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Corruption Case at Lokayukta : जमीन के जाल में उलझे उज्जैन के अफसर

locationभोपालPublished: Mar 22, 2022 06:06:46 pm

Submitted by:

Veejay Chaudhary

निजी जमीन को सरकारी बताकर 500 से अधिक जमीन मालिकों को उलझाया
मध्यप्रदेश लोकायुक्त ने जांच शुरू की, ईओडब्ल्यू ने भी दर्ज किया भ्रष्टाचार का केस
कौन सही—कौन गलत… फैसला होने तक परेशान रहेंगे जमीन मालिक

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विजय चौधरी
भोपाल। अच्छा हो या बुरा, अफसरों की हर हाल में बल्ले—बल्ले ही है। ताजा मामले में जमीनों का लेखाजोखा रखने के लिए बनाए साफ्टवेयर की एक गलती का फायदा उठाकर अफसरान जेब गरम करने में जुट गए हैं। हुआ यों कि उज्जैन की करीब 500 निजी जमीनों को रेकॉर्ड में सरकारी बता दिया गया। अब इन जमीनों पर निर्माण के लिए जो भी अर्जी अफसरों के पास आती है तो उसे खारिज कर दिया जाता हैै। हां, भेंट चढ़ जाए तो मंजूरी फटाफटा मिल जाती है।
रेकॉर्ड में निजी जमीन को सरकारी दर्ज करने की कहानी भी हास्यास्पद है। भू—अभिलेख विभाग के साफ्टवेयर के एक कॉलम में कोई एंट्री नहीं होने पर अफसरों को कुछ सूझा नहीं तो उन्होंने वहां सरकारी जमीन लिख दिया। अच्छी बात यह है कि लोकायुक्त ने इस गड़बड़झाले को गंभीर भ्रष्टाचार का मामला मानकर जांच शुरू कर दी है।

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IMAGE CREDIT: patrika
एक उदाहरण से इस मामले को समझना आसान होगा। फरवरी 1946 में उज्जैन के कोठी रोड स्थित आठ बीघा से अधिक आकार की एक जमीन सरकार ने विनोद मिल्स को बेची। तब विनोद मिल्स के मालिक ने सौदे के 50 हजार रुपए तत्कालीन कलेक्टर को सौंपे। वर्ष 1950—51 के उपलब्ध सरकारी दस्तावेज पुष्टि करते हैं कि तब से यह जमीन विनो मिल्स के नाम पर दर्ज है। कुछ वर्षों बाद यह जमीन बिकना शुरू हुई और टुकड़ों में बिकती चली गई। वर्ष 2001 में तो इसके एक हिस्से में कॉलोनी बसाने की अनुमति भी जारी हुई। वर्ष 2011—12 तक खसरे हस्त लिखित थे, इस कारण कोई परेशानी नहीं हुई। इसके बाद जैसे ही कम्प्यूटर आए, साफ्टवेयर ने कॉलम नंबर पांच में एंट्री नहीं ली तो अफसरों ने जमीन को सरकारी बता दिया। इसके बाद भी इस जमीन की खरीदी—ब्रिकी हुई और निर्माण भी हुए। मगर वर्ष 2020 में जब महेश प्रसाद पलोड़ ने इमारत की अनुमति दी गई तो बवाल हो गया।

आर्थिक अपराध ब्यूरो ईओडब्ल्यू में शिकायत हुई कि सरकारी जमीन पर निगम के अफसरों ने निर्माण की अनुमति दी है। वहां केस दर्ज कर लिया गया और जांच शुरू हो गई। इसके आधार पर 2021 में नगर निगम ने अनुमति रद्द कर दी। अब यह मामला लोकायुक्त संगठन के सामने आया है और वहां जांच शुरू हो गई है।
लपेटे में आएंगे बड़े अफसर
इस मामले में उज्जैन कलेक्टर आशीष सिंह और राजस्व विभाग के उच्च अधिकारियों से भी पूछताछ हो रही है। माना जा रहा है कि निजी को सरकारी जमीन बताने का खेल करने वाले और फरियाद के बाद भी रेकॉर्ड में सुधार नहीं करने वाले बड़े अफसरों पर भी इस मामले में शिकंजा कसा जा सकता है।
बड़े सवाल
1. ईओडब्ल्यू ने बगैर जांच के ही भ्रष्टाचार का केस कैसे दर्ज कर लिया?
2. करीब 500 जमीनों के खसरों में से कई पर निर्माण की अनुमति जारी कैसे कर दी गई?
3. नागरिकों को इस उलझन से कैसे और कब मिलेगी राहत?


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