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न्यू मार्केट में अब तक नहीं लगा हाइड्रेंट, पुराने शहर के चौक और कबाडख़ाने में नहीं है पानी की व्यवस्था

locationभोपालPublished: Dec 09, 2019 12:49:53 am

Submitted by:

Ram kailash napit

राजधानी के प्रमुख बाजारों में नहीं है आग से बचाव के पुख्ता इंतजाम, अतिक्रमण और संकरी गलियां फायर ब्रिगेड की राह में हैं बाधक

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भोपाल. दिल्ली के तंग व संकरे रास्तों वालों फिल्मिस्तान क्षेत्र में रविवार को भीषण अग्निकांड में जान-माल का भारी नुकसान हुआ है। भोपाल में भी ऐसे हादसों की आशंका बनी रहती है। पुराने शहर समेत अन्य क्षेत्रों की संकरी गलियों में छोटे-बड़े कारखाने संचालित हो रहे हैं, पर यहां आग से बचाव के इंतजाम नहीं हंै। नगर निगम समेत अन्य सरकारी एजेंसियों का दावा है कि सुरक्षा इंतजामों पुख्ता करने के लिए काम किया जा रहा है, पर हकीकत इससे उलट है। शहर में कई क्षेत्र ऐसे हैं, जहां आपदा की स्थिति में दमकल समेत राहत दल का पहुंचना तकरीबन नामुकिन है। अतिक्रमण ने सड़कों को गलियों में तब्दील कर दिया है। पूर्व में कबाडख़ाना, पुराना शहर एवं बैरागढ़ में हुए अग्निकांड में दमकलों को मौके तक पहुंचने में खासी मशक्कत करनी पड़ी थी, जिससे नुकसान कई गुना बढ़ गया था। हादसों से सबक न लेते हुए प्रशासन ने कोई कार्रवाई नहीं की।

फायर स्टेशन बनाए, समस्या जस की तस
पुराने शहर के चौक बाजार, लखेरापुरा, लोहा बाजार समेत आसपास के क्षेत्रों में फायर ब्रिगेड की पहुंच आसान बनाने के लिए यूनानी शफाखाना के पास फायर स्टेशन बनाया गया है। आग लगने की सूचना मिलने पर अतिक्रमण से घिरीं अंदरूनी गलियों से निकलना दमकल वाहनों के लिए आसान नहीं है। इसमें काफी समय लगता है। यही स्थिति कबाडख़ाना क्षेत्र में है। यहां भी फायर स्टेशन शुरू किया है, लेकिन यहां भी संकरी गलियां और अतिक्रमण परेशानी बना हुआ है। इससे समय पर राहत नहीं मिल पाती।
इन क्षेत्रों में छोटी सी चिंगारी बन सकती है मुसीबत
शहर में कई क्षेत्र ऐसे हैं, जहां छोटी सी चिंगारी बड़ी आग का रूप ले सकती है। पुराने शहर के चौक बाजार, जुमेराती, लखेरापुरा तो नए शहर के न्यू मार्केट, एमपी नगर में आग से सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम नहीं हैं। एमपी नगर के कोचिंग संस्थानों एवं दस नंबर मार्केट के हरे रामा-हरे कृष्णा अपार्टमेंट में सुरक्षा उपायों को पूरी तरह दरनिकार किया गया है। राजधानी का प्रमुख व्यापारिक क्षेत्र बैरागढ़ भी अतिक्रमण के कारण आग जैसी आपदाओं की जद में रहता है। आपदा की स्थिति में फायर ब्रिगेड की गाडिय़ां गलियों में फंस जाती हैं।
डेढ़ साल गुजरे, न्यू मार्केट में नहीं बिछी लाइन
पूर्व निगमायुक्त प्रियंका दास के कार्यकाल में न्यू मार्केट को आग के खतरे से पूरी तरह मुक्त करने के लिए फायर हाइड्रेंट सिस्टम लगाने का दावा किया गया था। इसके तहत बाजार में पाइप लाइन बिछाई जानी थी, ताकि आग लगने पर तुरंत ही पानी से इस पर काबू पाया जा सके। व्यवसायी प्रदीप गुप्ता बताते हैं कि डेढ़ साल बाद भी हालात जस के तस हैं। बाजार में इतनी भीड़ रहती है कि फायर ब्रिगेड की गाडिय़ां प्रवेश नहीं कर सकतीं। तीन महीने पहले एक दुकान में आग लगी थी तो दमकल को अंदर आने में एक घंटे से ज्यादा का समय लग गया।
कोंचिंग संस्थान भी सुरक्षित नहीं
सूरत में 24 मई 2019 को कोंचिंग इंस्टीट्यूट में हुए अग्निकांड के बाद जिला प्रशासन ने राजधानी में संचालित हो रहे कोचिंग संस्थानों के लिए गाइडलाइन बनाई थी। इसे लागू करने के लिए अलग-अलग टीमों ने संस्थानों का निरीक्षण भी किया था। समय बीतने के साथ ही इस मुहिम को भी ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। कोचिंग संचालकों के दबाव के चलते पुख्ता कार्रवाई नहीं हो सकी। मामला सिर्फ बैठकों, निर्देश और नोटिस तक सिमट कर रह गया।
शहर में हुए बड़े हादसों पर एक नजर
-दिसंबर 2017 में बैरागढ़ के संत हिरदाराम शॉपिंग कॉम्प्लेक्स में आग लगने से 84 दुकानें खाक हो गईं। करोड़ों का नुकसान हुआ। बमुश्किल आग पर काबू पाया जा सका।
-वर्ष 2018 में मानसरोवर कॉम्प्लेक्स और चौक बाजार में आग लगने की घटनाएं हुईं।
-वर्ष 2016 में बीएसएनएल के कार्यालय में आग लगने से बड़ा नुकसान हुआ।

