वायरल तस्वीर के साथ लिखे मैसेज में यह शिकार पन्ना जिले में इटवा में महुलिया के जंगल में होना बताया जा रहा है। इसमें रैपुरा वन विभाग के अधिकारियों को जिम्मेदार बताया जा रहा है और इस मामले को दबाने का प्रयास का भी आरोप लगाया गया है। हालांकि पन्ना जिले का वन विभाग इससे इनकार कर रहा है। उनका कहना है कि मैसेज में जो दावा किया गया है, वो क्षेत्र पन्ना जिले में ही नहीं है। खबर लिखे जाने तक यह शिकार मध्यप्रदेश के किस क्षेत्र का है, इसकी पुष्टि नहीं हो पाई थी। हालांकि तस्वीर देखकर लगता है कि उसका शिकार बंदूक से किया गया है। जिसकी गोली से उसके सिर का आधा हिस्सा नष्ट हो गया है। वन्य जीव प्रेमी वायरल तस्वीर को सोशल मीडिया पर शेयर कर लोगों से वन्य जीवों के प्रति प्रेम का संदेश दे रहे हैं और इस प्रकार से शिकार करने वालों को कड़ा दंड देने की मांग कर रहे हैं।
526 बाघों के साथ मध्यप्रदेश है टाइगर स्टेट
वन मंत्री उमंग सिंघार ने दो मार्च को ही अंतर्राष्ट्रीय वन्य-प्राणी दिवस पर प्रदेशवासियों को शुभकामना देते हुए कहा था कि अखिल भारतीय बाघ आकलन में मध्यप्रदेश 526 बाघों के साथ देश में पहले स्थान पर है। यही नहीं, तीन टाइगर रिजर्व पेंच, कान्हा और सतपुड़ा देश में प्रबंधकीय दक्षता में प्रथम तीन स्थान पर हैं।
टाइगर स्टेट का खिताब बरकरार रखना बड़ी चुनौती
टाइगर स्टेट का दर्जा मिलने के बाद मध्यप्रदेश को यह तमगा बरकरार रखना चुनौतीपूर्ण बन गया है। 2014 के बाद देश में बाघों की सर्वाधिक 150 मौत मध्यप्रदेश में ही हुई हैं। इसमें 42 बाघों का शिकार हुआ। ऐसे में सरकार को जल्द ही टाइगर प्रोटेक्शन फोर्स स्थापित करना होगा। पर्यावरणविद् अजय दुबे कहते हैं, यहां के जंगलों पर विकास के नाम पर गतिविधियां बढ़ाने का दबाव है। इसे रोकना होगा। टाइगर रिजर्व में बढ़ते जा रहे मानवीय दखल को कम करने के लिए खास रणनीति बनानी होगी। बाघों के रहवास के विकास के लिए भी ठोस कदम उठाने की जरूरत है।
GOOD NEWS: टाइगर स्टेट के बाद अब ‘घड़ियाल स्टेट’ बना मध्यप्रदेश
यह भी है खास
सन 2006 तक मध्यप्रदेश की पहचान 300 बाघों के साथ टाइगर स्टेट के तौर पर भी थी।
-2010 में यह राज्य कर्नाटक और 2014 में उत्तराखंड से भी पिछड़ गया।
-एनटीसीए की रिपोर्ट के अनुसार मध्यप्रदेश में भोपाल, होशंगाबाद, पन्ना, मंडला, सिवनी, शहडोल, बालाघाट, बैतूल और छिंदवाड़ा के जंगल शिकारियों की पनाहगाह बन गए हैं।
-मध्यप्रदेश में सन 2012 से अब तक 141 बाघों की मौत हुई है। इनमें से सिर्फ 78 मौतें सामान्य हैं। छह बाघों की मौत अपने क्षेत्र पर अधिकार को लेकर बाघों के बीच हुई लड़ाई में हुई है।
-सन 2012 से 2018 के बीच देशभर में 657 बाघों की मौत हुई जिनमें से 222 की मौत की वजह सिर्फ शिकार है।