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सीएमके आश्वासन के बाद भी हो चुकी है 8 बाघों की मौत
लगातार हो रही बाघों की मौत के बावजूद प्रदेश सरकार इनके प्रति सजगता बरतती हुई नजर नहीं आ रही है। केंद्र द्वारा जारी रिपोर्ट के मुताबिक, इस साल हुई 28 बाघों की मौत में सिर्फ सात की ही सामान्य मौत हुई है। बाकि, सात बाघों का शिकार किया गया है, जबकि बाकि 14 बाघों की मौत का कारण ही स्पष्ट नहीं हैं, जो एक बड़ा सवाल है। अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस यानी 29 जुलाई को मुख्यमंत्री कमलनाथ ने बाघों की सुरक्षा को सर्वोपरि बताते हुए भरोसा दिलाया था कि, अब किसी तरह की लापरवाही के चलते बाघों की मौत नहीं होगी। हालांकि, उसके बाद से ही अब तक सूबे में 8 बाघों की मौत हो चुकी है।
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जिम्मेदारों के तर्क खड़े करते हैं सवाल
टाइगर इस्टीमेशन-2018 के तहत हुई गणना में देशभर में सबसे अधिक 526 बाघ मध्य प्रदेश में पाए गए थे। इसके बाद ही इसे टाइगर स्टेट का तमगा मिला था। लेकिन, बाघों की मौत का सिलसिला नहीं थमा। लगातार चौथे साल देश में सबसे ज्यादा बाघों की मौत मध्य प्रदेश में हुई है। हालांकि, जिम्मेदार अफसर इससे मामले से पल्ला झड़ाने के लिए ऐसे तर्क दे रहे हैं, जो न सिर्फ किसी आम इंसान को बल्कि विशेषज्ञों को भी समझ नहीं आ रहे हैं। टाइगरों की मौत अफसरों का कहना है कि, जहां ज्यादा बाघ होंगे वहां उनकी मौत का आंकड़ा भी ज्यादा होगा, जबकि विशेषज्ञ मानते हैं कि, इससे पहले आठ साल तक कर्नाटक टाइगर स्टेट रहा, यानी उस दौरान वहां सबसे ज्यादा शेर थे। बावजूद इसके वहां बाघों की मौत का आंकड़ा मध्य प्रदेश से कम था। इसलिए अफसरों द्वारा बाघ की मौत पर दिया जाने वाला ये तर्क भी सौ फीसद सत्य नहीं है।