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राजधानी में जलकल शाखा के पास वाटर कंट्रोल रूम नहीं

locationभोपालPublished: Mar 30, 2018 03:11:42 pm

– जलकल में वाटर कंट्रोल के लिए कोई सिस्टम ही नहीं, पुराने ढर्रे पर काम – कंट्रोलिंग सिस्टम न होने से पानी की बर्बादी, नहीं मिल पाती सही जानकारी दिनेश

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भोपाल. नगर निगम के अरबों के बजट में पेजयल आपूर्ति पर बड़ा हिस्सा खर्च किया जाता है, लेकिन जलकल शाखा के पास इसके लिए कोई कंट्रोलिंग सिस्टम ही नहीं है। इसके चलते रोजाना लाखों लीटर शुद्ध पेयजल बर्बाद हो जाता है। यह हाल राजधानी में जलापूर्ति का है, अन्य शहरों व कस्बों की स्थिति का तो अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि जलापूर्ति के कंट्रोल रूम व आवश्यक साजो-सामान होना जरूरी है। इससे जल की बर्बादी तो रुकेगी ही, साथ ही टंकियां भरने में समय कम लगेगा।

उल्लेखनीय है कि शहर में १८० ओवरहेड टैंक व १०० से कम संपवेल्स हैं। नगर निगम के जलकल विभाग को रोजाना इन्हें भरना होता है। शहर में कोलार लाइन, नर्मदा लाइन और बड़े तालाब से जलापूर्ति की जाती है। इस वर्ष गर्मी अधिक पडऩे के कारण बड़े तालाब को सूखने से भी बचाना है, इसलिए बड़े तालाब से पानी की कटौती की जा रही है। अभी तक शहर को ८९ एमजीडी सप्लाई तीनों स्रोतों से की जाती थी, इसमें कोलार फीडर लाइन से ३४ एमजीडी, नर्मदा फीडर लाइन से ४० एमजीडी और बड़े तालाब से १५ एमजीडी पानी शहर को दिया जा रहा था। बड़े तालाब से प्रतिदिन ०५ एमजीडी पानी की कटौती कर कोलार व नर्मदा लाइन से इसकी पूर्ति की जा रही है। गर्मी के तेवर देखते हुए विभाग आगामी दिनों में बड़े तालाब की जलापूर्ति से ०५ एमजीडी पानी की कटौती कर सकता है।

शहर में जलापूर्ति के लिए सभी ओवरहेड टैंक व संपवेल्स को भरने का कोई सही सिस्टम नहीं है। सबसे ज्यादा आश्चर्य की बात यह है कि पानी के ओवरहेड टैंक व संपवेल्स को भरने के लिए कोई कंट्रोल रूम ननि ने अभी तक स्थापित ही नहीं किया है। इससे सबसे बड़ी परेशानी यह होती है कि ऑपरेटर यह समझ ही नहीं पाता कि टंकी कितनी भरी है।

टंकियों में नहीं इंडीकेटर्स
नगर निगम के ओवरहेड टैंक अभी भी दशकों पुराने ढर्रे पर हैं। इनमें लेवल इंडीकेटर्स और फ्लो मीटर्स भी नहीं लगाए गए हैं। लेवल इंडीकेटर्स से यह पता चलता है कि टंकी कितनी भर गई है और कितनी भरी जानी है। फ्लो मीटर से यह पता चलता है कि पानी कितने प्रेशर से चल रहा है। अभी टंकी ओवरफ्लो होने पर ही ऑपरेटर/निगमकर्मी को पता चल पाता है कि टंकी भर गई। पानी बंद करते-करते पांच-सात हजार लीटर पानी तो एक ही टंकी से बर्बाद हो जाता है। इस तरह पूरे शहर में रोजाना १० लाख लीटर पानी तो ओवरहेड टंकियों से ही भरते समय गिर जाता है। ननि की जलकल शाखा २४ घंटे टंकियों व संपवेल भरने का काम करती है। लाइन बदल-बदलकर पानी की सप्लाई दी जाती है।

कंट्रोल रूम के कई फायदे
जलकल शाखा के पास यदि कंट्रोल रूम हो तो इसके कई फायदे होंगे। एक तो सभी ओवरहेड टैंक व संपवेल्स भरने में आसानी होगी। पानी व्यर्थ नहीं बहेगा और ऐसा भी नहीं होगा कि कोई टंकी भर जाए और कोई खाली रहे। स्टाफ भी सजग और ड्यूटी पर मुस्तैद रहेगा, क्योंकि इस सिस्टम से उन्हें कभी भी चेक किया जा सकेगा। यदि कहीं पानी बह रहा होगा या लाइन क्षतिग्रस्त होगी तो इसकी सूचना कोई भी कंट्रोल रूम को दे सकेगा, जिससे समय गंवाए बिना लीकेज सुधार किया जा सकेगा।

हां, यह सच है कि अभी तक जलकल विभाग के पास कंट्रोल रूम जैसी कोई सुविधा नहीं है, लेकिन जल्द ही कुछ बेहतर व्यवस्था करने का प्रयास चल रहा है।
– ब्रजराज सिंह सेंगर, सहायक यंत्री व प्रभारी कोलार-नर्मदा लाइन

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