दरअसल, पिछले पांच साल से भी ज्यादा समय से सरकार नलों पर मीटर लगाने की कोशिश कर रही है। इसके तहत चुनिंदा शहरों के चुनिंदा इलाकों में मीटर लगाए भी गए, लेकिन अभी तक यह योजना कहीं पर भी पूरी तरह सफल नहीं हो पाई है।
इस कारण अब सरकार यह तैयारी कर रही है कि प्रमुख शहरों में पहले जलापूर्ति के प्रमुख पाइंट्स पर मीटर लगाया जाए, ताकि हर इलाके में पानी की खपत का पूरा डाटा तैयार हो जाए। इस खपत के हिसाब से इलाके, कॉलोनी व आबादी आधारित वसूली भी हो। इसलिए सरकार इस योजना पर काम कर रही है। मामले में नगरीय प्रशासन पीएस संजय दुबे का कहना है कि हर घर तक पेयजल पहुंचाना है और पानी के मीटर भी लगना है। इस पर अभी काम हो रहा है।
इसी क्रम में पानी के मीटर को नए सिरे से प्लान किया जा रहा है। इसमें भोपाल, इंदौर, जबलपुर, ग्वालियर सहित अन्य संभागीय मुख्यालय प्रमुखता से शामिल रहेंगे। इस बार पूरे शहरों को कवर करने की रणनीति है। इसलिए जलापूर्ति पाइंट को टारगेट किया जाएगा।
ऐसे होगा काम- जलापूर्ति पाइंट यानी किसी इलाके या कॉलोनी में पानी देने वाले पाइंट पर ही सरकार मीटर लगा देगी। इससे सबसे पहले उस निर्धारित क्षेत्र या कॉलोनी की पानी की खपत रिकार्ड हो जाएगी। इसके बाद पूरे इलाके या कॉलोनी की वसूली देखी जाएगी, उसी हिसाब से वहां पानी दिया जाएगा। बाद में लांग-टर्म-स्कीम में चरणबद्ध तरीके से घर-घर तक मीटर पहुंचेंगे।
हर योजना में पहले ही किया अनिवार्य – नगरीय प्रशासन ने इससे पहले हर शहर में नई जल परियोजना के लिए मीटर अनिवार्य कर दिया है। इसके तहत अब यदि किसी भी शहर में नई जल परियोजना मंजूर होती है, तो उसके टेंडर में ही मीटर लगाना अनिवार्य है। बिना मीटर की शर्त को माने कोई योजना मंजूर नहीं होगी। इसमें राज्य मुख्यालय से लेकर निकाय स्तर तक की जलापूर्ति संबंधित योजनाएं हैं।