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जनजातीय साहित्य में आदिवासी जीवन शैली की समग्रता निहित है

locationभोपालPublished: Nov 12, 2019 01:22:34 am

मानव संग्रहालय में जनजातीय साहित्य महोत्सव में विशेषज्ञों ने रखे विचार

जनजातीय साहित्य में आदिवासी जीवन शैली की समग्रता निहित है

जनजातीय साहित्य में आदिवासी जीवन शैली की समग्रता निहित है

भोपाल. इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मानव संग्रहालय में आयोजित तृतीय जनजातीय साहित्य महोत्सव में सोमवार को जनजातीय भाषा एवं साहित्य समानताएं और विविधताएं लिपी, प्रकाशन तथा विपणन विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस अवसर पर संग्रहालय के पूर्व निदेशक प्रो. केके मिश्रा ने कहा कि साहित्य में जनजातीय साहित्य सहित कई विधाएं शामिल हैं। आदिवासी साहित्य मुख्य रूप से आदिवासी जीवन शैली को शामिल करता है। उन्होंने गोपीनाथ मोहंती लिखित उपन्यास पाराजा का उदाहरण देते हुए अपनी बात को साबित किया। सत्र में पाच वक्ताओं ने जनजातीय समुदायों के साहित्यकारों के बारे में बताया।
डॉ. जमुना बिनि ने कहा कि जनजातीय लेखक कमल कुमार कांती की कविताओं के दो रंग है सफेद और काला। इसमें कम से कम बहुरंगी अभिव्यक्तियों का अवतार है। इसमें जनजातियों के इतिहास की झलक दिखाई देती है। इन्हें ‘चाय जनजाति के रूप मे जाना जाता है। डॉ. सुनील बोरो ने कहा कि सोशल मीडिया के माध्यम से लेखन की नई प्रवत्ति जागृत हुई है, जिससे युवा कवियों और लेखकों के बीच बोडो साहित्य के विषय में नए रूझान उभरकर आ रहे हैं। डॉ. श्रेया भट्टाचार्य ने झारखंड के कवियों के बारे में जानकारी दी। इस मौके पर चित्रों के माध्यम से विचारों की अभिव्यक्ति पर केंद्रित प्रदर्शनी चित्र-लिपी शुरू हुई। प्रदर्शनी की संयोजिका डॉ. सोमो किरो ने कहा कि यह विलक्षण प्रदर्शनी भारतीय कला में अभिव्यक्ति की अन्य शैलियों, विविध भाषाओं और जनसमुहों को अभिव्यक्त करते हुए सामाजिक और कलात्मक संदर्भों में कला की नई समझ को पारंपरिक चित्रकला के माध्यम से प्रकट करती है। गोंड, भील, राठवा, सांवरा, वारली, मुरिया इत्यादि के चित्रों की एक अलग पहचान है, जो उनके सामाजिक और आध्यात्मिक जीवन की गहराई तक जुड़ा है।
नृत्य में जनजातियों की परंपरा और संस्कार
शाम के सत्र में हुए सांस्कृति कार्यक्रम में झारखण्ड के कलाकारों ने छाऊ नृत्य पेश किया। कलाकारों ने दिखाया कि शूंभ-निशूंभ नामक दो दैत्य तपस्या कर ब्रह्मा जी से शक्ति प्राप्त कर लेते हैं और देवताओं को स्वर्ग से बाहर कर देते हैं। तब सभी देवता मिलकर मां दुर्गा व मां काली की अराधाना करते है। दोनों देवीयां दैत्यों का वध कर देती है। इसी तरह उत्तराखंड के भोटिया नृत्य, महाराष्ट्र के लोक और जनजातीय नृत्य, असम के बोंदिता की एकल नृत्य की प्रस्तुति हुई। इसके बाद मिजिरोम के हलिम्म हलिमी हमरा ने एकल प्रस्तुति से मिजरोल का कल्चर दिखाया। सिक्किम के फ्यूजन बैंड ने सांस्कृतिक गीतों की प्रस्तुति दी।
जायका में पारंपरिक व्यंजनों की महक
पारंपरिक भोजन जायका में विजिटर्स भिलाला जनजाती के मक्का की रोटी, बैगन का भुर्ता, धनिया, लहसुन की चटनी का स्वाद ले रहे हैं। यहां छत्तीसगढ़ की मुरिया जाति की अरहर की दाल, कुरकुला (चिकनकरी), झारखंड के ओरांव समुदाय का भात, सूप, चटनी, मडुआ लड्डू, मडुआ रोटी, चिकन, सिक्किम का मोमोस, थुक्पा, खुरी, सेल रोटी और बंगाल के संथाल जाती का लेटो चिकन, पुर पीठा, डोम्बो, सोनम पीठा जैसे व्यंजन उपलब्ध हैं।
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