फिलहाल इस पर मंथन जारी है कि ये वाहन पुलिस खरीदें या कंपनी की जिम्मेदारी तय होगी। टेंडर प्रक्रिया में सभी वाहन निर्माता कंपनियों को आमंत्रित किया जाना है। इसके साथ ही रेस्पॉन्स टाइम सहायता के लिए संबंधित द्वारा डायल 100 को फोन करने के बाद पुलिस के पहुंचने का भी कम किया जाएगा।
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गौरतलब है कि पांच साल पहले डायल-100 के लिए टेंडर बुलाया गया था। इसके लिए 800 करोड़ का बजट था। वाहनों की संख्या बढ़ने के साथ ही इस बजट को करीब एक हजार करोड़ रुपए या इससे अधिक किया जा सकता है। मैपआइटी के सहयोग से तैयार हो रहा सिस्टम डायल 100 को और अधिक प्रभावी बनाने के लिए जीआइएस मैपिंग का काम जारी है। इससे सभी लोकेशन्स मोबाइल ऐप पर संबंधित अधिकारियों के पास होगी। इसके अलावा कंट्रोल रूप से कॉलर और एफआरवी के पायलेट की आपस में बात हो सकेगी। हालांके दोनों के मोबाइल पर एक-दूसरे का नंबर दिखाई नहीं देगा, ताकि निजता के हनन की आशंका न रहे।