विपरीत हालातों का डटकर सामना करते हैं और ग्रामीण अंचल में बच्चों को पढ़ाने जाते हैं। ऐसे शिक्षकों की तपस्या की बदौलत ही स्कूलों को ‘विद्या का मंदिर’ का कहा जाता है।
राजधानी से करीब 25 किलोमीटर दूर ग्रामीण क्षेत्र भोज नगर में है प्राइमरी स्कूल। शिक्षक रामविलास अहिरवार रोज भीम नगर से सेमरी कोलार तक साइकिल से स्कूल जाते हैं। इससे आगे का सफर सेमरी से तीन किलोमीटर अंदर खेतों और उबड़-खाबड़ रास्तों से होकर पैदल पूरा करना पड़ता है।
बारिश में तो रास्ता एक-एक फीट कीचड़ से धंस जाता है। यहीं पर ओमकार सिंह चौहान भी पदस्थ हैं। राजधानी के सपीम बना यह स्कूल हमारे सिस्टम को आईना भी दिखा रहा है। यहां फर्श पर दरी पर बैठकर चार बच्चे अपना भविष्य संवारने का जतन कर रहे हैं। - फोटो सुभाष ठाकुर
यहां फर्श पर दरी पर बैठकर चार बच्चे अपना भविष्य संवारने का जतन कर रहे हैं।
भोपाल से 20 किमी दूर रायसेन में घने पेड़ों के बीच जगल में बना है शासकीय माध्यमिक शाला झिरी। पहाड़ी और जंगल से घिरे इस क्षेत्र में बाघ, भालू जैसे जंगली जानवरों का भी मूवमेंट है।
भोपाल से 20 किमी दूर रायसेन में घने पेड़ों के बीच जगल में बना है शासकीय माध्यमिक शाला झिरी। पहाड़ी और जंगल से घिरे इस क्षेत्र में बाघ, भालू जैसे जंगली जानवरों का भी मूवमेंट है। इस स्कूल में करीब 200 बच्चे हैं।