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TIGER IN BHOPAL : केरवा-कलियासोत को रातापानी का बफर जोन बनाकर टाला जा सकता है बाघ-मानव टकराव

locationभोपालPublished: Feb 19, 2022 09:39:57 pm

Submitted by:

pankaj shrivastava

TIGER IN BHOPAL : रातापानी में टाइगर रिजर्व बनाने के लिए शुरू हो गई है मैपिंग, ऐसा हो जाता है तो…भोपाल के पास के क्षेत्र को बफर जोन बनाना ही जाना चाहिए, बाघ टी 123 और उसके शावकों पर खतरा बढ़ता जा रहा है, केरवा-कलियासोत के बाघ विचरण क्षेत्र पर बेहद ध्यान दिए जाने की जरूरत है

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TIGER IN Kaliyasot bhopal : शहर के आसपास के जंगलों में 18 से 20 बाघ भ्रमण कर रहे हैं, इनमें से चार केरवा और कलियासोत के जंगलों में भ्रमण करने के साथ इसे अपनी टेरेटरी में शामिल कर चुके हैं। अब इन बाघों में से कुछ लगातार शहर की ओर भी आ रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे हालातों में इस वन क्षेत्र को बाघों के लिए आरक्षित कर मानवीय गतिविधियां कम करना बेहद जरूरी हो गया है। तकनीकी अड़चनों को देखते हुए इसे टाइगर रिजर्व भले ही नहीं बनाया जा सकता, लेकिन जल्द ही टाइगर रिजर्व बनने जा रहे रातापानी अभ्यारण्य के बफर जोन में जरूर शामिल किया जा सकता है, ऐसा होने पर ही बाघ सुरक्षित होंगे और मानव से उसके टकराव की आशंकाएं कम हो जाएंगी।
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IMAGE CREDIT: patrika
केरवा-कलियासोत में रातापानी से आना-जाना कर रहे बाघ, बढ़ रहा है मूवमेंट
केरवा-कलियासोत के जंगल में बाघिन टी-123, इसके शावक टी-123,1 और टी-123,2 भ्रमण कर रहे हैं, इसके अलावा रातापानी से एक व्यस्क बाघ भी यहां आता-जाता है। टी-123 के शावक भी रातापानी तक आना-जाना करते हैं। एक्सपर्ट्स का कहना है कि इन जंगलों को रातापानी के साथ बफर जोन के रूप में नोटिफाइड कर बाघ संरक्षण की दिशा में बड़ा कदम उठाया जा सकता है।
यह हैं चुनौतियां

यह होता है बफर जोन
किसी भी टाइगर रिजर्व या नेशनल पार्क के कोर एरिया के बाद उसका बफर जोन होता है। दरअसल कोई भी वन उसकी सीमा के साथ किसी बाड़बंदी के तहत खत्म नहीं किया जा सकता। ऐसे में मुख्य या कोर एरिया से एक सीमा तक वन क्षेत्र चिन्हित किया जाता है जो कि वन्य प्राणियों के लिए बफर जोन का काम करता है। यह दो से 20 किलोमीटर का बफर जोन ही वन्य जीवों और मानवों के बीच टकराव को रोकता है। इसी के तहत रातापानी के बफर जोन के रूप में केरवा-कलियासोत को शामिल किया जा सकता है।
14 साल बाद टाइगर रिजर्व बनने जा रहा रातपानी
रातापानी देश की अकेली ऐसी सेंचुरी है जिसकी बाउंड्री किसी नेशनल पार्क से नहीं छूती है फिर भी यहां बाघ हैं। बाघ प्रोजेक्ट में शामिल होने के गुण होने के चलते 2008 में इस दिशा में काम शुरू हुआ। इसी वर्ष प्रस्ताव बना लेकिन इसके 14 साल बाद अंदर आ रहे कुछ गांवों को कोर एरिया से बाहर रखने का हल निकलने पर अब जाकर इसकी प्रक्रिया में तेजी आई है। वर्तमान में टाइगर रिजर्व की मैपिंग चल रही है जिसके बाद चरणबद्ध तरीके से प्रक्रिया आगे बढ़ेगी।
बाघों सहित अन्य वन्य प्राणियों को वन में रखने के लिए बेस अच्छा होना चाहिए,अर्थात पानी-भोजन और आश्रय या छिपने की जगह हो तो फिर वन क्षेत्र से वह बाहर ही क्यों आएंगे? इस दिशा में प्रयास किए जाने चाहिए। किसी भी टाइगर रिजर्व के कोर एरिया के साथ बफर जोन के लिए भी नियमित वन चाहिए। केरवा-कलियासोत में इस दिशा में कई बाधाएं हैं, लेकिन यह विचार पूरी तरह असंभव भी नहीं है। बड़ी इच्छा शक्ति हो तो एेसा कोई कदम भी उठाया जा सकता है।
आरके दीक्षित,
सेवानिवृत्त वन अधिकारी
एवं वन्य प्राणी विशेषज्ञ

केरवा-कलियासोत के जंगलों में यदि बाघ-मानवों का टकराव रोकना है तो इस क्षेत्र के अंदर जो भी निजी रकबे हैं, उन्हें यहां से विस्थपित किया जाना चाहिए। इसके साथ ही कड़ा कदम उठाते हुए संस्थानों को भी दूसरी जगह जमीन देकर शिफ्ट किया जाना चाहिए। राजस्व के खसरों को वन क्षेत्र में शामिल कर, अन्य खसरों का सेटलमेंट कर पूरे इलाके को वन क्षेत्र बना दिया जाए तो बाघों को विचरण क्षेत्र मिल जाएगा और ऐसा करके बफर जोन भी बनाया जा सकता है। ऐसा होने पर ही बाघों की रक्षा हो सकेगी और टकराव रुकेगा।
केसी मल्ल,
पूर्व सहायक वन संरक्षक
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