पूरा नाटक छत्तीसगढिय़ा भाषा में होता है। इसमें वहां की जनजातियों की लोक परंपरा की झलक देखने को मिलती है। इसमें करमा, ददरिया, सुआ और पंथी नृत्य और संगीत है। नाटक के लिए 9 लोकगीत लिखे गए। 2008 में पंथी समुदाय ने इसका विरोध भी किया था। हालांकि बाद में ये मंचित किया जाता रहा।
सच बोलने के लिए चरणदास को मिलती है मौत की सजा
कहानी चरणदास की है। जो गांव से सोने की थाल चोरी कर भाग जाता है। पुलिस से बचने के लिए वह साधु को सवा रुपए देकर दीक्षा ले लेता है। गुरु उससे चोरी छोडऩे को कहते हैं, लेकिन वह नहीं मानता है। गुरु के सामने प्रतिज्ञा लेता है कि सोने की थाली में नहीं खाएगा। रानी से शादी नहीं करेगा, किसी देश का राजा नहीं बनेगा और हाथी-घोड़े पर बैठकर जुलूस में शामिल नहीं होगा। गुरु उसे पांचवीं प्रतिज्ञा हमेशा सच बोलने की दिलाते हैं। इससे उसका जीवन बदल जाता है। एक दिन वह एक राज्य का रोजकोष लूटने जाता है, इसके बाद उसके सामने ऐसी परिस्थितियां बनती जाती हैं, जो उसे प्रतिज्ञा तोडऩे पर विवश करती है। राज्य की रानी उसे शादी का प्रस्ताव देकर झूठ बोलने को कहती है, लेकिन चरणदास इंकार कर देता है। रानी गुस्से में उसे मौत की सजा दे देती है।