-वर्ष 2015 में दस नंबर मार्केट स्थित शॉपिंग कॉम्प्लेक्स में आग लगी।
(नोट-एमपी नगर के शॉपिंग कॉम्प्लेक्स में कई बार आग लगने की घटनाएं हुई हैं।)
जरूरत 46 फायर स्टेशन की, उपलब्ध हैं 12
राजधानी में 46 फायर स्टेशन की जरूरत है, पर फायर स्टेशन सिर्फ 12 हैं। शहर का दायरा 463 वर्गकिमी और आबादी 23 लाख से अधिक है। पहले शहर का दायरा 285 वर्गकिमी था, इसके हिसाब से 12 फायर स्टेशन निर्धारित किए गए थे। नियमानुसार पचास हजार की आबादी पर एक फायर स्टेशन की जरूरत है।

इन क्षेत्रों में सबसे अधिक खतरा

-न्यू मार्केट के आसपास निगम के सब स्टेशन हैं। फायर ब्रिगेड का मुख्य कार्यालय भी पास है। यहां एक समय में 20 से 25 हजार लोगों की मौजूदगी रहती है।
-चौक शहर का सबसे पुराना और व्यस्त बाजार है। कपड़े और सराफा की कई दुकानें हैं। गलियां संकरी हैं, एक साथ दो दोपहिया वाहन निकलना मुश्किल हैं। सामान्य दिनों में दस हजार से अधिक तो त्योहारी सीजन में 25 से 30 हजार लोगों की मौजूदगी रहती है। कुछ जगह दोपहिया फायर ब्रिगेड वाहन खड़े किए जाते हैं, पर ये नाकाफी हैं।
-लखेरापुरा में कपड़ों व प्लास्टिक के सामान का बाजार है। ज्यादातर दुकानें नवाबकालीन जर्जर भवनों में संचालित हो रही हैं। तंग गलियां और बाजार में ठेलों और दुकानों के अतिक्रमण ने परेशानी बढ़ा दी है। त्योहारी सीजन में 15 से 20 हजार लोग यहां एक समय में रहते हैं।
-जुमेराती में किराना तेल और खान-पान के साथ ही इलेक्ट्रॉनिक का बड़ा बाजार है। यहां भी अतिक्रमण बड़ी समस्या है। थोक बाजार होने से यहां भीड़ अन्य बाजारों की तुलना में कुछ कम रहती है, पर संकरी गलियां परेशानी बनती हैं। एक वक्त में यहां पांच हजार से अधिक लोगों की मौजूदगी रहती है।

शहर को आग के खतरे से बचाने के लिए अधोसंरचना विकसित करने की जरूरत है। बीते सालों में कुछ नए फायर स्टेशन और उपकरणों का इंतजाम किया है, लेकिन काफी काम करना है। इस दिशा में प्रयास किए जा रहे हैं।
आलोक शर्मा, महापौर

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