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पानी की कमी और दीमकों की मार किसानों की तोड़ रही है कमर, घटता जा रहा रेशम का उत्पादन

locationभोपालPublished: Sep 28, 2019 08:02:46 am

Submitted by:

Ashok gautam

घटता जा रहा है प्रदेश में रेशम का उत्पादन- पानी की कमी और दीमकों की मार किसानों की तोड़ रही है कमर- 77 फीसदी किसानों तक नहीं पहुंची फसल बीमा की जानकारी

प्राकृत रेशम के शो-रूम पर लग सकता है ताला, ये है कारण

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भोपाल। रेशम उत्पादन के मामले में अन्य राज्यों से प्रदेश लगातार पीछे होता जा रहा है। प्रदेश के किसानों को फसल बीमा की जानकारी नहीं मिलने और पानी की कमी के चलते किसानों की कमर टूटती जा रही है।

इसका खुलासा अटल बिहारी वाजपेयी सुशासन एवं नीति विश्लेषण संस्थान की रिपोर्ट में हुआ है। रिपोर्ट के अनुसार इससे किसान दो-चार साल रेशम की खेती करने के बाद इस धंधे से तौबा करते जा रहे हैं।

हालत यह होती जा रही है मप्र से उत्तर प्रदेश, तेलंगाना, जम्मू, मिजोरम और त्रिपुरा जैसे प्रदेश रेशन उत्पादन में पीछे थे आज ये आगे हो गए हैं। रेशम के उत्पादन में प्रदेश की रैंकिंग 12वें स्थान से 19 वें पर पहुंच गई है।
प्रदेश में रेशम उत्पाद धीरे-धीरे सिमटता जा रहा है। रेशम के उत्पादन क्षेत्र और उत्पादनकर्ता किसान भी लगातार कम होते जा रहे हैं। संस्थान की रिपोर्ट में बताया है कि रेशम उत्पादन करने से किसानों का धीरे-धीरे मोहभंग होता चला जा रहे हैं। रेशम उत्पादन संचालनालय में भारी भरकम अमला होने के बाद भी किसानों को रेशम उत्पादन बढ़ाने के लिए तकनीकी और वैज्ञानिक जानकारी नहीं मिल पा रही है।

दीमक और फसलों में नष्ट करने वाले कीड़ों को मारने के लिए आज भी किसान परंपरिक दवाओं का उपयोग कर रहे हैं, जिसके चलते उनकी फसलें बर्बाद हो जाती हैं। रिपोर्ट में बताया गया है कि ८० फीसदी किसान दीमकों की समस्या से जूझते हैं। इसमें से आधे किसानों की फसलें दीमक चाट जाती हैं।

किन जिलों में होता है रेशन का उत्पादन
रेशम का उत्पादन मुख्यत: प्रदेश के 9 जिलों में किया जाता है। जिसमें सीहोर, होशंगाबाद, भोपाल, नरसिंहपुर, ग्वालियर, शहडोल, राजगढ़, विदिशा और खरगोन सहित अन्य जिलों में होता है।


क्या-क्या बनता है रेशम से

रेशम से कपड़े के अलावा मेडिकल, इलेक्ट्रानिक सामानों सहित एक दर्जन उद्योगों में उपयोग किया जाता है। हालांकि प्रदेश में इसका सबसे ज्यादा उपयोग कपड़ा बनाने में किया जाता है। औद्योगिक क्षेत्रों में इसका उपयोग वायरलेस रिसीवर, टेलीफोन, चिकित्सा क्षेत्र में खाव में टांके लगाने में उपयोग, गाड़ी के टायर में, सैन्य के लिए पैराशूट, तोपों के लिए गन पाउडर बैग्स, होलोग्राम, डिपोजेवल कप में इसका मुख्य रूप से उपयोग किया जाता है।

किसानों को मार्केट की जानकारी नहीं
रेशम का सबसे बड़ा मार्केट बैंग्लौर है। यहां तक मात्र 9 प्रतिशत की किसान अपना माल लेकर पहुंच पाते हैं। ज्यादातर किसान प्रदेश के ही व्यापारियों और किसानों को औने-पौने दामों में माल बेंच देते हैं। इसके बालाघाट किसान अपना माल महाराष्ट्र में बेंचते हैं। बाजार की जानकारी नहीं होने से 80 फीसदी किसान अपने माल को सरकार को ही बेंच देते हैं। वहीं भी इनके पास तक राशि पहुंचने में एक माह से अधिक समय लगता है। अगर किसानों को बाजार की जानकारी सरकार उपलब्ध कराए तो किसानों को इसका ज्यादा से ज्यादा मूल्य मिल सकेगा।

क्या दिए सुझाव
– हितग्राहियों का चयन लक्ष्य के लिए नहीं बल्कि रेशम उत्पादन के लिए किया जाना चाहिए।
– जितना कृषि को महत्व दिया जाता है उतना रेशम उत्पादन को दिया जाना चाहिए।
– रेशम उत्पादन में हर वर्ष सरकार को सुविधाएं देना चाहिए, अभी सिर्फ एक बाद दी जाती है।
– किसानों को के्रडिट कार्ड की सुविधा देना जरूरी है।
– रेशम नुकसान होने पर कोई मुआवजा नहीं मिलता, जबकि फलों का सरकार मुआवजा देती है।
– एक एकड़ से भी ज्यादा क्षेत्र में रेशम तैयार करने के लिए सुविधाएं दी जानी चाहिए। जैसा कि महाराष्ट्र सहित अन्य राज्यों में होता है।
– सिंचाई के लिए पार्याप्त पानी की उपलब्ध कराना जरूरी है।
– सेंट्रल सिल्क बोर्ड बनाने की बहुत ज्यादा जरूरत है।

रेशम उत्पदान और किसानों से जुड़ी समस्याओं का अध्ययन संस्थान ने किया है। रिपोर्ट सरकार को भेज दी गई है। रिपोर्ट में क्या समस्या है और क्या उनके लिए बेहतर किया जा सकता है उसके सुझाव भी दिए गए हैं।
– मंगेश त्यागी, मुख्य सलाहकार अटल बिहारी वाजपेयी सुशासन एवं नीति विश्लेषण संस्थान भोपाल

रेशम का उत्पादन

सुशासन एवं नीति विश्लेषण संस्थान के अध्ययन रिपोर्ट पर जिला अधिकारियों से प्रतिक्रिया बुलाई गई है। जिलों से प्रतिक्रिया आने के बाद ही रेशम नीति में सुधार तथा नए एक्शन प्लान तैयार किए जाएंगे।
– कविद्र कियावत, कमिश्नर, मप्र रेशम संचालनालय
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