ये बात इकोलॉजिस्ट डॉ. माधव गाडगिल ने पूर्व आईएएस महेश नीलकंठ बुच की स्मृति में आयोजित व्याख्यान में कही। समन्वय भवन में आयोजित व्याख्यान में बतौर मुख्य वक्ता शामिल हुए डॉ. गाडगिल ने कहा कि सभी शहरों को अपना इकोलॉजी सिस्टम मेन्टेन करना होगा। गोवा में हरियाली बची हुई है, इसलिए वहां पर्यटन का राजस्व लगातार बढ़ा है। अंग्रेजों ने हमारे देश के इकोलॉजी सिस्टम को समझ कर उसका इस्तेमाल किया, लेकिन आजादी के इतने सालों बाद भी हम इसे समझ नहीं पा रहे हैं।
बर्बाद कर रहे हैं इकोलॉजी सिस्टम :
डवलपमेंट के नाम पर इकोलॉजी सिस्टम बर्बाद कर रहे हैं। इकोलॉजी को मजबूत बनाना उतना ही जरूरी है जितना अर्थव्यवस्था को मजबूत करना। पूर्व आईपीएस अरुण गुर्टू ने पूछा कि डवलपमेंट के रास्ते में हम कहां भटक गए? इस पर गाडगिल ने कहा हमें पर्यावरण और इकोलॉजी समझ कर शहर की जरूरत के हिसाब से योजना बनानी होगी। अभिलाष खांडेकर ने पूछा कि पुणे जैसे शहर में लोग बाढ़ से मर रहे हैं, क्या सरकार योजना बनाते समय पर्यावरण को समझ ही नहीं पा रही है। इस पर डॉ. गाडगिल ने कहा कि सरकार को किसी भी योजना को बनाने से पहले जनता के बीच जरूर जाना चाहिए। यदि ऐसा नहीं होगा तो इस तरह की घटनाएं होती रहेंगी। ताजा मामला मुंबई मेट्रो का है, जहां आरे कॉलोनी में मेट्रो लाइन बिछाने के लिए पेड़ काटने के आदेश जारी हो गए, लेकिन लोग पेड़ों से चिपक कर इसका विरोध कर रहे हैं।
राकेश दीक्षित ने कहा कि प्रधानमंत्री पर्यावरण को बचाने की बात करते हैं लेकिन आम आदमी को यह नहीं पता कि करना क्या है। इस समस्या को कैसे खत्म किया जाए? इसी तरह रिटायर्ड वन अधिकारी सुहास कुमार ने नॉर्थ ईस्ट का उदाहरण देकर कहा कि वहां तो डेवलपमेंट भी कम है, फिर वे अपना पर्यावरण क्यों नहीं बचा पा रहे। इस पर गाडगिल ने कहा सरकार की बड़ी लापरवाही है, लेकिन अब वहां मिजो यंग एसोसिएशन ने संगठन बनाकर अपना पर्यावरण बचाने का जिम्मा उठाया है।
बीआरटीएस में काट दिए हजारों पेड़:
अंजलि नरोन्हा ने कहा कि पूर्व मुख्य सचिव निर्मला बुच के साथ लोगों ने शिवाजी नगर तुलसी नगर के पेड़ों को स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के नाम पर कटने से बचा लिया, लेकिन सरकार की मनमानी के चलते होशंगाबाद रोड पर बीआरटीएस के लिए हजारों पेड़ काट दिए गए।
रचना नगर निवासी आरपी कनौजिया ने कहा कि उन्होंने 20 साल पहले रचना नगर में घने जंगलों में पाए जाने वाले पौधे लगाए थे, जो आज तीन मंजिला मकानों की छतों तक पहुंच गए हैं। आज लोग इन्हें कचरा फैलाने वाले पेड़ कहकर काटने की बात कर रहे हैं। लोगों की शिकायत है कि पेड़ बड़े होने की वजह से उनके कमरों में धूप नहीं आ रही है।