नियमों का रखा जा रहा ताक पर
बसों के संचालन के लिए सरकार ने कई नियम बनाए है, लेकिन सभी नियमों को ताक पर रखकर बस संचालक बसों का संचालन करा रहे हैं। बैतूल बस स्टैंड से भोपाल एवं नागपुर चलने वाली बसों का छोड़कर जिले के ग्रामीण रूट पर ज्यादातर बसें पुराने और कंडम हो चुकी है, लेकिन इन बसों के फिटनेस की जांच नहीं की जा रही है। बसों में यात्रियों को भीषण गर्मी में भेड़-बकरियों की तरह बैठाकर सफर के लिए मजबूर किया जा रहा है। ऐसा नहीं है कि पुलिस और परिवहन विभाग इस स्थिति से अनजान हैं लेकिन कोई भी कार्रवाई करने के लिए तैयार नहीं है।
बसों के संचालन के लिए सरकार ने कई नियम बनाए है, लेकिन सभी नियमों को ताक पर रखकर बस संचालक बसों का संचालन करा रहे हैं। बैतूल बस स्टैंड से भोपाल एवं नागपुर चलने वाली बसों का छोड़कर जिले के ग्रामीण रूट पर ज्यादातर बसें पुराने और कंडम हो चुकी है, लेकिन इन बसों के फिटनेस की जांच नहीं की जा रही है। बसों में यात्रियों को भीषण गर्मी में भेड़-बकरियों की तरह बैठाकर सफर के लिए मजबूर किया जा रहा है। ऐसा नहीं है कि पुलिस और परिवहन विभाग इस स्थिति से अनजान हैं लेकिन कोई भी कार्रवाई करने के लिए तैयार नहीं है।
बसों के संचालन में मापदंडों का पालन नहीं
म.प्र शासन ने 15 वर्ष पुरानी बसों को नहीं चलाने, डबल गेट, इमरजेंसी गेट, अग्निशमक यंत्र, किराया सूची, फिटनेस जांच, पिछले कांच से जाली हटाना, फस्ट एड बॉक्स, कांच पर परमिट, बीमा, रूट की जानकारी लिखना, बस के कर्मचारियों के डे्रस कोड लागू करना आदि मापदंड लागू करवाने आदेश दिए गए थे, ताकि यात्रियों को परेशानी न हो, लेकिन परिवहन विभाग के आदेश के बावजूद न तो बसों में नियम लागू हुए और न ही परिवहन विभाग कोई कार्रवाई कर रहा है। विभागीय लापरवाही के कारण कई खटारा व अनफिट बसें बिना परमिट सड़कों पर दौड़ रही है। खास बात यह है कि शहर में दो बस स्टैंड हैं जहां कुल 250 से 300 बसों का परिचालन रोजाना होता हैं और इन बसों में 5 से 6 हजार यात्री प्रतिदिन सफर करते हैं।
म.प्र शासन ने 15 वर्ष पुरानी बसों को नहीं चलाने, डबल गेट, इमरजेंसी गेट, अग्निशमक यंत्र, किराया सूची, फिटनेस जांच, पिछले कांच से जाली हटाना, फस्ट एड बॉक्स, कांच पर परमिट, बीमा, रूट की जानकारी लिखना, बस के कर्मचारियों के डे्रस कोड लागू करना आदि मापदंड लागू करवाने आदेश दिए गए थे, ताकि यात्रियों को परेशानी न हो, लेकिन परिवहन विभाग के आदेश के बावजूद न तो बसों में नियम लागू हुए और न ही परिवहन विभाग कोई कार्रवाई कर रहा है। विभागीय लापरवाही के कारण कई खटारा व अनफिट बसें बिना परमिट सड़कों पर दौड़ रही है। खास बात यह है कि शहर में दो बस स्टैंड हैं जहां कुल 250 से 300 बसों का परिचालन रोजाना होता हैं और इन बसों में 5 से 6 हजार यात्री प्रतिदिन सफर करते हैं।
बसों में फस्र्ट एड बॉक्स तक नहीं
बसों में सुरक्षा के जरूरी प्रबंध तक नहीं किए गए हैं। प्रत्येक बसों में फस्र्ट एड बॉक्स होना अनिवार्य हैं लेकिन कई बसों में फस्र्ट एड बॉक्स तक नहीं बने हैं। जिन बसों में बॉक्स मौजूद हैं उनमें फस्र्ट एड का सामान होने की जगह पाने-पेंचिस रखे जा रहे हैं। ऐसे में बसों में लगे फस्र्ट एड बॉक्स के यह डिब्बे महज शोपीस बने हुए हैं। स्थिति यह है कि बस चालक और परिचालक डे्रस कोड का पालन तक नहीं करते हैं। जबकि बस परिचालन के लिए डे्रस कोड अनिवार्य किया गया है।
