उमरिया के रणसिंह राठौर बोले- सरकारी दफ्तरों में भ्रष्टाचार चरम पर है। जो काम पहले 10 रुपए में हो जाता था, अब 25 रुपए में भी नहीं होता। सब्सिडी को आधार से लिंक कराने की वजह से भी लोग परेशान हैं। अब सिलेंडर भले ही 500 रुपए का हो, लेकिन वहां तो 900 रुपए ही जमा कराने हैं। दो साल से मेरे खाते में सब्सिडी ही नहीं आई है। पूछताछ करो तो कोई जवाब भी नहीं देता है। डीएपी पहले 500 रुपए में आता था अब 1300 रुपए का है। डीजल महंगा होने से ट्रैक्टर चलाना भी दूभर है। सिंचाई के लिए पानी भी नहीं मिल पा र हा है। अगले गांवों में भी कमोबेश यही मुद्दे सामने आए। विकास की स्थिति पर लोगों के पास बोलने को ज्यादा कुछ नहीं है। बार-बार पूछने पर एक ग्रामीण ने कह दिया कि मंदिर में घंटी लगाई है बड़ी सी। वह भी टूट गई।
बजरंगपुरा के एक छोटे से परिसर में चार स्कूल चलते हैं। स्कूल के सामने तालाब है, लेकिन उस पर बाउंड्रीवाल नहीं है। बालक स्कूल के परिसर में झूलों के अवशेषभर हैं। उसी के पास स्वास्थ्य केंद्र हैं और उसी से लगा छोटा सा स्कूल मैदान, जिसमें दोपहर की छुट्टी के दौरान बच्चे किसी तरह समय गुजारते नजर आए। बच्चे बेबाकी से बोले- बजरंगपुरा में पिछले चुनाव में सड़क बनी थी। इस बार पाइप लाइन के लिए उसे खोद दिया गया है। दोनों तरफ गड्ढे हो गए हैं। गाडिय़ां ही नहीं निकल पाती हैं। पानी की टंकी और लाइन है, लेकिन पानी नहीं आ रहा है। गांव के कुम्हार मोहल्ले में तो आज तक बिजली ही पहुंची। लोग दूूर से तार डालकर काम चला रहे हैं। बारिश में वे बार-बार टूट जाते हैं। जोबरा में तो सड़क ही नहीं है।
गांवों से शहर की ओर बढ़ते हैं तो मुद्दे भी एंगल बदलने लगते हैं। सड़क के किनारों बिजली के खंभों पर पोस्टर दिखते हैं, जिसमें विधायक कैलाश विजयवर्गीय को 2500 करोड़ रुपए के काम कराने का श्रेय दिया जा रहा है। उसी के नीचे अबकी बार 50 हजार पार का भी नारा है। हालांकि, यह नारा महूवासियों के लिए नया नहीं है। शब्बीर हुसैन कहते हैं, पिछली बार इन्होंने अबकी बार 25 हजार का नारा दिया था और करीब 13 हजार वोट से जीते थे। इस बार देखते हैं क्या होता है। शब्बीर व्यवस्थाओं से नाराज दिखाई दिए, लेकिन दुबई में काम कर रहे बेटे की समझाइश उन्हें तसल्ली देती है। कहते हैं, बेटे ने कहा है कि जीएसटी अभी भले परेशान कर रहा है, लेकिन आगे चलकर इससे देश मजबूत होगा। हालांकि वे ये भी बोले- अभी धंधा 50 फीसदी रह गया है। आरक्षण, जातिगत समीकरण जैसे मुद्दे उन्हें प्रभावित भी नहीं करते। दो टूक बोले- सरकार के होने न होने से फर्क ही कितना पड़ता है।
शहरी क्षेत्र के वोटर खुलकर बात करने से बचे। कुछ लोगों की राजनीति में थोड़ी-बहुत दिलचस्पी है, लेकिन वे भी इशारों में ही बात कर रहे हैं। बिजनेसमैन विष्णु चौहान कहते हैं, महू सीट पर हमेशा बराबरी का मुकाबला रहा है। कांग्रेस से अंतरसिंह दरबार लगभग तय ही हैं। भाजपा से कुछ और नाम भी हैं, लेकिन यदि विजयवर्गीय लड़ते हैं तो मुकाबला कड़ा होगा। जातिगत आंकड़े यहां ज्यादा प्रभावित नहीं करते हैं। ग्रामीण आदिवासी क्षेत्र में जरूर स्थानीय क्षत्रप परिणाम पर असर डालने की स्थिति में होते हैं।
