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अब डॉक्टर बनने के लिए मिलेंगे सिर्फ सात साल

locationभोपालPublished: Oct 28, 2018 12:38:21 am

Submitted by:

Sumeet Pandey

मप्र आयुर्विज्ञान विवि ने प्रस्ताव किया तैयार, अगले सत्र से होगा लागू

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भोपाल. अब स्टूडेंट्स को एमबीबीएस पूरा करने के लिए सिर्फ साल ही मिलेंगे। इस दौरान छात्र अगर कोर्स पूरा नहीं कर पाता है तो वो चिकित्सा शिक्षा के लिए अयोग्य हो जाएगा। मप्र आयुर्विज्ञान विवि ने प्रस्ताव तैयार किया है और संभवत: अगले सत्र से इसे लागू कर दिया जाएगा। दरअसल वैसे तो एमबीबीएस कोर्स साढ़े चार साल का होता है लेकिन इसे पूरा करने की कोई समय सीमा तय नहीं है। ऐसे में कई छात्र इस छूट का फायदा उठाते हैं और दस-दस साल तक एमबीबीएस करते रहते हैं। विवि ने तय किया है कि एमबीबीएस कोर्स पूरा करने के लिए छात्रों को अब केवल सात साल ही मिलेंगे।
होंगे अयोग्य घोषित

सात साल में एमबीबीएस की सभी परीक्षाएं पूरा न करने पर विवि ऐसे छात्रों को नॉट फिट फॉर मेडिकल एजुकेशन (एनएफएमइ) घोषित कर देगा। इसके बाद छात्र चिकित्सा शिक्षा के लिए अयोग्य घोषित हो जाएगा। विवि से मिली जानकारी के मुताबिक एमबीबीएस में दाखिला लेने वाले छात्रों में महज 20 फीसदी छात्र ही ऐसे होते हैं जो सभी परीक्षाएं एक बार ही में ही पास कर लेते हैं। करीब 50 फीसदी छात्रों को परीक्षा पास करने में छह साल तक लग जाता है। वहीं बाकी छात्रों को इससे ज्यादा समय लगता है।
एक बार फेल होने से पूरा कोर्स पिछड़ जाता है

इस मामले में गांधी मेडिकल कॉलेज के डेमोस्ट्रेटर डॉ. राकेश मालवीय बताते हैं कि अगर फस्र्ट में सप्लीमेंट्री आने पर ऐसे बच्चों के लिए डिटेन बैच बना दिया जाता है। इस बैच के लिए कॉलेज में क्लास से लेकर परीक्षाएं भी अलग होती है। यह बच्चे हमेशा ही डिटेन बैच में रहते हैं। हालांकि सेकंंड इयर में डिटेन होने के बाद मुख्य कक्षा में शामिल होने का एक मौका मिलता है।
टीचर्स एकमत नहीं

इस फैसले के बाद मेडिकल टीचर्स दो धड़े में बंट गया है। एक वो है जो इस फैसले चिकित्सा शिक्षा में गुणवत्ता बढ़ाने वाला मान रहा है। वहीं दूसरी ओर कुछ शिक्षकों का कहना है कि फेल होने वाले अधिकतर छात्र कमजोर नहीं होते। वे किन्ही समस्याओं के चलते सप्लीमेंट्री में आ जाते हैं। ऐसे में होना यह चाहिए कि एक एक प्रोप को पूरा करने के लिए एक साल अतिरिक्त मिले।
अभी एमबीबीएस के लिए कोई समय सीमा नहीं है। अब नया प्रस्ताव तैयार किया गया है जिसमें कोर्स को पूरा करने के लिए सात साल का समय तय किया गया है। इस प्रस्ताव को कार्यपरिषद में मंजूर होने के बाद लागू किया जाएगा।
डॉ. आरएस शर्मा, कुलपति, मप्र आयुविज्ञान विवि

केस एक – एक विधायक का बेटा निजी मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस के थार्ड प्रॉप में है। करीब दस साल से लगातार कोशिश करने के बावजूद वो एमबीबीएस परीक्षा क्लीयर नहीं कर सका।
केस दो – शहर के सबसे बड़े बिल्डर के भतीजे ने 2007 में एमबीबीएस में दाखिला लिया। बारह साल बाद भी वो एमबीबीएस फाइनल ईयर में भी नहीं पहुंच सका।
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