बसों में सुरक्षा के जरूरी प्रबंध तक नहीं किए गए हैं। प्रत्येक बसों में फस्र्ट एड बॉक्स होना अनिवार्य हैं लेकिन कई बसों में फस्र्ट एड बॉक्स तक नहीं बने हैं। जिन बसों में बॉक्स मौजूद हैं उनमें फस्र्ट एड का सामान होने की जगह पाने-पेंचिस रखे जा रहे हैं। ऐसे में बसों में लगे फस्र्ट एड बॉक्स के यह डिब्बे महज शोपीस बने हुए हैं। स्थिति यह है कि बस चालक और परिचालक डे्रस कोड का पालन तक नहीं करते हैं। जबकि बस परिचालन के लिए डे्रस कोड अनिवार्य किया गया है।
रस्सी से बांधकर चला रहे काम
ग्रामीण रूटों पर चलने वाली अधिकांश बसों की हालत खस्ताहाल हैं। पत्रिका ने जब बस स्टैंड पर पहुंचकर इन बसों की पड़ताल की तो बसों के फिटनेस प्रमाण-पत्र को लेकर ही सवाल उठ खड़े हुए। भीमपुर जाने वाली एक बस में सीटों को रस्सी से बांधकर रखा गया था ताकि वह अपनी जगह से गिर न जाए। इसी प्रकार बस के पिछले गेट पर स्पोर्ट के लिए रस्सी बांधकर रखी गई थी। बस के नीचे का फर्श भी उखड़ चुका था। एक नजर देखने भर से बस के अंदुरनी हालत का पता चल जाता है। बावजूद इसके यह बस भीषण गर्मी में भी ओवर लोड होकर सवारियां ढो रही हैं।
ग्रामीण रूटों पर चलने वाली अधिकांश बसों की हालत खस्ताहाल हैं। पत्रिका ने जब बस स्टैंड पर पहुंचकर इन बसों की पड़ताल की तो बसों के फिटनेस प्रमाण-पत्र को लेकर ही सवाल उठ खड़े हुए। भीमपुर जाने वाली एक बस में सीटों को रस्सी से बांधकर रखा गया था ताकि वह अपनी जगह से गिर न जाए। इसी प्रकार बस के पिछले गेट पर स्पोर्ट के लिए रस्सी बांधकर रखी गई थी। बस के नीचे का फर्श भी उखड़ चुका था। एक नजर देखने भर से बस के अंदुरनी हालत का पता चल जाता है। बावजूद इसके यह बस भीषण गर्मी में भी ओवर लोड होकर सवारियां ढो रही हैं।
ओवर लोड होकर दौड़ रही बसें
ग्रामीण क्षेत्रों में चलने वाली अधिकांश बसे ओवरलोड होकर दौड़ती है। कंडम हो चुकी इन बसों में क्षमता से अधिक सवारियों को ढोया जा रहा है। ऐसे में यात्रियों को भी इन बसों में सफर करने के दौरान परेशानियों का सामना करना पड़ता है। बताया गया कि 55 सीटर वाली बसों में 70 से 80 यात्रियों को भरकर ले जाया जाता है, लेकिन इसके बाद भी बसों के विरूद्ध कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है। जबकि ग्रामीण क्षेत्रों के भीमपुर, चिचोली, दामजीपुरा, आठनेर, मुलताई, भैंसेदही, पट्टन, सारणी रूटों पर बसे ओवरलोड होकर चलती है।पूर्व में बसों के कई हादसे जिले में हो चुके है।
ग्रामीण क्षेत्रों में चलने वाली अधिकांश बसे ओवरलोड होकर दौड़ती है। कंडम हो चुकी इन बसों में क्षमता से अधिक सवारियों को ढोया जा रहा है। ऐसे में यात्रियों को भी इन बसों में सफर करने के दौरान परेशानियों का सामना करना पड़ता है। बताया गया कि 55 सीटर वाली बसों में 70 से 80 यात्रियों को भरकर ले जाया जाता है, लेकिन इसके बाद भी बसों के विरूद्ध कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है। जबकि ग्रामीण क्षेत्रों के भीमपुर, चिचोली, दामजीपुरा, आठनेर, मुलताई, भैंसेदही, पट्टन, सारणी रूटों पर बसे ओवरलोड होकर चलती है।पूर्व में बसों के कई हादसे जिले में हो चुके है।