वैसे महू के लोग कुछ मसलों के लिए लंबे समय से संघर्ष कर रहे हैं। इनमें सबसे बड़ा मुद्दा सिविल क्षेत्र का विस्तार है। कैंटोंमेंट बोर्ड और महू गांव पंचायत के बीच उलझे शहरवासियों को मकान निर्माण की अनुमति के लिए भी काफी परेशान होना पड़ता है। नगर पालिका बनाने के लिए कई बार प्रस्ताव भेजे जा चुके हैं, लेकिन हर बार वे केंद्र, राज्य और आर्मी के बीच उलझकर रह गए। नेताओं के लिए ये चुनावी मुद्दा है। महू कोर्ट के बॉर रूम में मौजूद वकील बताते हैं, यह मसला ऐसा है, जो आने वाले 50 साल में भी हल होता नजर नहीं आता। बंगला क्षेत्र के रहवासियों को अवैध करार देते हुए उन्हें वोट के नागरिक अधिकार से वंचित करने के निर्णय से भी लोग आहत हैं। अरविंद बाथम बोले- महू के 20 हजार लोग कैंट बोर्ड में वोट ही नहीं डाल पाएंगे। देश की 62 कैंट बोर्ड के 3-4 लाख लोग भी इसी तरह मताधिकार से वंचित कर दिए गए हैं। सरकार एट्रोसिटी में कोर्ट के संशोधन पर कानून ले आती है, लेकिन इस पर कोई बात करने को तक तैयार नहीं है। बाथम बोले- पहले तहसील कार्यालय से पांच रुपए प्रति पेज में नकल मिल जाती थी। अब लोक सेवा गारंटी केंद्र में 40 रुपए प्रति पेज नकल मिलती है। ठेका पद्धति ने व्यवस्था चौपट कर दी है। हर दिन सैकड़ों लोग परेशान होते रहते हैं। नाराज वकील यह तक कह देते हैं कि देश आजाद हो गया है, लेकिन महू में लगता है, जैसे अफसर रानी विक्टोरिया के प्रतिनिधि अभी हैं। दिनेश पटेल बोले- भाजपा के दोनों प्रतिनिधि बाहरी हैं। विधायक इंदौर के तो सांसद धार की हैं। हम जाएं तो कहां। इससे अच्छा है कि बहनजी को वोट दे दें या फिर नोटा दबा दें।
शहर के कुछ घरों के बाहर पोस्टर लगे हैं। इन पर लिखा है- ‘हम अन्य पिछड़ा वर्ग से संबंधित हैं और हम एट्रोसिटी एक्ट में संशोधन का विरोध करते हैं।Ó वकील पूजा उपाध्याय कहती हैं शिक्षा में आरक्षण प्रतिभा से छल है। इस पर पाबंदी लगना ही चाहिए। शहरी क्षेत्र की महिलाएं सुरक्षा को लेकर चिंतित नजर आती हैं। पायल परदेशी का कहना है, महिलाओं की सुरक्षा के लिए कड़़े कानूनी प्रावधानों के साथ ही प्रयासों को जमीनी स्तर पर उतारने की जरूरत है।
– कॉलोनियों में सुविधाओं का अभाव
फिर गांवों की तरफ लौटते हैं तो वही मुद्दे वापस आने लगते हैं। 70 पंचायतों में कृषि भूमि पर नेताओं के करीबियों द्वारा काटी गई कॉलोनियों में सुविधाओं का अभाव है। तमाम गड़बडिय़ों के बावजूद कॉलोनाइजरों पर कार्रवाई का अभाव भी लोगों की नाराजगी बढ़ा रहा है। बीच-बीच में ऐसे भी लोग मिलते हैं जो मानते हैं कि सड़क, बिजली और पानी के मामले में पहले से स्थिति बेहतर हुई है। विकास की धारा अस्पताल और स्कूल तक उतनी नहीं पहुंच पाई है।
2013 भाजपा 45 कांग्रेस 4 अन्य 1
2008 भाजपा 27 कांग्रेस 22 अन्य 1 महू विधानसभा सीट
2018 में वोटर
पुरुष 125919 महिला 118509 कुल 245075
देपालपुर 227096
इंदौर-1 329115
इंदौर-2 334062
इंदौर-3 187138
इंदौर-4 247680
इंदौर-5 368044
राऊ 288375
सांवेर 246678
2013 भाजपा 8, कांग्रेस 1
2008 भाजपा 6, कांग्रेस 3