रतलाम लोकसभा सीट पर कांगे्रस का लम्बे समय से कब्जा रहा है। इस सीट से कांग्रेस के कांतिलाल भूरिया १९९८ से लगातार २००९ तक चुनाव जीते। २०१४ के चुनाव में भाजपा के दिलीप सिंह भूरिया ने इनसे यह सीट छीनी और उप चुनाव में फिर से यहां के मतदाताओं ने कांतिलाल को चुनकर संसद तक भेजा। कांतिलाल इस बार भी चुनाव मैदान में हैं।
इनके मुकाबले भाजपा विधायक जीएस डामोर हैं। भाजपा इन्हें यहां तगड़ी टक्कर दे रही है। खण्डवा में भाजपा और कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्षों के आमने-सामने होने से यहां का मुकाबला रोचक है। नंद कुमार चौहान यहां पांच बार चुनाव जीते। अरुण यादव ने वर्ष २००९ के चुनाव में इनसे यह सीट छीन ली थी।
वर्ष २०१४ के चुनाव में चौहान ने हार का बदला ले लिया। अब ये फिर से आमने-सामने हैं। २९ अप्रेल को हुए मतदान में मण्डला से किस्मत आजमा रहे फग्गन सिंह कुलस्ते का भाग्य ईवीएम में कैद हो गया है। ये भी छठवीं बार संसद जाने की इच्छा रखते हैं। गुना सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया पांचवी बार संसद पहुंचने की अपनी राह आसान करने में जुटे हैं।
विरोधियों से ज्यादा भितरघातियों का खतरा – लगातार तीन बार चुनाव जीत चुके भाजपा सांसद गणेश सिंह चौथी बार मैदान में हैं। टिकट मिलने के साथ ही इनका विरोध है। भितरघात का भी डर है। चुनाव में यह सफल हुए तो चौथी बार संसद पहुंचेंगे। सांसद भाजपा अध्यक्ष राकेश ङ्क्षसह भी चौथी बार संसद तक पहुंचने की तैयारी में हैं। इन्हें राज्यसभा सदस्य विवेक तनखा कड़ी टक्कर दे रहे हैं। ग्वालियर छोड़कर मुरैना से चुनाव लड़ रहे केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर के तीसरी बार चुनाव जीतने में कांग्रेस के रामनिवास रावत चुनौती बने हैं। विरोधी भी सक्रिय हैं।