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पीसीबी की नजर में एक भी पॉलीथिन फैक्टरी नहीं

locationभोपालPublished: Feb 01, 2019 09:50:04 am

दुकानदारों के मुताबिक शहर में चोरी-छिपे चल रहीं छोटी यूनिट्स, दिखावे की कार्रवाई और नाममात्र के जुर्माने से नहीं रुक रहा कारोबार…

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पीसीबी की नजर में एक भी पॉलीथिन फैक्टरी नहीं


भोपाल. राजधानी के हाट बाजार, मार्केट, दुकानें आदि पॉलीथिन से पटे हुए हैं। इस कारोबार से जुड़े सूत्र बता रहे हैं कि पॉलीथिन बाहर से ही नहीं आ रही, बल्कि यहां भी कुछ यूनिट्स में बनाई जा रही है। सरकारी अमला खानापूर्ति की कार्रवाई और नाममात्र का जुर्माना करता है, जिसके चलते यह कारोबार नहीं रुक पा रहा है। मप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारी यह दावा कर रहे हैं कि शहर में कहीं पॉलीथिन नहीं बनाई जा रही है। उन्हें यह भी पता नहीं कि बाहर के किन रास्तों के जरिए पॉलीथिन शहर में लाई जा रही है।
नेशनल ग्रीन टिब्यूनल ने अनाश्य प्लास्टिक प्रबंधन नियम 2011 को लागू करने के लिए जनवरी 2014 में निर्देश दे दिए थे। इस नियम के तहत 40 माइक्रोन से कम की पॉलीथिन, कैरीबैग्स के उत्पादन, बिक्री और भंडारण को प्रतिबंधित किया गया था। सूत्रों की मानें तो प्रतिबंध के बाद भी बैरागढ़ क्षेत्र के कई घरों में छोटी यूनिट्स और गोविंदपुरा इंडस्ट्रियल एरिया में पॉलीथिन बनाई जा रही है। गोविंदपुरा इंडस्ट्रियल एरिया में कुछ यूनिट्स नर्सरी बैग्स, मेडिकल बायो वेस्ट बैग्स आदि अन्य उत्पादों की आड़ में बनाते हैं। माल सिर्फ पुराने सप्लायर्स को ही दिया जाता है। पॉलीथिन के बड़े व्यापारी घोड़ा नक्कास, कबाडख़ाना, जुमेराती, हनुमानगंज, गोविंदपुरा, बैरागढ़, कोलार आदि में करीब 400 दुकानें हैं। इंदौर और गुजरात से बड़ी तादात में पॉलीथिन शहर में आ रही है।
इस धंधे से जुड़े सूत्रों पर यकीन करें तो प्रतिबंध के बाद पॉलीथिन उत्पादन 50-60 प्रतिशत तक बढ़ गया है। चार-पांच वर्ष पहले शहर में एक दर्जन पॉलीथिन यूनिट्स थीं, लेकिन वर्तमान में इनकी संख्या 52 से भी अधिक बताई जा रही है। इस धंधे से जुड़े सूत्र बताते हैं कि रोजाना शहर में 14-15 हजार किलो पॉलीथिन का उत्पादन किया जाता है।
कुल उपभोग की पॉलीथिन में से दो-तिहाई पॉलीथिन उपयोग के बाद रोजाना सड़कों पर फेंक दी जाती है। इससे पर्यावरण और जानवरों को नुकसान पहुंचता है। नाले-नालियां भी पॉलीथिन से चोक हो जाते हैं। पानी प्रदूषित होता है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारियों को यह नहीं पता कि कहां पॉलीथिन का निर्माण हो रहा है या बाहर से शहर में पॉलीथिन कहां से आ रही है।
राजधानी में कोई यूनिट पॉलीथिन बना रही है, ऐसा संज्ञान में नहीं है। हमें पता चले तो निश्चित तौर पर कार्रवाई करेंगे। मंडीदीप में दो यूनिट्स थीं, जिनमें अब पॉलीथिन नहीं बनाई जा रही है। बाहर से आने वाली पॉलीथिन का रूट पता चले तो कार्रवाई करेंगे।
– डॉ. पीएस बुंदेला, रीजनल अफसर, एमपीपीसीबी
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