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भोपाल

कांग्रेस के महागठबंधन फेल होने से किस पार्टी को मिलेगा फायदा

कांग्रेस—भाजपा के दिग्गज वोट परसेंटेज के गणित में उलझे

भोपालOct 11, 2018 / 03:16 pm

harish divekar

rajasthan election
मध्यप्रदेश में 15 सालों से वनवास काट रही कांग्रेस ने सत्ता में वापस लौटने के लिए महागठबंधन का फार्मूला बनाया था, लेकिन चुनाव के ऐन वक्त पहले बसपा, सपा सहित अन्य दलों के इंकार से पूरा गणित गडबडा गया।
सीधे तौर पर देखने से लगता है कि इसका नुकसान कांग्रेस को होगा, लेकिन कांग्रेस और भाजपा के दिग्गज खुद नहीं समझ पा रहे हैं कि आखिर इस महागठबंधन के टूटने के बाद ये छोटे—छोटे दलों में बंटने वाला वोट परसंटेज आखिर किसको फायदा पहुंचाएगा।
दरअसल, पिछले 15 सालों से भाजपा सत्ता में है। वहीं 2008 की तुलना में 2013 में भाजपा का वोट परसंटेज बढा था। चौथी पारी में भाजपा के खिलाफ एंटीइंकम्बैंसी देखने में आ रही है, ऐसे में भाजपा के दिग्गजों का मानना है कि यदि उनकी एंटीइकंम्बैंसी का वोट इन छोटे दलों को मिलता है तो इसका सीधा लाभ भाजपा को मिलेगा।
यदि मतदाता छोटे दलों की बजाए कांग्रेस की ओर रुख करता है तो भाजपा के लिए बडी परेशानी खडी हो सकती है।

इधर कांग्रेस के दिग्गजों का मानना है कि वो सिपर्फ अपने वोट बैंक को सुरक्षित करता है तो सरकार बन सकती है, दरअसल भाजपा को पिछले तीन बार से जो वोट मिल रहा था, वो कांग्रेस की नाराजगी का था। इतने सालों में जनता अब कांग्रेस शासनकाल को भूल चुकी है और उसे अब सिर्फ भाजपा का कार्यकाल याद है।
इसका सीधा फायदा कांग्रेस को मिल सकता है। कांग्रेस का मानना है कि गठबंध असफल होने से 17 फीसदी वोटबैंक का बिखराव हो जाएगा। इससे सीधे भाजपा को ज्यादा नुकसान होगा। तीसरे मोर्चा का इतिहास देखा जाए तो तस्वीर साफ हो जाएगी।
कम अंतर वाली सीटों पर सीधा असर
तीसरा मोर्चा उन 25-30 सीट पर जिताऊ प्रत्याशियों के लिए सिरदर्द बनेंगे, जहां हार-जीत का अंतर 5 हजार के नीचे होगा। असल में तीसरे मोर्चे के ये अलग अलग दल भले ही जीत हासिल करने में नाकाम हो जाएं लेकिन यह मुख्य राजनीतिक दलों के वोट बैंक में सेंध लगाने में कामयाब हो जाते हैं।
मध्यप्रदेश – कुल मतदाता 5,03,94,086 (2018)
कुल सीट – 230
2013 में मात्र साढ़े आठ फीसदी वोट पाकर ली 4 सीट
पिछले चुनाव से पहले पूर्व मुख्यमंत्री उमाभारती की वापसी के बाद भाजश का भाजपा में विलय हो गया। 2013 में हुए चुनाव में जहां तीसरे मोर्चे के दलों को मात्र साढ़े आठ फीसदी वोट मिले, वहीं सीटें मात्र 4 की संख्या में सिमट गईं। इसमें कई सीटों पर नोटा ने खेल बिगाड़ा, जो लगभग दो फीसदी के आसपास रहा।
वर्ष 2013, मतदाता- 4,69,34,590
मत पड़े- 3,32,06,406 (70.8%)
नोटा- 6,43,144 (1.9%)
सामान्य- 148, एससी- 35, एसटी- 47 (सीटें मिलीं)
भाजपा- 165 सीटें (45.7% वोट)
कांग्रेस- 58 सीटें (37.1% वोट)
बसपा- 4 सीटें (6.4% वोट)
सपा- 0 सीट (1.2% वोट)
गोंगपा- 0 सीट (1.0% वोट)
सामान्य-दलित विवाद का असर पड़ेगा
2018 में होने वाले चुनाव में एक बार फिर तीसरे मोर्चे के दल कई सीटों पर खेल बिगाड़ेंगे। इस बार सामान्य और पिछड़े वर्ग के संगठन सपाक्स, आदिवासियों का संगठन ‘जयस” भी मैदान में हैं। बसपा, सपा और गोंडवाना भी वोटों का खेल बिगाड़ने को तैयार हैं। राजनीतिक पंडित भी अनुमान नहीं लगा पा रहे हैं कि इन दलों की मौजूदगी से ज्यादा नुकसान किस दल को होगा।

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