scriptMP में मतदान : यहां पीठासीन अधिकारियों को तक बैठना पड़ा मतदान कक्ष के बाहर | Voting in MP: while presiding officers had to sit outside polling room | Patrika News

MP में मतदान : यहां पीठासीन अधिकारियों को तक बैठना पड़ा मतदान कक्ष के बाहर

locationभोपालPublished: Nov 03, 2020 12:38:13 pm

कोविड संक्रमण को देखते हुए मतदाताओं को तमाम तरह के निर्देश…

मध्यप्रदेश की 28 विधानसभा सीटों को लेकर उपचुनाव आज, मंगलवार को शुरु हो चुके हैं। वहीं इसी बीच आगर मालवा को लेकर एक खास खबर आई है। जिसके चलते यहां पीठासीन अधिकारियों को तक मतदान कक्ष के बाहर बैठना पड़ रहा है।

सामने आ रही जानकारी के अनुसार आगर मालवा में निर्वाचन आयोग ने मतदान के लिए कोविड-19 के तमाम निर्देशों का पालन तो किया, लेकिन मतदान केंद्रों की साइज़ पर ध्यान देना शायद भूल गया। ऐसे में यहां कई मतदान केंद्र इतने छोटे बनाए गए हैं, कि मतदान कर्मियों की टेबल बिल्कुल सटाकर लगानी पड़ी और पीठासीन अधिकारियों को मतदान कक्ष के बाहर बैठना पड़ रहा है।

दरअसल आगर-मालवा.मध्यप्रदेश (MP) में हो रहे उपचुनाव में आगर विधानसभा ( 166 ) सीट पर रोचक मुकाबला माना जा रहा है। इस सीट (Seat) पर दो युवा उम्मीदवारों की टक्कर होने जा रही है। कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही दलों ने युवाओं पर भरोसा जताया है। बीते चुनाव में स्वर्गीय मनोहर ऊंटवाल जैसे अनुभवी नेता से मात्र 2490 वोटों से हारे कांग्रेस के विपिन वानखेड़े का मुकाबला इस बार मनोहर ऊंटवाल के बेटे मनोज उर्फ बंटी ऊंटवाल से होगा।

आगर सीट पर 8 प्रत्याशियों के बीच चुनावी रण है। आधा दर्जन जाति से जुड़े मतदाताओं ने किसी एक फैक्टर के साथ नहीं जाने की राह चुनी है। अजा वर्ग के साथ ही मुस्लिम, यादव, सौंधिया राजपूत, जैन, अग्रवाल, ब्राह्मण व गवली समाज क्षत्रपों में बंटा है, ये दोनों ही प्रमुख दलों के मतदाताओं में शामिल है।

वहीं अब जब चुनाव जारी हैं तो कोविड संक्रमण को देखते हुए जहां मतदाताओं को तमाम तरह के निर्देशों का कड़ाई से पालन करना पड़ रहा है, जबकि कोविड के बीच मतदान केंद्र अत्यंत छोटे बना दिए जाने से यहां मतदान कर्मियों को परेशानी का सामना करने के अलावा पीठासीन अधिकारियों को मतदान कक्ष से बाहर बैठने को मजबूर होना पड़ रहा है।

भाजपा के लिए इतिहास का प्रदर्शन उम्मीद है तो कांग्रेस युवाओं की टीम के भरोसे अपनी चुनावी रणनीति को मूर्तरूप दे रही है। यहां से एक पूर्व कांग्रेसी भी निर्दलीय मैदान में है, लेकिन कांग्रेस के रणनीतिकार ज्यादा महत्व नहीं दे रहे। बसपा की मौजूदगी का प्रभाव प्रचार में नहीं दिख रहा तो कुछ निर्दलीय सिर्फ वोट काटने के तौर पर देखे जा रहे हैं। बहरहाल, मतदाता प्रचार के दावों के बीच अपनी खामोशी नहीं तोड़ रहा।

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