ज्योति को एक दलित युव अरुण अठवाले से प्यार हो जाता है नाटक की कहानी की शुरुआत समाजवादी कार्यकर्ता नाथ देवलालीकर होती है। उसकी बेटी ज्योति को एक दलित युव अरुण अठवाले से प्यार हो जाता है। वह शादी का प्रस्ताव परिवार के सामने रखती है। देवलालीकर इसे स्वीकार कर लेता है। यह बात ज्योति की मां सेवा मुखर्जी को पसंद नहीं आती। वह सामाजिक कार्यकर्ता है, लेकिन परिवार में आ रहे इस परिवर्तन को स्वीकार नहीं करना चाहती। दो विचारधाराओं के बीच अंर्तविरोध शुरू हो जाता है। एक तरफ समाज में परिवर्तन की बात करती हैं, लेकिन एक दलित युवक से बेटी की शादी होने के खिलाफ खड़ी हो जाती हैं।
पिता के आदर्शों पर चलती है बेटी
ज्योति और अरूण की शादी के कुछ दिन बाद उनकी लड़ाई शुरु हो जाती है। वह शराब के नशे में उससे मारपीट करने लगता है। उसने मन में जातिभेद आ जाता है। वह पति का घर छोड़कर पिता के घर आ जाती है। वहीं अरूण एक पुस्तक के विमोचन के लिए ज्योति के पिता को अध्यक्ष के रूप में बुलाते हंै। इस दौरान वह भाषण देता है जिसकी समीक्षा उनकी बेटी करती है, जिसके बाद वह अरुण के पास वापस चली जाती है।