जानकारों की मानें तो सत्तर साल पहले केरवा और कलियासोत से लेकर रातापानी तक पचास से साठ किमी का क्षेत्र बाघों के रहवास के लिए आदर्श और अनुकूल माना जाता था। उस समय 30 से ज्याद बाघों का मूवमेंट यहां रहता था। ऐसे ही माहौल में बाघ कुनबा भी बढ़ाते थे। धीरे-धीरे इनके आवागमन की पट्टी पर शिकार और मानवीय गतिविधियां बढ़ती गईं और बाघ का मूवमेंट भी कम होने लगा। वर्ष 2009 से स्थितियां और खराब होने लगीं, कई यूनिवर्सिटी को जमीनें अलॉट की गईं तो कुछ अवैध कब्जे भी हो गए। बाघ टी-2 और बाघिन टी-2 की पांचवीं पीढ़ी का बाघ भी अपनी टैरिटरी में लौटा है। आस-पास जो दो और बाघों की दस्तक है, वह भी इसी के साथ जन्मे शावक हैं, जो वयस्क होकर अपनी टैरिटरी में लौटे हैं और यहां शिकार करना सीख रहे हैं।
शिकारियों ने कम कर दिए बाघ के शिकारजिस समय केरवा, कलियासोत में बाघों के लिए आदर्श स्थिति थी, उस समय यहां बाघ के लिए पर्याप्त शिकार की व्यवस्था रहती थी। लेकिन मानवीय दबाव और अवैध शिकार के चलते बाघ के फेमस चीतल, जंगली सूअर और गौर के बच्चे जंगल में कम हो गए। इस कारण बाघ को अक्सर गाय का शिकार करना पड़ रहा है। बाघ गाय खाता नहीं है, मजूबरी में वह इनका शिकार कर रहा है।
मैनिट: वन विभाग कर्मचारियों की मौजूदगी में लगी रहीं कक्षाएंमैनिट में बाघ की मौजूदगी के बीच पीजी कक्षाएं चल रहीं हैं। शुक्रवार को करीब 300 से अधिक विद्यार्थी कक्षाओं में पहुंचे। वन विभाग के अफसर भी दिनभर मैनिट में ही मौजूद रहे। टाइगर पिछले 13 दिन से मैनिट में मौजूद है और अब तक 5 गायों पर हमला कर चुका है। इनमें से 3 गायों की मौत भी हो चुकी है। एक दिन पहले ही गुरुवार को बाघ ने एनआरआई हॉस्टल के पास बाघ ने गाय पर हमला किया था।
ट्रेंकुलाइज के लिए चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन देंगे अनुमतिबाघ यदि मैनिट से खुद बाहर नहीं गया तो फिर इसे यहां से हटाने की कवायद शुरू की जाएगी। चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डन लिखित अनुमति देंगे। बाघ को कहां छोडऩा है ये भी तय होगा। यदि इसे ट्रेंकुलाइज करके पकड़ा गया तो फिर इसे शिवपुरी समेत दूसरे नेशनल पार्क में जहां टाइगर कम है वहां छोड़ा जा सकता है।
भोपाल किनारे हैं अर्बन टाइगर, इनपर हो रही पीएचडी भोपाल किनारे आ रहे टाइगर को अब अर्बन श्रेणी में डाल दिया गया है। ये मानवों के साथ रहवास सीख रहे हैं। कुल मिलाकर ये शहरी बाघ हैं। वन विभाग से जुड़े एक्सपर्ट का कहना है कि ये इंसानों के साथ रहने का तरीखा सीख चुके हैं। देहरादूर के एक्सपर्ट डीपी श्रीवास्तव अर्बन टाइगर मैनेजमेंट विषय लेकर पीएचडी कर रहे हैं। इन टाइगर को अब पता है कि शहर में रोशनी होती है। तेज वाहन चलते हैं और शोर भी होता है। ये इसके साथ रहना सीख गए हैं, इसलिए ही इन्हें शहर किनारे कलियासोत में दिक्कत नहीं हो रही है। आराम से रह रहे हैं।
केरवा कलियासोत के वन क्षेत्र में बाघों की उपस्थिति लगातार बनी हुई है। यह इनका प्राकृतिक रहवास है। विभाग की टीम इन पर लगातार निगाह रखी हुई है। अब जैसे भी विभाग के उच्चाधिकारियों के निर्देश होंगे, उसके अनुसार आगे कार्रवाई की जाएगी।
– आलोक पाठक, डीएफओ भोपाल