क्या आप जानते हैं कि राजधानी में प्रतिदिन सौ के लगभग सीमांकन जिले भर के आरआई, पटवारियों तकनीकी एक्सपर्ट की मदद से कर रहे हैं, इसके बाद भी इनकी पेंडेंसी खत्म होने का नाम नहीं ले रही। रोजाना के 80 से 100 नए आवेदन अलग आ जाते हैं।
ऐसे में अब इसके एक्सपर्ट आएंगे और वे आरआई, पटवारियों को ट्रेनिंग देंगे। तब कहीं जाकर रोबर के माध्यम से सीमांकन की प्रक्रिया जिले में शुरू हो सकती है। लेकिन इसमें कितना समय लगेगा ये कहना अभी मुश्किल है। तब तक टोटल इलेक्ट्रॉनिक मशीन के भरोसे ही सीमांकन चलेगा।
यहां किया जाता है स्थापित
वर्तमान में जिस टोटल इलेक्ट्रॉनिक मशीन से जमीनों का सीमांकन किया जा रहा है। उस सीमांकन वाले स्थान पर स्थापित किया जाता है। इसके बाद उस स्थान से दस गुना ज्यादा बड़े क्षेत्र में चांदे, मुनारें, मेंढ़ा तक का सर्वे किया जाता है। इसके बाद सीमांकन होता है।
काफी समय लेती हैं ये मशीनें
इस मशीन को सेट करने और सर्वे में ही काफी समय लग जाता है। आना जाने में समय लगता है अलग। ऐसे में इस मशीन से एक दिन में दो से अधिक सीमांकन नहीं हो पाते। कई छोटे सीमांकन तो इसी कारण कई दिनों तक लंबित भी रहते हैं। आरआई पटवारी इसमें तकनीशियनों की मदद भी लेते हैं, क्योंकि कई आज भी इस मशीन को चला नहीं पाते।
ये आएंगी चुनौती
आरआई, पटवारियों में काफी कुछ ट्रेंड हो चुके हैं, लेकिन अभी भी कुछ ऐसे हैं जो टोटल इलेक्ट्रॉनिक मशीन को ही नहीं चला पाते हैं। ऐसे में नई रोबर मशीन से ट्रेनिंग लेना उनके लिए चुनौती भरा रहेगा।
रोबर मशीनों की विशेषता
इस मशीन में सर्वे की जरूरत नहीं होती है। ये सीधे सैटेलाइट से कनेक्ट होती है। जिले में कहीं भी इसके लिए ऊंची इमारत पर एक बेस स्टेशन बनाया जाता है। जिसमें सरकार खुद राजस्व नक्शों का डाटा अपलोड करती है। इस बेस स्टेशन से 200 से 250 किमी क्षेत्र में मशीन काम करती है।