14 जनवरी 1949 की बात है। दिल्ली में पंडित जवाहरलाल नेहरू की सरकार आकार ले चुकी थी। पूरे भारत में भारतीय तिरंगा लहराने लगा था, लेकिन भोपाल की रियासत में सबकुछ ठीक नहीं था। यहां आजादी का संघर्ष करने वालों की जान तक जा रही थी। बात उसी दौर की है जब रायसेन जिले में स्थित बोरास गांव में एक घटना ने पूरे हिन्दुस्तान को दहला दिया था। मकर संक्रांति का दिन था। मेला भी चल रहा था।
इसी बीच नर्मदा किनारे स्थित बोरास गांव में कुछ युवा तिरंगा लहराने वाले थे, इसकी सूचना भोपाल नवाब को मिल गई। नवाब ने अपने सबसे क्रूर माने जाने वाले थानेदार जाफर खान को वहां भेज दिया। जाफर भी टुकड़ी के साथ मेला स्थल पर पहुंच गे थे। थानेदार की चेतावनी भरी आवाज मेले में गूंजने लगी। नारे नहीं लगेंगे और झंडा नहीं फहराया जाएगा। किसी ने भी आवाज निकाली तो गोली से भून देंगे। उसी वक्त 16 साल का किशोर चोटेलाल आगे आ गया। उसने जैसे ही भारत माता की जय का नारा लगाया तो थानेदार बौखला गया और वीर छोटेलाल को गोली मार दी। छोटेलाल के हाथ में तिरंगा था। छोटेलाल गिरता जब तक सुल्तानगंज (राख गांव) के रहने वाले 25 साल के वीर धनसिंह आगे बढ़ गए और झंडे को गिरने से पहले ही थाम लिया। थानेदार ने धनसिंह के सीने में गोली मार दी।
इससे पहले कि धनसिंह गिरने वाला था, मंगल सिंह ने झंडा अपने हाथों में पकड़ लिया। मंगल सिंह ने भी जोश में जैसे ही नारा लगाया, थानेदार ने बोरास गांव के 30 साल के मंगल सिंह के सीने के आरपार गोली मार दी। मंगल के शहीद होते ही भंवरा का रहने वाला 25 साल का विशाल सिंह आगे आ गया। झंडे को गिरने नहीं दिया और अपने हाथ में थाम लिया और नारे लगाना शुरू कर दिया। थानेदार की दो गोलियां विशाल सिंह के सीने को चीरती हुई निकल गई। दो गोली सहने के बावजूद विशाल सिंह ने एक हाथ से झंडे को अपने सीने से लगाया और दूसरे हाथ से थानेदार की बंदूक को पकड़ लिया। तभी विशाल सिंह जमीन पर गिर गया। गिरने के बाद वो थोड़ा होश में आया तो वह लुड़कता हुआ और घिसट-घिसटकर नर्मदा के जल तक पहुंच गया, उसने वहां तिरंगा छीनने नहीं दिया। करीब दो सप्ताह बाद उसने प्राण त्याग दिए। भोपाल रियासत के भारत में विलय के लिए यहां के 6 वीरों ने अपने प्राण दे दिए थे।