भाजपा के दलबदल के दांव से यहां कांग्रेस दो फाड हो गई है। लेकिन, दूसरी ओर सुलोचना का भाजपा में अंदरूनी तौर पर तगडा विरोध है। इसलिए यहां भी भितरघात का खतरा दोनों ओर है। अंदरूनी समीकरण ही सीट का फैसला करेंगे। कांग्रेस प्रत्यााशी महेश पटेल भी राजनीतिक परिवार से होने के साथ तगडा नेटवर्क रखते हैं। इसलिए दोनों ओर से जंग मजबूती से हो रही है। सीएम शिवराज सिंह चौहान ने यहां सभाएं की है। पार्टी ने पूरा दम लगाया, लेकिन मुख्य रूप से सुलोचना के नेटवर्क पर भाजपा भरोसा कर रही है। वहीं कमलनाथ ने यहां अपने पत्ते पहले ही स्पष्ट कर दिए थे। कमलनाथ ने पटेल परिवार के नेटवर्क को यहां मजबूत किया है। खुद भी जोर लगाया है।
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पृथ्वीपुर विधानसभा-
भाजपा से शिशुपाल सिंह
कांग्रेस से नितिन सिंह राठौर
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आबादी का गणित- इस सीट पर भी आदिवासी वोटबैंक ज्यादा है। आदिवासी के बाद ओबीसी वोटबैंक है। लेकिन, पूरा दारोमदार आदिवासी वोटबैंक पर रहता है। आदिवासी वोटबैंक ही यहा निर्णायक है।
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समीकरण ऐसे- यह सीट कांग्रेस विधायक बृजेंद्र सिंह राठौर के निधन से खाली हुई है। कांग्रेस ने इस सीट पर सिम्पैथी कार्ड को ध्यान में रखकर बृजेंद्र सिंह के बेटे नितेंद्र सिंह को टिकट दिया है। नितेन्द्र का यहां नेटवर्क भी अच्छा है और पिता के समय भी चुनाव प्रबंधन संभालते हरे हैं। वहीं भाजपा ने इस सीट पर सपा से दो साल पहले आए शिशुपाल सिंह यादव को टिकट दिया है। पिछले चुनाव में शिशुपाल यहां पर दो नंबर थे। तीसरे नंबर पर बसपा और भाजपा चौथे नंबर पर थी। शिशुपाल का तगड़ा नेटवर्क है, लेकिन उनका आना भाजपा नेताओं को रास नहीं आ रहा है, लेकिन भाजपा का यहां नेटवर्क नितेंद्र व शिशुपाल की तुलना में कमजोर रहा है।
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अभी ये स्थिति-
इस सीट पर भाजपा संगठन ने काफी ताकत लगाई है। सीएम शिवराज जहां जोबट व खंडवा पर ज्यादा रहे, तो यहां संगठन और अन्य दिग्गजों ने डेरा डाला है। यह सीट भाजपा पूरी ताकत लगाकर कांग्रेस से छीनने की रणनीति पर काम कर रही है। यहां अधिकतर कांग्रेस जीतती आई है। लेकिन, 2013 में यह सीट भाजपा ने जीती थी, फिर 2018 में वापस कांग्रेस ने ले ली। कांग्रेस ने यहां नितेंद्र के ही स्थानीय नेटवर्क को तवोज्जो दी है। कमलनाथ के प्रबंधन और नितेंद्र के नेटवर्क के दम पर ही कांग्रेस यहां पूरा जोर लगा रही है। यह कांग्रेस के लिए मजबूत सीट में से एक है।
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रैगांव विधानसभा-
भाजपा से प्रतिमा बागरी
कांग्रेस से कल्पना वर्मा
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आबादी का गणित- इस सीट पर अनुसूचित जाति व जनजाति के वोट बैंक ज्यादा है। इसके अलावा मुख्य रूप से बागरी समुदाय ज्यादा है, इस कारण भाजपा ने बागरी प्रत्याशी ही उतारा। लेकिन, सवर्ण समाज के बंटने या एकजुट होने को भी यहां महत्वपूर्ण माना जाता है। इसलिए बाकी जातियों के मिश्रित होकर एकजुट होने का गणित भी काम करता है।
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समीकरण ऐसे-
यह सीट भाजपा विधायक जुगल किशोर बागरी के निधन के कारण खाली हुई है। इस सीट पर बागरी परिवार में विरोध के स्वर खूब बुलंद हुए, लेकिन बाद में भाजपा ने मना लिया। जुगल किशोर के बेटे और बहू ने निर्दलीय रूप से नामांकन भी भरा, लेकिन बाद में वापस ले लिया। हालांकि अब अंदरूनी समीकरण ही आगे की दिशा तय करेंगे। कांग्रेस ने कल्पना वर्मा का यहां टिकट दिया है, जो पिछले चुनाव में दूसरे नंबर पर रही थी। इसलिए उनकी दावेदारी स्पष्ट प्रभावी मानी जा रही थी। इसलिए कांग्रेस से ज्यादा भाजपा में भितरघात का खतरा है।
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अभी ये स्थिति-
यह सीट दोनों पार्टियों के लिए मायने रखती है। वजह ये कि यहां भाजपा का अभी कब्जा रहा है, इस कारण भाजपा इसे अपनी जीत के हिस्से में मानती है। वहीं कांग्रेस यहां कांटे का मुकाबला मानकर कब्जे की उम्मीद ज्यादा देखती है। कांग्रेस यहां दमोह की रणनीति के तहत उतरी है। इस सीट पर दोनों ओर से खूब दांव-पेंच चले गए हैं। भाजपा में संगठन ने भी यहां काफी मेहनत की है, तो दूसरी ओर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ ने भी इस सीट के प्रबंधन को मजबूती से बुना है। दोनों ओर से प्रचार में बड़े नेता उतरें हैं। सीएम शिवराज के अलावा भाजपा के बाकी नेता भी यहां प्रचार करने पहुंचे। वहीं कांग्रेस से कमलनाथ के अलावा स्थानीय नेटवर्क को ही प्राथमिकता दी गई है।
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