script44 साल में दस हजार शो, ‘चोर-चोर’ बना चरणदास चोर | Ten thousand shows in 44 years, Charandas Chor becomes 'Chor-Chor' | Patrika News

44 साल में दस हजार शो, ‘चोर-चोर’ बना चरणदास चोर

locationभोपालPublished: Oct 06, 2019 01:06:38 pm

Submitted by:

hitesh sharma

रवीन्द्र भवन में नाटक ‘चरणदास चोर’ का मंचन
 

44 साल में दस हजार शो, 'चोर-चोर' बना चरणदास चोर

44 साल में दस हजार शो, ‘चोर-चोर’ बना चरणदास चोर

भोपाल। रवीन्द्र भवन में आयोजित तीन दिवसीय डॉ. शंकर शेष स्मृति नाट्य समारोह के अंतिम दिन शनिवार को नाटक ‘चरणदास चोर’ का मंचन हुआ। इस नाटक का पहला शो 1975 में रायपुर में हुआ था। पहले इस नाटक का नाम चोर-चोर था। बाद में बदलकर ‘चरणदास चोर’ कर किया गया। इसकी कहानी राजस्थान के लेखक विजयदान देथा ने ‘सत्य की बिसात’ में लिखी थी। इसका नाट्य रूपांतरण और निर्देशन हबीब तनवीर ने किया। उनकी निधन के बाद नया थिएटर से जुड़े रामचंद्र सिंह निर्देशन करने लगे।
डायरेक्टर के अनुसार पिछले 44 साल में इस नाटक के दस हजार से ज्यादा शो हो चुके हैं। पहले शो की अवधि जहां 30 मिनट थी। अब यह 1 घंटे 50 मिनट का होता है। नाटक में 32 कलाकारों ने ऑनस्टेज अभिनय किया। नाटक की खासियत यह है इसमें संगीत दे रहे म्यूजिशियन और सिंगर्स ही समय-समय पर इसके कलाकार बन जाते हैं।

छत्तीसगढ़ की लोक परंपरा की झलक
पूरा नाटक छत्तीसगढिय़ा भाषा में होता है। इसमें वहां की जनजातियों की लोक परंपरा की झलक देखने को मिलती है। इसमें करमा, ददरिया, सुआ और पंथी नृत्य और संगीत है। नाटक के लिए 9 लोकगीत लिखे गए। 2008 में पंथी समुदाय ने इसका विरोध भी किया था। हालांकि बाद में ये मंचित किया जाता रहा।
सच बोलने के लिए चरणदास को मिलती है मौत की सजा
कहानी चरणदास की है। जो गांव से सोने की थाल चोरी कर भाग जाता है। पुलिस से बचने के लिए वह साधु को सवा रुपए देकर दीक्षा ले लेता है। गुरु उससे चोरी छोडऩे को कहते हैं, लेकिन वह नहीं मानता है। गुरु के सामने प्रतिज्ञा लेता है कि सोने की थाली में नहीं खाएगा। रानी से शादी नहीं करेगा, किसी देश का राजा नहीं बनेगा और हाथी-घोड़े पर बैठकर जुलूस में शामिल नहीं होगा। गुरु उसे पांचवीं प्रतिज्ञा हमेशा सच बोलने की दिलाते हैं। इससे उसका जीवन बदल जाता है। एक दिन वह एक राज्य का रोजकोष लूटने जाता है, इसके बाद उसके सामने ऐसी परिस्थितियां बनती जाती हैं, जो उसे प्रतिज्ञा तोडऩे पर विवश करती है। राज्य की रानी उसे शादी का प्रस्ताव देकर झूठ बोलने को कहती है, लेकिन चरणदास इंकार कर देता है। रानी गुस्से में उसे मौत की सजा दे देती है।
44 साल में दस हजार शो, 'चोर-चोर' बना चरणदास चोर
IMAGE CREDIT: patrika
यूरोप में अवॉर्ड से मिली प्रसिद्धी

‘च रणदास चोर’ हबीब तनवीर के कालजयी नाटकों में से एक है। 1982 में एडिनबर्ग में इंटरनेशनल ड्रामा फेस्टिवल में इसका मंचन हुआ था। जहां इसे अवॉर्ड भी मिला था। इसके बाद यह शो विश्वभर में प्रसिद्ध हो गया। डायरेक्टर का कहना है कि इस नाटक का जिस शहर में मंचन किया जाता है, वहां के स्थानीय नामों का प्रयोग किया जाता है। इसके अलावा पिछले 44 सालों में इसमें कोई परिवर्तन नहीं किया गया। यह एक ऐसा नाटक है, जो अपनी सिंपलिटी के लिए जाना जाता है। सेट के नाम पर महज एक पेड़ और चौपाल है। दर्शकों को ऐसा नहीं लगता कि वह कोई ड्रामा देख रहे हैं। उन्हें ऐसा लगता है जैसे गांव की चौपाल पर बैठकर कुछ ग्रामीणों की सामान्य जिंदगी की घटना घट रही है। नाटक में चार पीढिय़ों के तीन सौ से ज्यादा कलाकार काम चुके हैं। मैंने 1992 में दिल्ली में हुए नाटक में सैनिक का रोल शुरू किया था। 2014 से पुरोहित का रोल करने लगा। 2009 से इसे डायरेक्टर भी कर रहा हूं।
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