शाम के सत्र में हुए सांस्कृति कार्यक्रम में झारखण्ड के कलाकारों ने छाऊ नृत्य पेश किया। कलाकारों ने दिखाया कि शूंभ-निशूंभ नामक दो दैत्य तपस्या कर ब्रह्मा जी से शक्ति प्राप्त कर लेते हैं और देवताओं को स्वर्ग से बाहर कर देते हैं। तब सभी देवता मिलकर मां दुर्गा व मां काली की अराधाना करते है। दोनों देवीयां दैत्यों का वध कर देती है। इसी तरह उत्तराखंड के भोटिया नृत्य, महाराष्ट्र के लोक और जनजातीय नृत्य, असम के बोंदिता की एकल नृत्य की प्रस्तुति हुई। इसके बाद मिजिरोम के हलिम्म हलिमी हमरा ने एकल प्रस्तुति से मिजरोल का कल्चर दिखाया। सिक्किम के फ्यूजन बैंड ने सांस्कृतिक गीतों की प्रस्तुति दी।
पारंपरिक भोजन जायका में विजिटर्स भिलाला जनजाती के मक्का की रोटी, बैगन का भुर्ता, धनिया, लहसुन की चटनी का स्वाद ले रहे हैं। यहां छत्तीसगढ़ की मुरिया जाति की अरहर की दाल, कुरकुला (चिकनकरी), झारखंड के ओरांव समुदाय का भात, सूप, चटनी, मडुआ लड्डू, मडुआ रोटी, चिकन, सिक्किम का मोमोस, थुक्पा, खुरी, सेल रोटी और बंगाल के संथाल जाती का लेटो चिकन, पुर पीठा, डोम्बो, सोनम पीठा जैसे व्यंजन उपलब्ध हैं।