दरअसल बिजली बिलों पर कंपनियों को 21,500 करोड़ रुपए की सालाना सब्सिडी दी जाती है। हालांकि राज्य सरकार यह सब्सिडी घटाना चाहती है। ऐसे में यदि कंपनियों की गलत बिलिंग को रोक दिया जाए, तो जानकारों के अनुसार सब्सिडी अपने आप ही घट जाएगी।
लेकिन यहां भी बिजली कंपनियां अपनी बाजीगरी से आम जनता और सरकार दोनों को उलझा देती हैं। बिजली का बिल बढ़ाने के लिए एसी और गीजर दोनों का लोड एक साथ काउंट करती हैं। यही नहीं घर के सारे प्लग, प्वाइंट और उपकरणों को एक साथ काउंट कर लोड बनाती हैं, जबकि इनका उपयोग एक साथ नहीं होता। नतीजा उपभोक्ताओं पर बिल का तो सरकार पर सब्सिडी का बोझ बढ़ता है।
यहां दशकों से बिल को सरल करने की मांग की जा रही है, लेकिन कंपनियां चालाकी और धोखा छुपाने के लिए ऐसा नहीं करती हैं। दरअसल, कंपनियां बिजली चोरी व लाइन लॉस के घाटे को पूरा करने के लिए ऐसा करती हैं।
कनेक्शन का लोड बढ़ा देती हैं कंपनियां
बिजली कंपनियाें ने घरेलू से लेकर कमर्शियल उपभोक्ता तक पर लोड फैक्टर लागू किया है। इसके तहत हर घर का लोड काउंट होता है। लोड बढ़नेे की स्थिति में बिजली बिल पर अप्रत्यक्ष तरीके से बोझ बढ़ता है। गर्मियों में खपत बढ़ने के कारण बिजली कंपनियां कनेक्शन का लोड बढ़ा देती हैं। फिर उसी हिसाब से फिक्स चार्ज, सरचार्ज आदि में बढ़ौतरी हो जाती है।
सभी चार्ज जोड़कर फिक्स चार्ज करने से राहत
: बिजली बिल सरल हो। सभी चार्ज जोड़कर प्रति यूनिट चार्ज फिक्स हो।
: बिजली की सिर्फ तीन श्रेणी बने। खेती, उद्योग और घरेलू कनेक्शन।
: सरकार की सब्सिडी का उल्लेख भी सीधे तौर पर सरल बिल में दिखे।
: हर महीने 1 से 30 या 31 तारीख तक का बिल ही बने।
उलझाते हैं अफसरबिजली में अफसरशाही जानबूझकर उपभोक्ता को उलझाती है। कनेक्शन पर एसी और गीजर का एक साथ लोड काउंट होता है। क्या भला ये एक साथ कभी चलते हैं। बिजली बिल सरल कर दिया जाए तो कई समस्याएं कम हो सकती हैं।
- किशोर कोडवाणी, ऊर्जा विशेषज्ञ