डॉ मीणा ने बताया कि इस बीमारी से पीडि़त मरीजों का कलर डॉप्लर किया जाता है। जिन मरीजों की बीमारी बढ़ी हुई होती है, उन्हें सर्जरी की सलाह दी जाती है। उन्होंने बताया कि परंपरागत तौर पर अब तक जो सर्जरी की जा रही है उनमें मरीजों को एनेस्थीसिया दिया जाता है। इसके बाद पैर के ऊपरी हिस्से में एक चीरा लगाकर प्रभावित नसों को निकाल दिया जाता है। यह प्रक्रिया जटिल होने के साथ ही मरीजों के लिए कष्टकारक भी होती है। इसमें मरीजों को लंबे समय तक आराम करना पड़ता है।
अत्याधुनिक लेजर तकनीक से बिना चीरा लगाए मरीजों का उपचार किया जा रहा है। यह पूरी प्रक्रिया कुछ ही मिनटों में पूरी हो जाती है। मरीज को कोई तकलीफ भी नहीं होती। सबसे बड़ी बात यह है कि मरीज को एक दो दिन में डिस्चार्ज कर दिया जाता है और वह सामान्य रूप से काम करने लगता है।
गैस पीडि़तों के लिए निश्ुल्क है उपचार निजी अस्पतालों में लेजर तकनीक से इलाज कराने पर करीब 70-80 हजार रूपए का खर्च आता है, जबकि बीएमएचआरसी में गैस पीडि़तों व आयुष्मान कार्ड काडज़् धारकों का फ्री इलाज किया जा रहा है।
नसों के ठीक से काम नहीं करने से होती है समस्या डॉ मीणा के मुताबिक जब पैरों की नसें ठीक से काम नहीं करती तो वैरिकोज वेन्स की समस्या होने लगती है। इसमें नसों का वॉल्व काम करना बंद कर देता है, जिससे रक्त ह्रदय तक पहुंचने की बजाय नसों में ही इकट्ठा होने लगता है और नसें फू लकर सख्त हो जाती हैं।
बीमारी के लक्षण 1. पैरों में नसों का गुच्छा दिखना 2. पैरों में सूजन आना और चलने—फिरने में तकलीफ होना। 3. पैर की चमड़ी का रंग गहरा या बैंगनी रंग का हो जाना। प्रभावित स्थान पर त्वचा में सूखापन आ जाना और खुजली होना।
4. पैरों में घाव होना और खून का रिसाव होना। बीमारी से कैसे बचें 1. लंबे समय तक खड़े न रहें। 2. वजन नियंत्रित रखें। 3. रोज व्यायाम करें। 4. पैरों में भारीपन महसूस होने पर डॉक्टर से परामर्श लें।