स्थानीय समीकरणों के साथ सूबे की सियासत के गुणा-भाग भी मायने रखते हैं। इस कारण दोनों दलों में दिग्गज नेताओं की पसंद, जीत व खर्च की क्षमता और अन्य समीकरण के आधार पर ही टिकट तय होंगे। कांग्रेस ने इंदौर के लिए टिकट घोषित कर दिया है। भाजपा में इस महीने के अंत तक टिकट फॉर्मूला व चेहरे तय हो जाएंगे, ताकि प्रत्याशियों को प्रचार के लिए भी समय मिल सके।
नए चेहरों के प्रयोग के पेंच
प्रदेश भाजपा इंदौर-भोपाल सहित अन्य जगह प्रयोग अपना सकती है। इससे पहले जिलाध्यक्षों से लेकर प्रदेश पदाधिकारियों के चयन में कतारबद्ध दावेदारों और वरिष्ठों को दरकिनार करके नए चेहरे सामने लाने का प्रयोग भाजपा कर चुकी है। भोपाल में जिलाध्यक्ष सुमित पचौरी और इंदौर में जिलाध्यक्ष गौरव रणदीवे का चयन इसी तरह हुआ था। महापौर पद के लिए भी संगठन नए चेहरों की चाल चल सकता है। ऐसा होने पर दावेदारों के दांव फेल हो सकते हंै और संगठन की पसंद ही काम करेगी।
संभावित फॉर्मूला
भाजपा: जिताऊ चेहरा, उम्र, हारे न हों, विधायक न हो, रायशुमारी में नाम और अर्थतंत्र।
कांग्रेस: जिताऊ चेहरा, आर्थिक क्षमता, सर्वे में नाम, दिग्गज नेताओं की पसंद।
भोपाल में महापौर पद के प्रमुख दावेदार
बीजेपी से विधायक कृष्णा गौर, राजो मालवीय, सुषमा साहू, कमलेश यादव, सविता सोनी, उपमा राय वही कांग्रस से पूर्व महापौर विभा पटेल, पार्षद संतोष कंसाना, शब्सिता जकी का नाम प्रमुख दावेदारों में चल रहा है। भोपाल नगर निगम का रिकार्ड रहा है कि दस साल से भाजपा का कब्जा है। 1999-2000 में कांग्रेस से विभा पटेल फिर वर्ष 2004-05 में सुनील सूद जीते। इसके बाद भाजपा से कृष्णा गौर और फिर आलोक शर्मा महापौर रहे।
इंदौर में महापौर पद के प्रमुख दावेदार
बीजेपी से मधु वर्मा पूर्व आइडीए अध्यक्ष, सुदर्शन गुप्ता पूर्व विधायक, गोविंद मालू, विधायक रमेश मेंदोला, गोपीकृष्ण नेमा, कृष्णमुरारी मोघे पूर्व महापौर। वही कांग्रेस से महापौर पद के लिए प्रत्याशी बनाने विधायक संजय शुक्ला का नाम तय किया गया है। कांग्रेस ने इस निगम में बाजी मार ली है। इंदौर नगर निगम का रिकार्ड रहा है कि वर्ष 2000 से इंदौर नगर निगम में भाजपा का कब्जा है। वर्ष 1995 में मधुकर वर्मा कांग्रेस से आखिरी महापौर थे। उसके बाद से कभी कांग्रेस नहीं जीती।
जबलपुर में महापौर पद के प्रमुख दावेदार
बीजेपी से संघ के डॉ. जितेंद्र जामदार, पूर्व महापौर प्रभात साहू, कमलेश अग्रवाल, महिला मोर्चा की अश्विनी परांजपे, पूर्व महापौर सदानंद गोडबोले आदि। वही कांग्रेस से विधायक तरुण भनोत के भाई गौरव भनोत, सौरभ शर्मा, आलोक मिश्रा, विधायक विनय सक्सेना, जगत बहादुर अन्नू, बाबू विश्वनाथ दावेदार हैं। जबलपुर नगर निगम का रिकार्ड रहा है कि 1999 में कांग्रेस आखिरी बार महापौर पद पर थी। तब विश्वनाथ दुबे महापौर थे। इसके बाद से जबलपुर नगर निगम में भाजपा का ही कब्जा बना हुआ है।
ग्वालियर में महापौर पद के प्रमुख दावेदार
बीजेपी से पूर्व महापौर समीक्षा गुप्ता, पूर्व मंत्री मायासिंह, सुमन शर्मा, पूर्व महिला आयोग सदस्य प्रमिला वाजपेयी, खुशबू गुप्ता। वही कांग्रेस से जिलाध्यक्ष देवेंद्र शर्मा की पत्नी रीमा, सतीश सिकरवार की पत्नी शोभा, अशोक सिंह की पत्नी राजेश रानी के अलावा रश्मि पंवार, रुचि राय दावेदार हैं। ग्वालियर नगर निगम का रिकार्ड रहा है कि कांग्रेस से वर्ष 1965 में विष्णुमाधव भागवत आखिरी महापौर थे। तब से अब तक भाजपा का कब्जा है। इस सीट को छीनने में कांग्रेस को काफी मशक्कत करनी पड़ सकती है।
सिंधिया फैक्टर भी
राज्यसभा सदस्य ज्योतिरादित्य सिंधिया का फैक्टर दोनों पार्टियों को प्रभावित करेगा। कांग्रेस के लिए यह पहला चुनाव होगा, जब ग्वालियर-चंबल में सिंधिया समर्थकों को टिकट देने का दबाव नहीं रहेगा। भाजपा को अप्रत्यक्ष रूप से सामना करना होगा। अब तक सीधे तौर पर सिंधिया ने दखलंदाजी नहीं की है, लेकिन पार्टी परिवर्तन के बाद सिंधिया खेमे को काफी उम्मीदें हैं।