पार्टी नहीं जनता की जरूरतों को समझें
ऐसे प्रतिनिधि की जरूरत है जिसके एजेंडे में जनहित सर्वोपरि हों। नेता केवल पार्टी लाइन पर न चलें। सही को सही और गलत को गलत कहने का साहस होना चाहिए। देखने में आता है कि नेता बहस और तर्कों से डरते हैं, जो जनता से दूरी को बढ़ाता है।
– डॉ. कैलाश त्यागी, प्राध्यापक एमवीएम
सभी को समान अवसर देने के लिए प्रतिबद्धता
महिला सुरक्षा बड़ा मुद्दा है। जनप्रतिनिधि ऐसा हो जो महिला- पुरुष को बराबरी का दर्जा दे। दोनों को ही समान अवसर उपलब्ध कराए। जनप्रतिनिधि के पास रोजगार के अवसर बढ़ाने के लिए रोड़ मैप होना चाहिए। ताकि बेहतर भविष्य दिया जा सके।
– डॉ.राजकुमारी सुधीर, प्राध्यापक, नूतन कॉलेज
क्षेत्र की समस्याओं के हल के लिए हो गंभीर
आज राजनीति में अपराधीकरण एवं धनबल का समावेश है, जिसे दूर किया जाना जरूरी है। जनप्रतिनिधि का जनता से जुड़ाव एवं समस्याओं से परिचित होना आवश्यक है। जनप्रतिनिधि शिक्षित हो, जिससे समुचित विकास हो सके।
प्रभात पाण्डेय, लाइब्रेरियन, नूतन कॉलेज
खारिज किए जाएं अयोग्य जनप्रतिनिधि
राजनीति जनसेवा का सशक्त माध्यम थी, लेकिन इसकी परिभाषा बदल दी है। राजनीति अब जनसेवा का माध्यम न होकर स्वार्थ सिद्ध करने का जरिया बन गई है। जनहित की अनदेखी करने वालों को खारिज करने का समय आ गया है। – डॉ. मीनू पाण्डेय, सहा. प्राध्यापक सत्य साईं महिला महाविद्यालय
विजन और मिशन की हो नेताओं को समझ
विकास के लिए प्रगतिशील सोच रखने वाले जनप्रतिनिधि की जरूरत है। जिसके पास विजन और मिशन हो। कार्यों को समय पर पूरा किया जा सके। मौका परस्त नहीं होना चाहिए, क्योंकि कई बार विकास के वादे चुनावी घोषणाएं बनकर रह जाती हंै।
– डॉ. राजेश श्रीवास्तव, प्राध्यापक, श्यामा प्रसाद मुखर्जी कॉलेज
सजग और दूरदृष्टि वाला हो जनप्रतिनिधि
जनप्रतिनिधि दूरदृष्टि वाला होना चाहिए, जिससे क्षेत्र का विकास व्यवस्थित हो सके। सजगता से विकास कार्य कराए जाएं, ताकि सडक़ें बनने के बाद बिजली और पानी की लाइन के लिए इन्हें फिर से न खोदना पड़े। तभी भोपाल विकसित शहर बन सकेगा।
– डॉ. कीर्ति श्रीवास्तव, प्राध्यापक प्राणी शास्त्र
जनउपयोगी कार्यों का न किया जाए विरोध
जनप्रतिनिधि वही है जो आमजन का प्रतिनिधित्व संसद या विधानसभा में कर सके। आधारभूत जरूरतों को पूरा करने के लिए न केवल योजनाएं बनवाए, बल्कि उनके क्रियान्वयन के लिए भी कार्य करे। उन मुद्दों पर विरोध न किया जाए जो जनउपयोगी हैं।
– डॉ. परशुराम शुक्ला, प्राध्यापक एवं साहित्यकार