इस धंधे से जुड़े सूत्रों पर यकीन करें तो प्रतिबंध के बाद पॉलीथिन उत्पादन 50-60 प्रतिशत तक बढ़ गया है। चार-पांच वर्ष पहले शहर में एक दर्जन पॉलीथिन यूनिट्स थीं, लेकिन वर्तमान में इनकी संख्या 52 से भी अधिक बताई जा रही है। इस धंधे से जुड़े सूत्र बताते हैं कि रोजाना शहर में 14-15 हजार किलो पॉलीथिन का उत्पादन किया जाता है।
कुल उपभोग की पॉलीथिन में से दो-तिहाई पॉलीथिन उपयोग के बाद रोजाना सड़कों पर फेंक दी जाती है। इससे पर्यावरण और जानवरों को नुकसान पहुंचता है। नाले-नालियां भी पॉलीथिन से चोक हो जाते हैं। पानी प्रदूषित होता है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारियों को यह नहीं पता कि कहां पॉलीथिन का निर्माण हो रहा है या बाहर से शहर में पॉलीथिन कहां से आ रही है।
राजधानी में कोई यूनिट पॉलीथिन बना रही है, ऐसा संज्ञान में नहीं है। हमें पता चले तो निश्चित तौर पर कार्रवाई करेंगे। मंडीदीप में दो यूनिट्स थीं, जिनमें अब पॉलीथिन नहीं बनाई जा रही है। बाहर से आने वाली पॉलीथिन का रूट पता चले तो कार्रवाई करेंगे।
– डॉ. पीएस बुंदेला, रीजनल अफसर, एमपीपीसीबी