1. गणपति की लव स्टोरी…
* अब तक आपने पार्वती-शिव, विष्णु-लक्ष्मी, सीता-राम, राधा-कृष्ण की प्रेम कथाएं सुनी होंगी, पर क्या आपने गणपति की लव स्टोरी सुनी है…चौंक गए न….!
* पर एक कथा भगवान गणेश और तुलसी की भी है।
* लेकिन इस कथा में मिलन नहीं बल्कि प्रेम प्रस्ताव को गणपति के इनकार का वर्णन मिलता है।
* कथा के मुताबिक एक दिन तुलसी नदी किनारे घूम रही थीं।
* वहां उन्होंने देखा की एक व्यक्ति बड़ी तल्लीनता से तपस्या कर रहा है।
* वह व्यक्ति कोई और नहीं स्वयं भगवान गणपति थे।
* उनके चेहरे के तेज से तुलसी इतनी प्रभावित हुईं कि उनसे प्रेम करने लगीं।
* वे उनके पास गईं और उन्हें विवाह का प्रस्ताव दे दिया।
* तब गणपति ने शालीनता से उनके प्रेम प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया।
*उन्होंने कहा कि वे उस कन्या से विवाह करेंगे, जिसके गुण उनकी मां पार्वती जैसे हों।
* यह सुनते ही तुलसी को क्रोध आ गया।
* उन्होंने इसे अपना अपमान समझकर भगवान गणपति को श्राप दिया कि उनका विवाह उनकी इच्छा के विरुद्ध होगा। उन्हें पार्वती के समतुल्य जीवनसंगिनी नहीं मिलेगी।
* यह सुनते ही गणपति भी क्रोधित होकर आपा खो बैठे और उन्होंने तुलसी को श्राप दे दिया।
* उन्होंने श्राप दिया कि उनका विवाह एक असुर के साथ होगा।
* इसके बाद तुलसी को अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने गणपति जी से माफी मांगी।
* तब गणेपति जी ने उन्हें माफ करते हुए कहा कि वे एक ऐसा पौधा बनेंगी, जिसे पूजा जायेगा, लेकिन गणपति की पूजा में कभी भी तुलसी का प्रयोग नहीं किया जाएगा।
* गणपति के श्राप के बाद तुलसी का विवाह शंखचूड़ नामक असुर से हुआ, जिसे जालंधर के नाम से भी जाना जाता है।
* वहीं तुलसी को एक पौधे के रूप में पूजे जाने का वरदान भी सच हुआ।
2. गणपति के चार नहीं दो हाथ
अलग-अलग कथाओं और प्रमाणों में भगवान गणेश के बारे में कई तथ्य सामने आए। कुछ ऐतिहासिक तथ्यों में सामने आया कि पहले गणपति के चार नहीं बल्कि दो ही हाथ थे…हैरान रह गए न…! हालांकि लेकिन समय के साथ उनके रूप में बदलाव आए…पढें़ ये फैक्ट..
* गणेश भगवान के बारे में धारणा बदलने वाली खोज किसी इतिहासकार ने नहीं बल्कि मुंबई के एक डॉक्टर ने की है।
* शौकिया आर्ट कलेक्टर डॉ. प्रकाश कोठारी को दूसरी सदी की टेराकोटा की एक ऐसी मोहर मिली जिसमें भगवान गणेश के सिर्फ दो हाथ हैं।
* सूंड का स्टाइल भी वैसा नहीं है, जैसा अब देखने को मिलता है। धार्मिक इतिहास के लिए यह एक बड़ी खोज साबित हो सकती है।
* अक्सर कुछ पुरानी चीजें खोजने के लिए मुंबई के ‘चोर बाजार’ जाने वाले डॉ. कोठारी को एक दिन टेराकोटा की मोहर में यह प्रमाण मिला।
* इस मोहर में ध्यान से देखने पर दो हाथ वाले गणेश जी के पीछे आभामंडल नजर आता है।
* इसके पीछे की ओर ब्रह्मी में ‘जागेश्वर’ लिखा हुआ है।
* हालांकि इतिहासकार इस बात पर राजी हैं कि यह अब तक की सबसे पुरानी गणेश की प्रतिमा हो सकती है, लेकिन इसके काल को लेकर अब भी उनका मत अलग-अलग है। यदि इस पर रिसर्च जारी रही तो इस मुहर से भगवान गणपति की उम्र भी पता चल सकेगी।
जिस मूर्ति में सूंड का आगे वाला हिस्सा दायीं ओर मुड़ा हो, उसे दक्षिण मूर्ति या दक्षिणाभिमुखी मूर्ति कहते हैं। यहां दक्षिण का अर्थ है दक्षिण दिशा या दायीं तरफ।
* दक्षिण दिशा यमलोक की ओर ले जाने वाली व दायीं दिशा सूर्य नाड़ी की है। जो यमलोक की दिशा का सामना कर सकता है, वह शक्तिशाली होता है व जिसकी सूर्य नाड़ी कार्यरत है, वह तेजस्वी भी होता है।
* इन दोनों ही अर्थों में दायीं तरफ सूंड वाले गणपति को ‘जागृत’ माना जाता है।
* ऐसी मूर्ति की पूजा विधि में सर्व नियमों का यथार्थ पालन करना आवश्यक है।
* इससे सात्विकता बढ़ती है व दक्षिण दिशा से प्रसारित होने वाली रज किरणें कष्ट नहीं देतीं।
* दक्षिणाभिमुखी मूर्ति की पूजा सामान्य पद्धति से नहीं की जाती। क्योंकि तिर्यक किरणें दक्षिण दिशा से आती हैं। जहां पाप-पुण्य का हिसाब रखा जाता है।
* यदि दक्षिण की ओर मुंह करके बैठे या सोते समय दक्षिण की ओर पैर रखें तो जैसी अनुभूति मृत्यु के बाद अथवा मृत्यु पूर्व जीवित अवस्था में होती है, वैसी ही स्थिति दक्षिणाभिमुखी मूर्ति की पूजा करने से होने लगती है।
* विधि विधान से पूजन ना होने पर यह श्री गणेश आपसे रुष्ट हो जाते हैं।
* वाम यानी बायीं ओर या उत्तर दिशा। * बाईं ओर चंद्र नाड़ी होती है। यह शीतलता प्रदान करती है एवं उत्तर दिशा अध्यात्म के लिए पूरक है, खुशियां देने वाली है।
* इसलिए पूजा में अधिकतर वाममुखी गणपति की मूर्ति रखी जाती है।
* इसकी पूजा प्रायिक पद्धति से की जाती है।
* ये गणेश प्रतिमा गृहस्थ जीवन के लिए शुभ मानी गई है।
* इन्हें विशेष विधि विधान से पूजा की जरूरत नहीं होती।
* ये शीघ्र ही प्रसन्न होते हैं।
* थोड़े में ही संतुष्ट हो जाते है और गलतियों पर क्षमा भी तुरंत कर देते हैं।