

भोपालSep 28, 2020 / 09:28 pm

hitesh sharma

अरेबिक गोंद और सागौन की लकड़ी से तैयार की जाती है तंजाबूर पेंटिंग

भोपाल। मानव संग्रहालय ने लॉकडाउन के बाद विजिटर्स से जोड़े रखने के लिए सप्ताह का प्रादर्श शृंखला शुरू की है। इस बार सप्ताह का प्रादर्श शृंखला में तंजावूर शैली की पेंटिंग तंजावुर कल ओवियम को ऑनलाइन एग्जीबिट किया गया। यह भगवान कृष्ण को दर्शाती है। इसे तमिलनाडु के कराईकुडी, शिवगंगा के चेट्टियार नागरथार समुदाय से संकलित किया गया है। यह पेंटिंग 158 सेमी ऊंची और 127 सेमी चौड़ी है। संग्रहालय के निदेशक डॉ. प्रवीण कुमार मिश्र ने बताया कि इस पेंटिंग में भगवान कृष्ण को दो परिचारिकाओं के साथ एक आसन पर बैठे हुए दिखाया गया है। इनमें से एक मोर पंख का चंवर पकड़े हुए है और दूसरी भगवान कृष्ण को एक कटोरे में मक्खन अर्पित कर रही हैं।

तंजावूर और तिरुचि का राजू समुदाय के कलाकार तैयार करते हैं पेंटिंग
मिश्र ने बताया कि तंजावूर पेंटिंग में सामान्य तौर पर ज्वलंत लाल, गहरे हरे, चाक जैसे सफेद फिरोजा नीले रंगों और सोने की पन्नी और कांच के मनकों के साथ कभी-कभी कीमती पत्थरों का उपयोग भी किया जाता है। तंजावूर और तिरुचि का राजू समुदाय के कलाकार तैयार करते हैं। इन्हें चित्रागर के नाम से भी जाना जाता है। यह मदुरई के नायडू समुदाय के पारंपरिक कलाकार हैं। ऐसा कहा जाता है कि यह कलाकार मूल रूप से आंध्र के श्रायलसीमा क्षेत्र से आए थे। यह चित्र विभिन्न विषय-वस्तुओं पर बनाए गए हैं और इनकी गुणवत्ता संरक्षक की रुचि अतिआवश्यकता, प्रभाव और वित्तीय क्षमता के आधार पर भिन्नता दर्शाती थी। आमतौर पर पेंटिंग एक कैनवास पर बनाई जाती थी, जिसे अरेबिक गोंद के साथ लकड़ी, कटहल या सागौन की एक तख्ती पर चिपकाया जाता था। पहले कलाकार प्राकृतिक रंगों जैसे वानस्पतिक और खनिज रंगों का उपयोग करते थे। जबकि वर्तमान में कलाकार रासायनिक रंगों का उपयोग करते हैं। इस तरह की पेंटिंग को तमिलनाडू में काफी पसंद किया जाता है। दिखने में ये काफी आकर्षक लगती हैं।

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