जीवन में भी साइन लैंग्वेज का बहुत महत्व
सामान्य लोगों के जीवन में भी साइन लैग्वेज का बहुत महत्व है। किसी न किसी प्रकार से हर इंसान इस भाषा का उपयोग करता है। जैसे क्रिकेट, फुटबॉल और अन्य खेलों के अंपायर भी साइन लैग्वेज की मदद से ही अपना डिसीजन देते हैं। एक छोटा बच्चा और बुर्जुन व्यक्ति भी अपनी बात को इससे ही व्यक्त करता है। नई शिक्षा नीति में इसे जीवन कौशल की भाषा में शामिल किया है। संकेतिक भाषा सबसे सशक्त है। 1704 से लेकर 1714 तक एक मुक बधिर व्यक्ति राजा भी बन चुका है। इसलिए मैंने भी मूक-बधिर बच्चों का जीवन उज्जवल बनाने के लिए संकेतिक भाषा सीखी है। इन बच्चों को सीखना भी बहुत आसान लगता है। क्योंंकि उनके पास कोई भाषा नहीं होती। इसलिए वे अपनी बात व्यक्त करने के लिए भाषा सीखने में दिलचस्पी भी दिखाते हैं।
-ज्ञानेंद्र पुरोहित, साइन लैंग्वेज टीचर
लीगल केसों के लिए सांकेतिक भाषा का उपयोग
लीगल केसों के लिए सांकेतिक भाषा का उपयोग बहुत जरूरी होता है। कई बार होता है कि कोई फरियादी बोलने और सुनने में असमर्थ होता है। उस दौरान सांकेतिक भाषा से ही उसकी बात सुना जाता है। इसके लिए एक्सपर्ट रखे जाते हैं जो उनका स्टेटमेंट रिकॉर्ड कर अदालत में पेश कर सकें। इसलिए सांकेतिक भाषा के क्षेत्र में कॅरियर भी बनाया जा रहा है। देश में कई स्थानों पर इसकी मांग होती है। इस भाषा को सीखने के लिए कई ऐप भी मौजूद हैं। मेरे हिसाब से ही सभी स्कूलों में सांकेतिक भाषा का टीचर होना चाहिए। आज हर व्यक्ति को इस भाषा को सीखना चाहिए।
जिगर पंड्या, टीचर
बेटों को पढ़ाने के लिए सीखी भाषा
मैंने अपने बेटों के लिए सांकेतिक भाषा सीखी है। मेरे दो बेटे हैं। उनका नाम बंटी और विष्णु है। जो बोल और सुन नहीं सकते हैं। जब हमें उनकी इस कमजोरी मालूम हुई तो बहुत परेशान हो गए थे। जब वो बड़े हुए तो बहुत परेशानी होने लगी। उन्हें सही से पढ़ा नहीं सकते थे। इसलिए हमनें भी बेटों के साथ सांकेतिक भाषा को सीखा। यह भाषा सीखने के बाद वे अच्छे से बात करते हैं। वो जब भी कहीं जाते हैं तो मैं उनके साथ जाता हूं। मेरी इच्छा है कि वे जिंदगी में कुछ अच्छा का सकें। इसलिए उनकी हर संभव मदद करता हूं।
ओमप्रकाश लोधा, पैरेंट्स
बात करने में होती है आसानी
मेरी बेटी गुरमीत कौर 29 साल की है। वो बोलने और सुनने में असमर्थ है। उसे हमें एक हास्टल में एडमिशन दिलाया था। बस वहीं हमनें भी उससे बात करने के लिए साइन लैग्वेज सीखी थी। क्योंकि उससे बात करने में आसानी हो। उसे एक हाथ की सांकेतिक भाषा आती है लेकिन जब वो यहां आती है तो बात करने में थोड़ा परेशानी होती है। क्योंकि यहां दो हाथ की सांकेतिक भाषा का उपयोग किया जाता है। पहले उससे बात उसकी बात करने के लिए लिखना पड़ता था लेकिन अब ऐसी कोई परेशानी नहीं होती है।
मनजीत कौर, पैरेंट्स
ऑनलाइन सीखी साइन लैंग्वेज
मेरा बेटा विवेक बोल और सुन नहीं सकता है। वो अपनी बातों को लिखकर ही बताता था। लेकिन कई बार हमें उससे बात करने में परेशानी होती थी इसलिए मैंने भी उसके साथ साइन लैग्वेज सीख ली। जिससे वो अपनी बात आसानी से कह सकता है। उसे क्रिकेट का शौक है और नेशनल लेवल पर भी खेलता है। मैं उसे हर तरह से मोटिवेट करता हूं। हर पैरेंट्स को अपने बच्चों के भविष्य के लिए साइन लैग्वेज सीखना चाहिए। आज ऑनलाइन भी इस भाषा को सीखाया जा रहा है।
गौरव परांजपे, पैरेंट्स