इसलिए आया फ्री कंसल्टेंसी का आइडिया
कोरोना संकटकाल का दौर जब शुरू हुआ तो किसी ने नहीं सोचा था कि यह बीमारी इतना बड़ा स्वरूप ले लेगी। मैं भी दूसरे डॉक्टर्स की तरह रोजाना अपनी प्रैक्टि्स में व्यस्त थी। लेकिन देखते ही देखते कोरोना का संकट इस तरह से लोगों पर हावी होने लगा कि लोग बुरी तरह घबरा गये। अस्पतालों में मरीजों के इलाज के लिए पर्याप्त व्यवस्था नहीं। ऑक्सीजन और बेड की कमी से लेकर हर जगह अफरा-तफरी मची हुई थी। लोग बीमारी के खतरे से ज्यादा उसके बारे में सोचकर परेशान हो रहे थे। उस समय मुझे लोगों को टेलीमेडिसिन का आईडिया आया और मैंने फ्री कंसल्टेंसी शुरू की।
काउंसलिंग और हौम्योपेथिक और दवा का वितरण डॉ. दीप्ति ने संक्रमण से घबराये लोगों की निःशुल्क काउंसलिंग भी की और उनके दिमाग से संक्रमण का भय निकालने का कार्य किया। डॉ. दीप्ति कहती हैं कि मेरे लिए लोगों की काउंसलिंग करना इतना आसान नहीं था। लोग बहुत ज्यादा घबराए हुए थे और कई लोग तो ऐसे भी मिले जो संक्रमण के भय से आवश्यकता से अधिक काढ़ा, एंटीबायोटिक दवाओं का आदि का उपयोग कर रहे थे। एक-एक करके जब मैंने लोगों से बात की तो मुझे मालूम चला कि लोग इम्युनिटी बढ़ाने को लेकर इस तरह की दवाओं और काढ़े का अत्यधिक उपयोग कर रहे है। उसके बाद मैंने अपने सीनियर्स से डिस्कशन करके लोगों को हौम्योपेथिक दवाएं उपलब्ध कराना शुरू किया, जिससे लोगों के अंदर संक्रमण के प्रति भय कम हुआ। इसमें बड़े, बूढ़े और बच्चे सभी तरह के लोग शामिल थे। डॉ. दीप्ति ने जहां अपने प्रोफेशन को ध्यान में रखते हुए लोगों की निस्वार्थ भाव से सेवा की वहीं, उन्होंने जरूरतमंद बच्चों और लोगों को भोजन उपलब्ध कराने का भी कार्य किया। डॉ. दीप्ति कहती हैं कि मानवता मेरा पहला कर्तव्य है। लोगों का इलाज करने के अलावा लोगों की मदद करने की प्रेरणा मुझे अपने सीनियर्स और पैरेंट्स से मिली।