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सरकार इस तरह कर रही कलाकारों का अपमान, जानिए क्यों नाराज हैं कलाकार

locationभोपालPublished: Jun 19, 2019 04:08:20 pm

Submitted by:

hitesh sharma

2007-08 में अंतिम बार तीन विधाओं में दिया गया था मध्यप्रदेश शिखर सम्मान

Neemuch Letest News In Hindi

गणमान्य अतिथियों ने किया गुरुजी का अभिनंदन।

भोपाल। अपनी-अपनी विधाओं में कला की साधना कर मध्यप्रदेश का नाम रोशन करने वाले कलाकारों को प्रदेश में ही सम्मान नहीं मिल पा रहा। सरकार ने 1980 में कलाकारों को सम्मानित करने के लिए प्रदेश का सर्वोच्च सम्मान समारोह मप्र शिखर सम्मान शुरू किया था। 27 सालों तक यह पुरस्कार दिया जाता रहा, लेकिन 2007-08 के बाद इसे बंद कर दिया गया। सरकार तीन बार कमेटियां बनाने का निर्णय ले चुकी है, लेकिन कभी इससे आगे नहीं बढ़े।

राष्ट्रीय स्तर पर दे रहे सम्मान
कलाकारों का कहना है कि संस्कृति विभाग महात्मा गांधी सम्मान, कबीर सम्मान, कालिदास सम्मान, मैथिलीशरण गुप्त सम्मान, किशोर कुमार सम्मान, लंता मंगेश्कर सम्मान, देवी अहिल्या सम्मान, तुलसी सम्मान, शरद जोशी सम्मान, राजा मानसिंह तोमर सम्मान और हिन्दी सेवा सम्मान जैसे राष्ट्रीय अवॉर्ड पर हर साल 50 लाख रुपए से ज्यादा खर्च करता है। लेकिन राज्य के कलाकारों के लिए सम्मान समारोह आयोजित नहीं कर रहे। राज्य सम्मान में हिन्दी साहित्य, उर्दू साहित्य, संस्कृत साहित्य, रूपंकर कलाएं, नृत्य, नाटक, संगीत, आदिवासी एवं लोक कलाएं और दुर्लभ वाद्य वादन में शिखर सम्मान दिया जाता है। इसमें एक लाख पुरस्कार राशि दी जाती है।
इन्हें मिल चुका है शिखर सम्मान
साहित्य के क्षेत्र में पहला पुरस्कार श्रीकांत वर्मा को दिया गया था। यह पुरस्कार भवानीप्रसाद मिश्र, हरिशंकर परसाई, रमेशचन्द्र शाह, डॉ. शिवमंगल सिंह सुमन, मंजूर एहतेशाम, निदा फाजली और मालती जोशी को भी मिल चुका है। 2007-08 में डॉ. आनंद कुमार पयासी को यह पुरस्कार दिया गया था। इसी तरह प्रदर्शनकारी कलाएं श्रेणी में पहली बार यह पुरस्कार पंडित कातिर्क राम को दिया गया था। यह पुरस्कार पण्डित कुमार गंधर्व, हबीब तनवीर, असगरी बाई, बाला साहेब पूछवाले, प्रभात गांगुली, गुरु बर्मन लाल, बंसी कौल, उस्तादअब्दुल लतीफ खां, शंकर होम्बल, गुलवर्धन, प्रहलाद सिंह टिपाणिया, अलखनंदन जैसी हस्तियों को भी मिल चुका है। अंतिम पुरस्कार बसंत रामभाऊ शेवलीकर को दिया गया था। रूपंकर कलाएं श्रेणी में पहली बार डीजे जोशी को पुरस्कृत किया गया था। यह पुरस्कार रमेश पटेरिया, विष्णु चिंचालकर, गोविन्दराम झारा, जनगण सिंह श्याम, पेमा फत्या, भूरी बाई, वामन ठाकरे, अमृतलाल वेगड़, सचिदा नागदेव, नरीन नाथ, कृष्णा वर्मा, सुशील पाल जैसी शख्सियतों को भी मिल चुका है। अंतिम बार यह पुरस्कार डॉ. लक्ष्मीनारायण भावसार को दिया गया था। तीनों विधाओं में पुरस्कार अंतिम बार वर्ष 2007-08 में ही प्रदान किए गए थे।
नाम आमंत्रित किए, फिर नहीं दिए पुरस्कार
दो साल पहले शासन ने इस सम्मान के लिए कलाकारों के नाम बुलाए थे। इसी तरह 2018 में भी विभाग ने सम्मान के लिए कलाकारों के नाम आमंत्रित किए। कलाकारों का कहना है कि विभाग कई बार कलाकारों के नाम आमंत्रित कर चुका है इसके बाद अधिकारी भूल जाते हैं। यदि विभाग को पुरस्कार देना ही नहीं है तो कलाकारों का अपमान भी नहीं करना चाहिए। करीब एक साल पहले भी संस्कृति संचालनालय के संचालक अक्षय सिंह ने कमेटियों के गठन की कवायद शुरू की थी, लेकिन कमेटियां बन ही नहीं पाई।
मध्यप्रदेश शिखर सम्मान जल्द ही शुरू किए जाने चाहिए। इससे कलाकारों को मनोबल बढ़ता है। अन्य राज्य अपने कलाकारों को आगे बढ़ाने के लिए कई तरह की कवायद कर रहे हैं। मध्यप्रदेश में शिखर सम्मान क्यों बंद किया गया, कभी इसका कारण भी कलाकारों को नहीं बताया गया।
पद्मश्री प्रहलाद टिपानिया, मध्यप्रदेश शिखर सम्मान प्राप्त
2007-08 के बाद मध्यप्रदेश शिखर सम्मान किसी कलाकार को नहीं दिया। क्या प्रदेश सरकार को यह लगता है कि मध्यप्रदेश का कोई भी कलाकार इसके लायक नहीं है। यदि ऐसा है तो रंगकर्म की गतिविधियां ही बंद कर देना चाहिए। सरकार क्यों पैसा बर्बाद कर रही है।
राजीव वर्मा, वरिष्ठ रंगकर्मी, अभिनेता और शिखर सम्मान कमेटी के पूर्व सदस्य

मध्यप्रदेश में कई बड़े कलाकार हैं, उन्हें यह पुरस्कार दिया जाना चाहिए। इससे कलाकारों का मनोबल बढ़ेगा। क्या सरकार ऐसा लगता है कि प्रदेश का कोई कलाकार शिखर सम्मान के लायक ही नहीं है।
स्मिता नागदेव, सितार वादिका

मैंने भी मध्यप्रदेश शिखर सम्मान के लिए आवेदन किया था। सरकार कलाकारों के नाम तो आमंत्रित करती है, लेकिन उन्हें पुस्स्कार नहीं देती। शिखर सम्मान जल्द ही शुरू किया जाना चाहिए।
&सभी पुरस्कारों के लिए कमेटियों का गठन किया जा रहा है। आचार संहिता के कारण मामला अटका हुआ था। जल्द ही सभी शिखर सम्मानों को लेकर निर्णय ले लिया जाएगा।
पंकज राग, प्रमुख सचिव, संस्कृति विभाग
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