भोपाल के हॉकी ओलंपियन
अहमद शेर खान – 1936 बर्लिन ओलंपिक
इनामुर रहमान – 1968 मैक्सिको ओलंपिक
असलम शेर खान – 1972 और 1976 ओलंपिक
सैयद जलालउद्दीन – 1984 लास एंलेजिस
समीद दाद – 2000 सिडनी ओलंपिक
बंटवारे के पहले ये दोनों ही भोपाल से ओलंपिक में गोल्ड जितने वाले खिलाड़ी हैं
उस सुनहरे दौर को याद करते हुए 1972 और 1976 ओलंपिक में भारतीय टीम का हिस्सा रहे भोपाल के असलम शेर खान बताते हैं कि ओलंपिक में भारतीय हॉकी के वर्चस्व में भोपाल का भी अहम योगदान रहा है। जब हमने ब्रिटिश इंडिया के बैनर तले 1936 बर्लिन ओलंपिक में गोल्ड मेडल जीता था तब भोपाल के दो खिलाड़ी भी इस टीम का हिस्सा रहे थे। वे हैं अहमद शेर खान और ऐशल मोहम्मद खान। बंटवारे के पहले ये दोनों ही भोपाल से ओलंपिक में गोल्ड जितने वाले खिलाड़ी हैं।
गोल्ड जीतने पर बनाया चीफ कोच
अहमद शेर खान के बेटे असलम शेर खान बताते हैं कि पिता भोपाल वांडर्स और इंडिया टीम से पावर लाइन में राइट आउट की पोजिशन पर हॉकी खेलते थे। गोल्ड मेडल जीतने के बाद उन्हें 1956 में मप्र स्कूल हॉकी टीम का चीफ कोच बनाया गया था, जब मप्र स्कूल की टीम जूनियर नेशनल स्कूल गेम्स के हॉकी में 1966 तक चैंपियन रही थी। वे शहर के सिकंदरिया और एलेक्जेंडरिया मैदान में हॉकी खेलते थे। फिर वर्ष 1930 में भोपाल हॉकी एसोसिएशन बनी और औबेदुल्ला गोल्ड कप शुरू हुआ।
हमारी ताकत नेचुरल ग्रास की हॉकी रही
असलम शेर खान कहते हैं कि हमारी ताकत नेचुरल ग्रास की हॉकी रही है। अब ये आर्टिफिशियल सर्फेस पर खेली जाने लगी। जिसमें भारतीय खिलाड़ी ज्यादा तेजी नहीं दिखा पाते। भारत के पास ड्रेवलिंग और शॉर्ट पासेस नुमाया था। यही हमारी ताकत थी। इस दौर में कई खिलाड़ी पैदा हुए जो यूरोपियन टीम को छकाकर गोल करते थे। वो हिट और रन पावर गेम आज के दौर में खो सा गया है। आज का दौर स्पीड, पावर और स्टेमिना का है। 70 मिनट में आर्टिशियल सर्फेस पर ताकत बनाए रखने में हम बहुत पीछे हैं।
अब खेल सिर्फ पैसों का रह गया है
1984 लास एंलेजिस ओलंपिक में भारतीय हॉकी के सदस्य रहे सैयद जलालउद्दीन बताते हैं कि पहले लोग देश के नाम के लिए ही खेलते थे, लेकिन आज का समय पैसे का रह गया है। पहले शहर में हॉकी के 100 से ज्यादा क्लब थे, अब दो-चार बचे हैं। देश में भी हॉकी के 100 से ज्यादा टीमें होती थीं, लेकिन ये भी 12 ही बची हंै।
इन्हीं टीमों से ही अच्छे खिलाड़ी निकल पाते हैं। वहीं ये टीमें भी उसी टूर्नामेंटों में खेलती नजर आती हैं जिसमें ईनामी राशि ज्यादा होती है। अन्य खेलों की तुलना में हॉकी के खिलाडिय़ों को कई विभागों में नौकरी नहीं दी जा रही है। जिससे हॉकी गर्त में जा रही है। इस खेल को बढ़ावा मिलना चाहिए।