दरअसल, मध्यप्रदेश में पुलिस महानिदेशक की नियुक्ति के लिए प्रदेश सरकार को यूपीएससी से पैनल आना था, जिसे आज मंजूरी दे दी गई। पैनल में वर्तमान डीजीपी वीके सिंह, डीजी होमगार्ड मैथलीशरण गुप्ता और डीजी बीएसएफ विवेक जौहरी को शामिल किया गया है। विवाद यहीं से शुरू हो गया है। सूत्रों का कहना है कि विवेक जौहरी का बायोडाटा जब भेजा गया तो उसके साथ कोई सहमति पत्र नहीं लगाया गया। ऐसे में मानकर चला जा रहा था कि उनका बायोडाटा खुद ही रिजेक्ट हो जाएगा। लेकिन अचानक पैनल चयन में मौजूद सदस्यों ने सीधे विवेक जौहरी को फोन लगाकर उनकी रजामंदी ली और उसके बाद उनके नाम को मंजूरी दे दी। हालांकि कहा जा रहा है कि विवेक जौहरी मध्यप्रदेश वापसी नहीं करेंगे। वह इस समय बीएसएफ के डीजी के पद पर हैं।
सहमति लेने का अधिकार राज्य सरकार को
दरअसल, पैनल के लिए जिन दावेदारों के नाम भेजे गए। उनसे सहमति लेने का अधिकार राज्य सरकार को है। उसी के आधार पर यूपीएससी पैनल चयन का काम करता है, लेकिन यूपीएससी की ओर से पैनल चुनने वालों ने सीधे जौहरी से फोन पर बात कर उनकी सहमति ली, जबकि यह अधिकार सदस्यों को है ही नहीं। वहीं, सवाल इस बात पर भी खड़े हो रहे हैं कि जब सहमति विवेक जौहरी से ली गई तो फिर दूसरे और दावेदार सुधीर सक्सेना से सहमति क्यों नहीं ली गई, भले ही वह पैनल में शामिल नहीं हैं। लेकिन नीतिगत तौर पर उनसे भी सहमति ली जानी चाहिए थी।
दरअसल, पैनल के लिए जिन दावेदारों के नाम भेजे गए। उनसे सहमति लेने का अधिकार राज्य सरकार को है। उसी के आधार पर यूपीएससी पैनल चयन का काम करता है, लेकिन यूपीएससी की ओर से पैनल चुनने वालों ने सीधे जौहरी से फोन पर बात कर उनकी सहमति ली, जबकि यह अधिकार सदस्यों को है ही नहीं। वहीं, सवाल इस बात पर भी खड़े हो रहे हैं कि जब सहमति विवेक जौहरी से ली गई तो फिर दूसरे और दावेदार सुधीर सक्सेना से सहमति क्यों नहीं ली गई, भले ही वह पैनल में शामिल नहीं हैं। लेकिन नीतिगत तौर पर उनसे भी सहमति ली जानी चाहिए थी।
क्या मित्रों ने की वीके सिंह की मदद
कई अफसर दबी जुबान से कह रहे हैं कि वीके सिंह को पैनल में मजबूत बनाने में उनके मित्रों ने मदद की है। यूपीएससी के पैनल में उनके मित्र शामिल थे, जिन्होंने नियमों को दरकिनार कर पैनल चयन में भूमिका निभाई।
कई अफसर दबी जुबान से कह रहे हैं कि वीके सिंह को पैनल में मजबूत बनाने में उनके मित्रों ने मदद की है। यूपीएससी के पैनल में उनके मित्र शामिल थे, जिन्होंने नियमों को दरकिनार कर पैनल चयन में भूमिका निभाई।
कैसे आया जौहरी का नाम
दरअसल, विवेक जौहरी का नाम उस समय डीजीपी के पैनल के लिया भेजा गया था, जब वह डीजी बीएसएफ नहीं बने थे। आज के हालातों में मानकर चला जा रहा था कि विवेक जौहरी इससे बाहर रहेंगे। ऐसे में वरिष्ठताक्रम कुछ इस तरह से होता वीके सिंह, मैथलीशरण गुप्ता, संजय चौधरी, अशोक दोहरे और राजेंद्र कुमार। सरकार के अंदरखाने से कुछ लोग इस पैनल को राजेंद्र कुमार तक लाना चाहते थे। लोग मानकर चल रहे थे कि संजय चौधरी और अशोक दोहरे को किनारे कर राजेंद्र कुमार का नाम आगे करा लिया जाएगा। जिससे पैनल वीके सिंह, मैथलीशरण गुप्ता और राजेंद्र कुमार होगा। लेकिन ऐसा उस समय नहीं हुआ जब यूपीएससी ने विवेक जौहरी का नाम आगे कर दिया। मैथलीशरण पहले से ही केंद्र में इनरोल हो चुके हैं, ऐेसे में उनके नाम का आना तय था। हालांकि विवेक के नाम पर आपत्ति हुई कि उन्होंने अपनी सहमति नहीं दी है, इस पर उनसे फोन पर बात कर सहमति ले ली गई। ऐसे में उनके नाम पर विचार होगा। बस यहीं पर पूरा खेल खत्म हो गया और पैनल में वीके सिंह, मैथलीशरण गुप्ता के साथ विवेक जौहरी का नाम जुड़ गया।
दरअसल, विवेक जौहरी का नाम उस समय डीजीपी के पैनल के लिया भेजा गया था, जब वह डीजी बीएसएफ नहीं बने थे। आज के हालातों में मानकर चला जा रहा था कि विवेक जौहरी इससे बाहर रहेंगे। ऐसे में वरिष्ठताक्रम कुछ इस तरह से होता वीके सिंह, मैथलीशरण गुप्ता, संजय चौधरी, अशोक दोहरे और राजेंद्र कुमार। सरकार के अंदरखाने से कुछ लोग इस पैनल को राजेंद्र कुमार तक लाना चाहते थे। लोग मानकर चल रहे थे कि संजय चौधरी और अशोक दोहरे को किनारे कर राजेंद्र कुमार का नाम आगे करा लिया जाएगा। जिससे पैनल वीके सिंह, मैथलीशरण गुप्ता और राजेंद्र कुमार होगा। लेकिन ऐसा उस समय नहीं हुआ जब यूपीएससी ने विवेक जौहरी का नाम आगे कर दिया। मैथलीशरण पहले से ही केंद्र में इनरोल हो चुके हैं, ऐेसे में उनके नाम का आना तय था। हालांकि विवेक के नाम पर आपत्ति हुई कि उन्होंने अपनी सहमति नहीं दी है, इस पर उनसे फोन पर बात कर सहमति ले ली गई। ऐसे में उनके नाम पर विचार होगा। बस यहीं पर पूरा खेल खत्म हो गया और पैनल में वीके सिंह, मैथलीशरण गुप्ता के साथ विवेक जौहरी का नाम जुड़ गया।