जिला प्रशासन ने चुनाव के दौरान जांच कराई तो इसका खुलासा हुआ। इनके मालिकों की सूची तैयार कराई गई है। जल्द ही लाइसेंस धारकों को नोटिस जारी किए जाएंगे। जो लोग गन लेने नहीं आएंगे, उन्हें राजसात किया जाएगा।
डेढ़ दशक बाद हुई आम्र्स दुकानों की जांच में पता चला था कि बड़ी संख्या में लोग बंदूकें लेने दुकान पर नहीं आए। इनके किराए के संबंध में रेकॉर्ड भी दुकानों पर नहीं है। सबसे ज्यादा 70 गन तो अकेले अकबर आर्मरी में ही रखी हैं। जिले में 12 आर्मरी को लाइसेंस दिए गए हैं। लगभग सभी दुकानों में इस तरह की पुरानी बंदूकें रखी हैं।
अस्सी के दशक के सबसे ज्यादा केस…
अकबर आर्मरी पर 31 दिसंबर 1985 को बहादुर खान के वारिस शहादत खान की तरफ से जमा कराई गई एमएल गन रखी है। ये 1960 की बताई जा रही है।
4 जनवरी 1986 को देवीलाल के वारिस मोहनलाल पटेल ने एक गन जमा कराई है।
17 मार्च 1986 को मुस्तफा अहमद के वारिस सिराजुद्दीन ने भी एक गन जमा कराई, लेकिन लेने नहीं आए।
पहले इनका किराया 20 से 25 रुपए प्रतिमाह था। अगर किराया ही जोड़ा जाए जो आज एक हजार रुपए प्रति माह के हिसाब से किराया बंदूक की कीमत से ज्यादा हो जाएगा।
ये कहता है नियम
सालभर गन रखी जा सकती है। इससे आगे के लिए कलेक्टर से अनुमति लेनी जरूरी है, लेकिन यहां अनुमति नहीं ली गई है।
गन के संबंध में नोटिस जारी किए जाएंगे। अगर कोई नहीं आएगा, तो उन बंदूकों को राजसात किया जाएगा।
सतीश कुमार, एडीएम