डॉ. व्यास ने बताया कि हाल ही में उन्होंने राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय और बगरोदा इंडस्ट्रियल एरिया के पास स्थित पहाडिय़ों का भ्रमण किया था। वहां उन्हें दस हजार साल से लेकर 15-17 लाख साल पुराने तक ऐतिहासिक व पुरातात्विक साक्ष्य मिले हैं। इनमें रॉक शेल्टर्स, रॉक पेंटिंग्स और प्रारम्भिक पाषाण काले के पत्थर के औजार व हथियार शामिल हैं। रॉक पेंटिंग्स में कहीं भैंसे, कहीं अन्य जीवों समेत विभिन्न चित्र मौजूद हैं।
आरजीपीवी के पास पहाड़ी पर 8-10 रॉक शेल्टर्स बने हुए हैं। बगरोदा की पहाड़ी पर सैकड़ों की मात्रा में आदिमानव के पाषाण हथियार बिखरे हुए हैं। इनमें से 40-50 पाषाण शस्त्र वे उठाकर ले आए। वर्ष 1957-58 में पद्मश्री डॉ. विष्णु श्रीधर वाकणकर यहां आए थे और उन्होंने कोशिश भी की थी, लेकिन इन खास क्षेत्रों को अभी तक एक्सप्लोर नहीं किया जा सका।
गंगा-जमुना से पुरानी सभ्यता
यह क्षेत्र विंध्याचल पर्वत श्रृंखला में आता है। इस श्रृंखला में तमाम नदियां-घाटियां हैं। नर्मदा-बेतवा क्षेत्र में मानव विकास के प्राचीनतम अवशेष मिले हैं। यहां की सभ्यता गंगा-जमुना से भी बहुत पुरानी है। भोपाल पाषाणकाल का प्रमुख केन्द्र रहा। भोपाल के सिवा रायसेन, विदिशा, सीहोर, होशंगाबाद, राजगढ़ आदि जिलों में आदिमानव की सभ्यता बहुत पनपी। यहां प्रचुर मात्रा में खाने के लिए कंदमूल, फल, शस्त्र बनाने को पत्थर आदि थे।
भोपाल पुरा पाषाण काल और उत्तर पाषाण काल की सभ्यता का प्रमुख केन्द्र रहा है। विकास के साथ ऐतिहासिक, पुरातात्विक व सांस्कृतिक धरोहरों को बचाने की जरूरत है।
– डॉ. नारायण व्यास, वरिष्ठ पुरातत्वविद्
आरजीपीवी, बगरौदा आदि राजधानी के आसपास स्थानों पर पाए गए रॉक शेल्टर्स, रॉक पेंटिंग्स, टूल्स की प्रामाणिकता की जांच की जाएगी। इसके बाद उन्हें संरक्षित करने का प्रस्ताव तैयार किया जाएगा।
– भुवन विक्रम, अधीक्षण पुरातत्वविद्, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण