2. उपचुनाव में बेहतर प्रदर्शन
दूसरी बड़ी चुनौती सत्ता गंवाने के ठीक बाद उपचुनावों की है। प्रदेश में 24 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होना है। इनमें 22 सीटें वे हैं, जहां सिंधिया के बागी विधायक रहे हैं। इनके इलाकों में कांग्रेस का संगठन बेहद कमजोर है। इस कारण इन सीटों पर नए चेहरों को सामने लाना होगा। संगठन भी नए सिरे से खड़ा करना होगा। उस पर उपचुनाव के लिए कमलनाथ को मजबूत रणनीति अपनानी होगी। कांग्रेस यदि इन उपचुनावों में बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पाती है, तो उसके लिए सत्ता के रास्ते फिलहाल पूरी तरह बंद हो जाएंगे। उस पर बाकी के चार साल भी पार्टी कार्यकर्ता निराश रहेंगे। वहीं, यदि पार्टी 24 सीटें ही जीत लेती है, तो वापस अभी ही सत्ता की राह निकल सकती है। उस पर सिंधिया खेमे के बागियों को हराकर हिसाब बराबर करने का मौका भी यही उपचुनाव है। कांग्रेस उपचुनाव में बेहतर प्रदर्शन करके अपनी साख वापस पा सकती है, लेकिन उसे भाजपा और सिंधिया खेमे दोनों से जूझना होगा।
3. मजबूत विपक्ष बनकर उभरना
कांग्रेस के सामने तीसरी महत्त्वपूर्ण चुनौती मजबूत विपक्ष बनने की है। फिलहाल कमलनाथ प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष हैं, इस कारण कांग्रेस के पास मजबूत चेहरा है। कमलनाथ के नेतृत्व में मजबूत विपक्ष व संगठन बनने का काम बेहतर तरीके से हो सकता है। विधानसभा में संख्या बल के लिहाज से कांग्रेस ज्यादा कमजोर नहीं है, इसलिए मजबूत विपक्ष बनने का अवसर उसके पास है। पूर्व के पंद्रह सालों में कांग्रेस पर बार-बार यह तोहमत लगती रही है कि वह मजबूत विपक्ष नहीं रह पाती। इस तोहमत को भी कांग्रेस इस बार धो सकती है। मजबूत विपक्ष बनने की स्थिति में कांग्रेस के पास सत्ता में वापसी की राह भी आसान होगी। मजबूत विपक्ष बनने के लिए कांग्रेस को सबसे पहले खेमेबाजी से निपटकर एकता दिखानी होगी। आगे की पूरी रणनीति कांग्रेस की खेमेबाजी के दूर होने या न होने पर ही निर्भर रहेगी।